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सच्चा प्रेम वो है जो हमें किसी मंजिल तक पहुंचाए- वैलेंटाइन डे

सद्गुरुजी
सद्गुरुजी
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सच्चा प्रेम वो है जो हमें किसी मंजिल तक पहुंचाए- वैलेंटाइन डे
क्या क्या हुआ दिल के साथ,
मगर तेरा प्यार नही भूले

हम भूल गये हर बात,
मगर तेरा प्यार नही भूले.
क्या क्या हुआ दिल के साथ,
मगर तेरा प्यार नही भूले.
बचपन के हम साथी दोनों,
सदा रहे हैं साथ.
एक ही सपना देखें जैसे,
दो आँखें दिन रात.
कोई लाख कहे सौ बात,
मगर तेरा प्यार नही भूले.
कृतिका (परिवर्तित नाम) के कमरे से नसीम बेगम की बेहद दर्दभरी और पतली सी आवाज में पाकिस्तान में 1960 में बनी फिल्म “सहेली” का गीत बजने की आवाज आ रही थी. इस गीत को वर्षों पहले मैं यूट्यूब पर सूना था. फ़य्याज़ हाशमी जी का लिखा हुआ मधुर गीत और गायिका नसीम बेगम की अजीब सी पतली आवाज, लेकिन गीत अच्छा लगा था. सन1989 में भारत में बनी फ़िल्म- “सौतन की बेटी” में इस गाने के मुखड़े की हूबहू नक़ल की गई थी. फिल्म के निर्देशक और गीतकार सावन कुमार जी ने कुछ हेर-फेर करके गीत के बाकी बोल यानि अंतरा बदल दिए थे. लता जी की सुरीली आवाज में गाया हुआ ये गीत अभिनेत्री रेखा जी के ऊपर फिल्माया गया था. गीत के बदले हुए बोल कुछ इस तरह से हैं-
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हम भूल गए रे हर बात मगर तेरा प्यार नही भूले
क्या क्या हुआ दिल के साथ.. मगर तेरा प्यार नही भूले
हम भूल गए रे हर बात मगर तेरा प्यार नही भूले
दुनिया से शिकायत क्या करते जब तूने हमे समझा ही नही..
गैरो को भला क्या समझाते जब अपनो ने समझा ही नही
तुने छोड़ दिया रे मेरा हाथ.. मगर तेरा प्यार नही भूले
क्या क्या हुआ दिल के साथ.. मगर तेरा प्यार नही भूले
कसमे खाकर वादे तोड़े हम फिर भी तुझे ना भूल सके..
झूले तो पड़े बागो मे मगर हम बिन तेरे ना झूल सके
सावन में जले रे दिन रात.. मगर तेरा प्यार नही भूले
क्या क्या हुआ दिल के साथ.. मगर तेरा प्यार नही भूले
हम भूल गए रे हर बात मगर तेरा प्यार नही भूले
हम भूल गए रे हर बात मगर तेरा प्यार नही भूले

आज की एक युवा पीढ़ी को ये गीत मूल यानि ओरिजनल रूप में सुनते देखा तो सुखद आश्चर्य हुआ. आश्रम से मुझे साथ लेकर आने वाला कृतिका का भाई आलोक (परिवर्तित नाम) कमरे के भीतर जाकर म्यूजिक सिस्टम ऑफ करते हुए कहा- दीदी..गुरु जी आये हैं..
भीतर चलने का अनुरोध करते हुए आलोक के कमरे से बाहर आने पर मैं उसके साथ कमरे के भीतर प्रवेश किया. हल्के पीले रंग के सलवार कमीज में लिपटी हुई खुले बालों वाली दुबली पतली युवती कृतिका को मैं देखते ही पहचान गया. एक साल पहले वो एक युवक के साथ दो बार मेरे आश्रम में आ चुकी थी. दोनों का आपसे में गहरा प्रेम था. वो शादी करना चाहते थे और मुझसे आग्रह कर रहे थे कि मैं दुआ करूँ कि उनके परिवार वाले शादी के लिए राजी हो जाएँ. लड़का और लड़की दोनों ही अलग-अलग जाति के थे. उनके माता-पिता इस रिश्ते के बारे में सोचने को भी तैयार नहीं थे. मैंने स्पष्ट रूप से कह दिया था कि ये विवाह होना नामुमकिन है. सबसे बड़ा कारण ये था कि उस समय दोनों अपने माता-पिता पर ही आश्रित थे. लड़का बैंक परीक्षा की तैयारी कर रहा था और लड़की पीएचडी कर रही थी. मैंने उन्हें सुझाव दिया था कि ज्यादा अच्छा है कि इस समय आप दोनों अपना कॅरियर बनाने पर ध्यान दो. मेरे विचार से प्रेम-विवाह भी तभी पूर्णतः सफल सिद्ध होता है, जब लड़का लड़की दोनों अपने पैरों पर खड़े हों. दोनों को मेरा सुझाव पसंद नहीं आया था. मुझे इस बात का बहुत दुःख था कि दोनों बहुत उम्मीद लेकर मेरे पास आये थे, परन्तु बहुत निराश होकर मेरे दर से गए थे.
कृतिका मुस्कुराते हुए मेरे पास आई और झुककर मेरे पैर छूने लगी. मैं पीछे हटते हुए बोला- “पैर मत छूना.. खुश रहो.. ” फिर उसे ध्यान से देखते हुए बोला- “ये तुमने क्या हालत बना रखी है अपनी.. सालभर पहले जब तुम मेरे पास आयीं थीं तब तुम कितनी स्वस्थ और सुन्दर थीं.. क्या हो गया है तुम्हे..?”
कृतिका कुर्सी लाकर मेरे पास रखते हुए बोली- “सब बताउंगी गुरुदेव.. पहले आप बैठिये.. बड़े सौभाग्य से तो आप हमारे यहाँ पधारे हैं..”
मैं कुर्सी पर बैठकर सफ़ेद रंग की दीवारों और साफ सुथरे सजे धजे कमरे को देखने लगा, जिसमे आरामदेह पलंग से लेकर मेज कुर्सी, किताबें, म्यूजिक सिस्टम, टीवी और कम्प्यूटर तक सभी सुख सुविधाएँ उपलब्ध थीं.
“गुरूजी.. आपने हमारा घर देख लिया है.. क्या हमारे घर में कोई वास्तुदोष या अन्यदोष है..? मेरे स्वर्गीय पति पीडब्लूडी में इंजीनियर थे और वस्तु के अच्छे जानकर भी थे.. घर बनवाते समय उन्होंने वास्तुशास्त्र के जानकर पंडितों की सलाह भी ली थी..” -कृतिका की माताजी हाथ जोड़कर बोलीं.
“नहीं.. कोई ज्यादा दोष नहीं है.. मकान के दक्षिण-पश्चिम का कोना सिर्फ ऊँचा करवा दीजिये..” -मैं बोला.
“जी.. आप बिलकुल सही कह रहे हैं.. कइयों ने यही बात कही है, परन्तु ये लड़की माने तब तो.. ये ऊँचा करने ही नहीं देती है.. वहां कमरा बन जायेगा तो हमारे बगल में रहने वाले उस धोखेबाज लड़के की शक्ल इसे कैसे दिखाई देगी.. जिसने इसका पूरा जीवन बर्बाद कर दिया है..” -कृतिका की माताजी तेज स्वर में बोलीं.
“मम्मी.. तुम रसोई में जाओं.. गुरूजी के लिए कुछ बना के लाओ.. आलोक तुम भीं अपने कमरे में जाओं.. मुझे गुरूजी से कुछ जरुरी बात करनी है..” -कृतिका हाथ उठाकर बोली.
“दीदी.. मैं नहीं जाउंगी.. मुझे अपने कॅरियर के बारे में गुरूजी से कुछ पूछना है..” -अनुष्का (परिवर्तित नाम) पलंग पर बैठते हुए बोली.
“नहीं.. तू भी जा.. बाद में आना..” -कृतिका बक्से के ऊपर रखा सफ़ेद दुपट्टा अपने गले में डालते हुए बोली.
“बैठने दो इसे.. क्यों भगा रही हो.. तुम्हारे घर में यही एक लड़की है, जो खुश है और हंस मुस्कुरा रही है..” -मैं कृतिका से बोला
“आजकल क्या कर रही हो तुम..?” -मैंने मुस्कुराती हुई अनुष्का से पूछा.
“जी.. इस साल बीकॉम कम्प्लीट किया है..” -अनुष्का बोली.
“अब आगे एमबीए कर लो..” मैं बोला.
“जी.. मैं भी यही सोच रही हूँ.. मैंने कई जगह प्रवेश परीक्षा दी है.. क्या मैं किसी अच्छे कालेज में दाखिला ले पाने में सफल हो पाऊँगी..?” -अनुष्का बोली.
“हाँ.. जरूर सफलता मिलेगी..” -मैं बोला.
“पूछ ली न.. चल.. अब भाग यहाँ से..” -कृतिका मेरी कुर्सी के पास नीचे फर्श पर बैठते हुए बोली.
“नहीं दीदी.. बैठने दो न.. मैं कुछ नहीं बोलूंगी.. चुपचाप बैठूंगी..” -ये कहकर अनुष्का पलंग पर और आराम से बैठ गई.
कृतिका नाराज हो अपना हाथ ऊपर उठाते हुए उसे बाहर जाने का इशारा करने लगी. मगर वो टस से मस नहीं हुई. बिस्तर पर और आराम से बैठ मुस्कुराने लगी.
“छोडो बैठने दो उसे.. तुम अपनी बात कहो.. तुम्हारी रिसर्च कम्प्लीट हुई की नहीं..” -मैं पूछा.
कृतिका सिर उठा मेरी और देखते हुए बोली- “नहीं गुरूजी.. अभी कम्प्लीट नहीं हुई है.. विपिन (परिवर्तित नाम) के शादी कर लेने के बाद मैं बहुत गहरे डिप्रेशन में चली गई थी.. मुझे नींद ही नहीं आती थी.. हर समय विपिन की वेवफाई के बारे में सोचती रहती थी.. मेरा मानसिक संतुलन पूरी तरह से बिगड़ गया था.. डाक्टरों ने ढेरों दवाइयों सहित नींद की गोलियां मुझे खिलाईं और कई बार बिजली के झटके दिए..”
मैं आश्चर्य से पूछा- “इतनी खराब मानसिक हालत हो गई थी कि डॉकटरों को शॉक ट्रीटमेंट देना पड़ा..?”
“हाँ..गुरूजी.. घर की सब चीजें दीदी तोड़ने फोड़ने लगीं थीं.. सबको गाली देती थीं और मारती थीं..” -अनिष्का बोली.
“शॉक ट्रीटमेंट में तो तुम्हे बहुत पीड़ा हुई होगी..” -मैं बहुत दुखी होकर बोला.
“नहीं गुरुदेव.. मुझे बेहोश कर वो लोग कान में शॉक ट्रीटमेंट देते थे.. मुझे शॉक ट्रीटमेंट के बाद होश में आने पर उल्टी होती थी और जल्दी कुछ याद नहीं आता था.. मुझे तो उस समय लगा था कि कहीं मेरी यादास्त ही न चली जाये.. इसीलिए मैंने खुद को सम्भालना शुरू किया.. और फिर धीरे धीरे ठीक होती चली गई.. कई ओझा-सोखा और तांत्रिक भी मेरा इलाज कर रहे थे.. वो लोग मेरे ऊपर किसी ब्रह्म का सवार होना बताते थे..” -कृतिका धीमे स्वर में बोली.
मैं बोला- “ब्रह्म का अर्थ परमात्मा है.. ब्रह्म किसके भीतर नहीं है.. ब्रह्म का अंश आत्मा है.. जो शरीर के बाहर निकल जाती है तो शरीर मृत हो जाता है.. कोई मन रूपी प्रेत किसी डरपोक मनुष्य को परेशान कर सकता है.. परन्तु ब्रह्म कदापि नहीं.. तुम्हारी परेशानी मानसिक थी.. अधिकतर रोगी मानसिक या शारीरिक बीमारी के शिकार होते हैं.. परन्तु लोग भ्रमवश भूत-प्रेत के चक्कर में फंसकर समय और धन दोनों नष्ट करते है,, और फिर बाद में जानमाल की बड़ी क्षति झेलने के बाद बहुत पछताते हैं..”
कुछ क्षण चुप रहने के बाद मैं बहुत दुखी होते हुए बोला- “इतना सबकुछ घटित हो गया और मुझे किसी ने भी बताया नहीं.. शायद मैं उस समय तुम्हारी कुछ मदद कर सकता था..”
कृतिका बोली- “उस समय मैं आपसे बहुत नाराज थी.. क्योंकि आपने विपिन से शादी कराने में मेरी कोई मदद नहीं की थी.. मैंने अपने घर में सबको मना कर दी थी कि कोई भी गुरूजी के पास नहीं जायेगा.. मेरी बुआ आपके आश्रम की पुरानी शिष्य हैं.. उन्होंने सैकड़ो बार हमलोगों से कहा था कि इसे गुरूजी के पास ले चलो.. ठीक हो जाएगी.. पर मैं आपके पास जाने को तैयार नहीं हुई..”
मैंने उससे पूछा- “विपिन को जब बैंक में नौकरी मिल गई तो वो तुमसे कोर्ट मैरिज करने को तैयार था.. फिर कैसे उसका विचार बदल गया..?” -.
कृतिका गहरी साँस खिंच दर्द भरे स्वर में बोली- “गुरुदेव.. मुझसे कोर्ट मैरिज करने का पूरा प्लान बनाने के बाद आखिरी समय में उसने मुझे धोखा दिया.. मैं उसके कहे अनुसार जिला विवाह अधिकारी के कार्यालय में अपने दोस्तों के साथ दिनभर बैठी उसका इंतजार रही.. पर वो नहीं आया.. कुछ दिन बाद पता चला कि उसकी सगाई हो गई है.. कई सालों से कुआंरी बैठी अपनी बड़ी बहन के विवाह की खातिर उसने खुद को बेच दिया.. जिस लड़की से उसकी शादी हुई है.. उसी के बड़े भाई से विपिन की बहन का विवाह हुआ है..”
“ओह.. वो भी बिचारा कितना मजबूर था..” -सहसा मेरे मुंह से निकल गया.
“गुरुदेव.. मैं आपकी बात मानती हूँ.. परन्तु वो मुझसे मिल के सारी बात बता तो सकता था.. शायद मुझे तब इतना दुःख नहीं हुआ होता.. वो तो चोरों और अपराधियों की तरह मुझसे मुंह छिपा लिया.. कई महीने तक अपने घर से बाहर ही नहीं निकला.. अब तो कहीं सड़क पर या गली में उससे आमना सामना होता है तो वो चुपचाप नीचे सिर झुकाकर पास से गुजर जाता है..” -कृतिका रुंधे स्वर में बोली. वो अपनी गीली आँखे पोंछने लगी.
मैं कृतिका को समझाते हुए बोला- “विपिन अपने अपराधबोध के तले दबकर नरक की जिंदगी जी रहा है.. तुम उसे क्षमा कर दो.. और कहीं पर भी कभी मुलाकात हो तो उसे शादी की बधाई दे दो.. शायद उसे अपने अपराधबोध से कुछ मुक्ति मिल जाये.. और उसके जीवन ख़ुशी आ जाये.. इससे तुम्हे भी बहुत शांति मिलेगी..”
“ये सब मुझसे नहीं होगा.. आप मुझे दीक्षा दे दीजिये.. अब मैं सब माया मोह छोड़कर मुक्त होना चाहती हूँ..” -कृतिका मेरा पैर पकड़ रोते हुए बोली.
कृतिका के सिर पर मैं हाथ रख बोला- “दीक्षा मैं तुम्हे दूंगा.. परन्तु उसके लिए तुम्हे पहले सुयोग्य पात्र बनना होगा.. तुम्हे अपनी पीएचडी पूरी करनी होगी.. कहीं पर नौकरी करनी होगी.. और शादी भी करनी होगी.. तभी मैं दीक्षा दूंगा.. अब मेरा पैर छोडो और उठो..”
कृतिका कुछ देर तक चुप रही, फिर अपनी चुनरी सम्भाल उठते हुए बोली- “ठीक है मैं ये सब करुँगी..”
तभी कृतिका की माताजी एक प्लेट में पकौड़ी और दूसरे में बर्फी की मिठाई लेकर आईं और अनुष्का से बोलीं- “जा.. मेरे कमरे से छोटा स्टूल ले के आ..”
अनुष्का स्टूल लेने भाग गई. मैं कृतिका के माता जी से बोला- “आप क्यों परेशान हुईं.. मैं ये सब नहीं खाऊंगा.. मुझे आप बस सादा पानी पिला दीजिये..”
कृतिका की माता जी बोलीं- “गुरुदेव.. आप कुछ भी थोड़ा सा ले लीजिये.. हम सबके लिए ये प्रसाद बन जायेगा..”
अनुष्का प्लास्टिक का बादामी रंग का गोल स्टूल ले आई. कृतिका की माताजी मिठाई और पकौड़ी की प्लेट उसपर रखकर कमरे से बाहर जाते हुए बोलीं- “आप पानी पीजिये.. मैं आपके लिए चाय बना लाती हूँ..” मैं चाय बनाने से उन्हें मना करने लगा, किन्तु वो रुकीं नहीं.
कृतिका मेरी तरफ देख हँसते हुए बोली- “गुरूजी.. आप गुड की चाय पीते हैं न..”
“हाँ.. पर तुम्हे कैसे मालूम हुआ..” -मैं हैरानी से पूछा.
कृतिका बोली- “बुआ ने मुझे बताया था कि आप लिखते भी हैं.. नेट पर मैंने आपकी रचनाओ को सर्च कर पढ़ा है.. उसे पढ़कर मुझे बहुत सुकून मिला.. और फिर से नया जीवन शुरू करने का हौसला भी मिला.. अपने लिए न सही अब दूसरों की ख़ुशी के लिए जीऊँगी.. अब जो आप कहेंगे.. वो सब मैं करुँगी..”
उसकी दृढ संकल्प से भरी बातें सुन मुझे बहुत ख़ुशी हुई. मैं मुस्कुराते हुए बोला- “कृतिका.. मेरे आने का मकसद पूरा हुआ.. अब चाय तो क्या तुम खाना भी खिलाओगी तो मना नहीं करूंगा..”
अपनी आंसुओं से नम आँखें पोंछ कृतिका मुस्कुराते हुए बोली- “खाना भी खिलाऊँगी.. पर पहले मैं आपके लिए गुड की चाय बना के लाती हूँ..” ये कहकर वो कमरे से बाहर निकल गई.
अनुष्का मेज के पास जाकर म्यूजिक सिस्टम से छेड़छाड़ कर रही थी. उसने जैसे ही म्यूजिक सिस्टम चालू किया, वही पाकिस्तानी फिल्म का गीत बजने लगा. अनुष्का गीत सुनकर अपने मुंह पर हाथ रख अपनी दीदी की पसंद पर हंस रही थी और शायद यही गीत सुनकर रसोई में चाय बना रही कृतिका की आँखे और दिल दोनों रो रहे रहे थे…
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हाय रे मजबूरी दिल की,
भेद न दिल के खोले.
अपने घर को जलते देखा,
मुँह से कुछ न बोले.
हम जलते रहे रे दिन रात,
मगर तेरा प्यार नही भूले.
हम भूल गये हर बात,
मगर तेरा प्यार नही भूले.
क्या क्या हुआ दिल के साथ,
मगर तेरा प्यार नही भूले.

अंत में इस प्रेम कहानी के बारे मे बताना चाहूंगा आज से लगभग तीन साल पहले की यह प्रेम व्यथा है. कृतिका ने प्रेम में धोखा खाने के बाद अपने को संभाला. उसने अपनी पीएचडी पूरी की. डेढ़ साल पहले उसकी शादी हुई और एक कालेज में उसे पढ़ाने की नौकरी भी मिल गई. और हाँ.. कुछ दिन पहले जब वो मिलने आई थी तो एक समझदार और संस्कारी पति के साथ साथ एक नन्ही मुन्नी प्यारी सी बच्ची भी उसकी गोद में थी. वो सुन्दर सी मासूम बच्ची को मेरी गोद में रखी तो मेरे मुंह से सहसा निकल गया- “एक और कृतिका आ गई..” कृतिका मुस्कुराते हुए बोली- “कृतिका नहीं रोहिणी कहिये गुरुदेव.. ये कृतिका रूपी प्रेम में जलने वाली अग्निशिखा नहीं बल्कि रोहिणी रूपी प्रेम को मंजिल तक पहुंचानेवाली सुगम्य वाहन बनेगी. इस रोहिणी को आप यही आशीर्वाद दीजिये.” मैं हँसते हुए कृतिका की तरफ देखा. उसके नक्षत्र और ज्योतिष प्रेम से मै भी चकित रह गया था.
वसंत के मौसम में पड़ने वाले वैलेंटाइन डे उत्सव का मूल सन्देश यही है कि वो प्रेम नहीं.. जो हमें स्वार्थी बनाये.. वासना की आग में झुलसाए.. मरने-मारने को उकसाए.. जो हमें अपराधी बनाये.. सच्चा प्रेम तो वो है जो हमें किसी मंजिल तक पहुंचाए.. चाहे वो मंजिल सांसारिक हो या फिर आध्यात्मिक.. जो दूसरों की सेवा और ख़ुशी के लिए खुद को न्यौछावर करना सिखाये.. जो सांसारिक और आध्यात्मिक प्रेम के साथ-साथ राष्ट्र-प्रेम की अलख निरंजन ज्योति भी ह्रदय में जगाये.. जयहिंद..! इस अनुपम मंच के सभी ब्लॉगर मित्रों और कृपालु पाठकों को वसंत पंचमी और वैलेंटाइन डे की बहुत बहुत हार्दिक बधाई.. !

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ आलेख और प्रस्तुति=सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी,प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम,ग्राम-घमहापुर,पोस्ट-कन्द्वा,जिला-वाराणसी.पिन-२२११०६.
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