Menu
blogid : 15204 postid : 1146194

साडा चिड़ियाँ दा चंबा वे, बाबुल असां उड़ जाणा- जागरण जंक्शन

सद्गुरुजी
सद्गुरुजी
  • 534 Posts
  • 5673 Comments

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

साडा चिड़ियाँ दा चंबा वे,
बाबुल असां उड़ जाणा,
साडी लम्मी उडारी वे,
बाबुल केहड़े देस जाणा.
घर में विवाह की तैयारियां चल रही हैं. लड़की अपने पिता से कह रही है- पिताजी, लडकियां चिड़ियों के समूह जैसी होती हैं. अब हमें चिड़ियों की तरह लम्बी उड़ान भरनी है. पता नहीं किस देश में जाकर हमारी उड़ान पूरी हो और हमें मंजिल मिले.

jhumar-lights-36rrreerr
ये एक पंजाबी लोकगीत है जो पंजाब में सदियों से विवाह के मौके पर गाया बजाया जाता रहा है. इस लोकगीत के गीतकार का नाम तो अज्ञात है, किन्तु ये लोकगीत बेहद लोकप्रिय है और पंजाबियों के दिलों में बसा हुआ है. इस लोकगीत का भावार्थ मैं अपनी जानकारी के अनुसार समझाने की कोशिश करते हुए एक विवाह समारोह के आयोजन का समीक्षात्मक वर्णन भी प्रस्तुत कर रहा हूँ, जिसके आयोजन की सारी जिम्मेदारी मेरे ही ऊपर थी. वर और वधू दोनों ही पक्षवाले मेरे नजदीकी रिश्तेदार थे. लड़का दक्षिण अफ्रिका में काम कर रही एक भारतीय कंस्ट्रक्शन कम्पनी में इंजीनियर के रूप में कार्यरत है और लड़की बीए पास एक सामान्य घरेलू लड़की है. दोनों के बीच प्रेम हुआ और फिर काफी अड़चनों के बाद शादी तय हुई, जिसका विवरण अपने एक ब्लॉग “एक वास्तविक प्रेम कहानी का सुखद अंत” में दे चूका हूँ. लड़की के घर का माहौल ठीक नहीं था, उनमे आपस में लगभग रोज ही भयंकर कलह होती थी. उनकी आर्थिक स्थिति भी बेहद ख़राब थी. हालांकि उनके पास खेती वाली जमीन काफी है, किन्तु वो लोग एक इंच जमीन भी बेचने के पक्ष में नहीं थे. मुझे लगा कि मुझे लड़की की मदद करनी चाहिए. घर के ख़राब माहौल और विवाह होने की अनिश्चितिता को देखते हुए मुझे चिंता थी कि कहीं वो आत्महत्या न कर ले. उसके पिताजी को अपना पूरा सहयोग देने का वादा करते हुए बहुत मुश्किल से मैंने उन्हें पौने तीन लाख रूपये खर्च करने को राजी किया.

तेरे महिलां दे विच विच वे,
बाबुल चरखा कौन कत्ते?
मेरियां कत्तन पोतरियाँ,
धिए घर जा अपणे.
लड़की विवाह के बाद अपने पिता से पूछ रही है- पिताजी, अब तुम्हारे महल यानी घर में चरखा पर सूत कौन काटेगा?
पिताजी कह रहे हैं- अब मेरी पोतियाँ चरखे पर सूत काटेगी. पुत्री, अब तू अपने घर जा.

कृपालु पाठकों, इस मार्मिक और मधुर विवाह गीत की प्रस्तुति के साथ साथ आदर्श ‘प्रेम विवाह’ की चर्चा भी जारी रहेगी. ये एक सुखद संयोग ही रहा कि दोनों का प्रेम काशी में हुआ और विवाह भी काशी में ही हुआ. बाबा विश्वनाथ जी की यहीं इच्छा थी. यहाँ पर मेरे सिवा उनका कोई और रिश्तेदार न होने के कारण जब लड़के और लड़की वालों ने काशी में विवाह के आयोजन की सारी जिम्मेदारी मुझे देने की इच्छा प्रकट की तो मैंने लड़के वालों से एक शर्त रखी और वो कि ये एक आदर्श विवाह होगा और आप लोग लड़की वालों पर दहेज़ के लिए कोई दबाब नहीं डालेंगे. वो स्वेच्छा से जो भी देना चाहें, वो दें. लड़का और उसके परिजनों ने मेरी बात मान ली. सबकुछ तय हो गया तो एक अंदाजा मैंने लगाया कि कम से कम कितने बजट में ये शादी हो जाएगी. दो लाख से बजट बढ़ते बढ़ते तीन तक चला गया. लड़की वाले दस बीस हजार करके एक महीने में लगभग तीन लाख रूपये भेजे. विवाह के बाद सारा हिसाब करने पर पता चला कि मेरी जेब से भी लगभग पैंतालीस हजार रुपए इस प्रेम विवाह यज्ञ में लग चुके हैं. बहती गंगा में सभी हाथ धोने को आतुर रहते हैं. सो मौके का फायदा उठाते हुए मेरी श्रीमती जी और माताजी ने अपनी पायल बदलने के साथ साथ अपने कान के गहने भी बदल के नए ले लिए. मेरे पास उतना निजी बजट न होते हुए भी उनकी बात मानना जरुरी था, क्योंकि उनकी बात न मानने पर वो लोग वैवाहिक समारोह में न शामिल होने की धमकी दे रहे थे.

तेरे महिलां दे विच विच वे ,
बाबुल गुडियां कौण खेडे?
मेरियां खेडण पोतरियाँ ,
धिए घर जा अपणे .
लड़की विवाह के बाद अपने पिता से पूछ रही है- पिताजी, अब तुम्हारे महल यानी घर में गुड़ियों से कौन खलेगा?
पिताजी कह रहे हैं- अब मेरी पोतियाँ उन गुड़ियों से खेलेगी. पुत्री, अब तू अपने घर जा.

Traditional-Mehndi-Wedding-Songs-575x33054654654654645654
मित्रों, विवाह की तारीख पांच मार्च तय हो जाने के बाद मैंने लगभग एक माह पूर्व ही अपने आश्रम के सहयोगियों की एक मीटिंग बुलाई और उन्हें बताया कि कम बजट में हमें एक बहुत अच्छे विवाह समारोह का आयोजन करना है और ऐसा करके हमें समाज के सामने एक आदर्श प्रस्तुत करना है. नियमित रूप से आश्रम आने वाले मेरे सभी सहयोगी सहर्ष तैयार हो गए. सबसे पहले हम धर्मशाला की तलाश में निकले. अपने क्षेत्र में धर्मशालाएं तो कई मिलीं, किन्तु वहां पर अव्यवस्था, टूटफूट और गंदगी का ढेर देख लॉन की ओर रुख किये. मेन रोड पर स्थित परिचित के एक गेस्ट हाउस वाले लॉन में गए. बात नब्बे हजार से पैकेज के साथ शुरू हुई और पन्द्र हजार में बिना पैकेज के देने पर मैंने बात समाप्त की. लड़की वाले शादी वाली तारीख से एक दिन पहले आने वाले थे और एक दिन बाद जाने वाले थे, इसलिए चार और छह मार्च को एक हॉल और एक कमरा बुक करवा दिया, ताकि लड़की वालों और उनके मेहमानों को किसी भी तरह से दिक्कत न हो. शादी के बाद छह मार्च को वो दोपहर के बाद जाने वाले थे, क्योंकि उन लोंगो की ट्रेन शाम को थी. आश्रम में हर भंडारे पर सेवा करने वाले एक हलवाई को भी उनके लिए खाना बनाने की खातिर बुक कर दिया था, जिसने अपनी टोली के साथ लगातार तीन दिन तक घराती और बाराती सबकी बहुत ही अच्छे ढंग से खातिरदारी की और बहुत लाजबाब भोजन के साथ साथ अन्य ढेर सारे पकवान भी बनाये.
मेरा छुट्या कसीदा वे,
बाबुल दस कौन कडे?
मेरियां कडन पोतरियाँ ,
धिए घर जा अपणे.
लड़की विवाह के बाद अपने पिता से पूछ रही है- पिताजी, इस घर में मेरे बहुत से कार्य अभी अधूरे रह गए हैं, उन्हें कौन पूरा करेगा?
पिताजी कह रहे हैं- अब मेरी पोतियाँ (लड़के की लड़कियाँ) तेरे अधूरे रह गए कार्यों को पूरा करेंगी. पुत्री, अब तू अपने घर जा.

प्रिय बंधुओं, शादी की एक बड़ी व्यवस्था में कुछ न कुछ बाधाएं और परेशानियां तो आती ही हैं. इतनी अच्छी व्यवस्था करने पर भी जब चार मार्च की आधी रात को जब लड़की वाले आये तो गेस्ट हाउस वाले ने ढाई हजार रूपये की और मांग की, क्योंकि उसके अनुसार चार तारीख सुबह छह बजे से शुरू होती थी. हालाँकि उनसे पहले ही मेरी बात हो चुकी थी कि वो आधी रात को मेरे मेहमानों के लिए रूम दे देंगे. मैं उन्हें ढाई हजार किराया भी दे चूका था. लड़की वाले पुरे झुण्ड सहित आधी रात को मेरी कुटिया पर आ पहुंचे. जवान लडकिया, औरते, बच्चे, और बूढ़े सब आधीरात को किसी अनहोनी की आशंका से भयभीत चोर लुटेरे और कुत्तों से बचते बचाते हुए छह किलोमीटर मय कीमती सामान के साथ पैदल चलकर मेरे पास आ पहुंचे थे. मुझे बहुत दुःख हुआ और गेस्ट हाउस वाले पर बहुत गुस्सा भी आया किया कि उसमे इतनी भी इंसानियत शेष नहीं बची थी कि मेहमानों को रुम दे देता और सुबह मुझसे हिसाब करता. इतने सारे मेहमानों के लिए छोटी पड़ती जगह पर अपना दिल बड़ा करते हुए मैंने मेहमानो का स्वागत किया. रात को उन्हें बिस्कुट पानी खिलाया पिलाया और उनके सोने की समुचित व्यवस्था कर दिया. मेहमानों की सेवा में तन मन से जुटी श्रीमतीजी की खूब खरी खोटी भी अपने कमरे में आकर अकेले में सुननी पड़ी. वो मेरी लॉन वाली व्यवस्था में आई दिक्कत से और घर के धर्मशाला बन जाने से बेहद नाराज थीं.

तेरे बागां दे विच विच वे,
बाबुल डोला नहीं लंघदा.
इक इक टहनी पुट देवाँ,
धिए घर जा अपणे.
लड़की बगीचे से गुजरते हुए अपने पिता से कह रही है- पिताजी, मेरी डोली आपके बगीचे के पेड़ों की टहनियों के बीच फंस गई है.
पिताजी कह रहे हैं- पुत्री, मैं उन टहनियों को तोड़ के फेंक दूंगा, जो तेरी डोली को आगे बढ़ने से रोक रही हैं. बेटी, अब तू अपने घर जा.

मित्रों, सुबह मैंने अपने परिचित के एक पुलिस अधिकारी को सारी बात बताई. मैंने कहा कि रात को मेरे मेहमानों के साथ कोई भी कोई भी दुखद घटना घट सकती थी. आपलोग लॉन वाले को समझा दें, ताकि वो भविष्य में फिर किसी के साथ ऐसा घटिया व्यवहार न करे. पुलिस वालों ने पूरी सहानुभूति दिखाई और दरोगा जी मय फ़ोर्स के साथ लॉन में पहुँच गए. इधर नहा धोकर नाश्ता पानी कर चुके मेहमानो को गाडी बुलाकर मैं लॉन में पहुंचाया. लॉन वाले ने अपनी गलती स्वीकार की, लड़की वालों से माफ़ी मांगी और पुलिस को भरोसा दिलाया कि वो अब पूरा सहयोग करेगा. उसने कुछ चीजों में अड़ंगा लगाने के बाद अपना वादा तो निभाया, किन्तु शादी के बाद दो भगोना गायब मिले और टेंट वाले के दो जनरेटरों के पाइप भी कटे हुए मिले. फिर पुलिस बुलाने की नौबत आई तो एक जगह पर छिपाके रखे गए दोनों भगोने मिल गए. अन्तोगत्वा वैहिक कार्यक्रम तो सकुशल सम्पन्न हो गया, लेकिन मेरे लिए कई व्यक्तिगत दुःख भी छोड़ गया. स्वयं जाकर जिन्हे अपने हाथों से कार्ड दिया और जिन्हे मनाने में अपना पूरा कीमती दिन बिता दिया, वादा करके भी वो नहीं आये. दिल को बहुत ठेस पहुंची. इस शादी की एक ख़ास बात ये कि शादी का कार्ड हमने बहुत सस्ता और विजिटिंग कार्ड की तरह छपवाया था, जिसे जेब में आराम से रखा जा सके और कार्यक्रम स्थल तक सुगमता से पहुँचने में उसकी मदद भी ली जा सके. लोंगो को हमारा ये प्रयोग बहुत अच्छा लगा.

तेरियां भिडीयाँ गलियाँ च वे,
बाबुल डोला नहीं लंघदा.
इक इक इट पुट देवाँ,
धिए घर जा अपणे.
लड़की गलियों से गुजरते हुए अपने पिता से कह रही है- पिताजी, आपके घर से निकलकर जाने वाली संकीर्ण और ऊबड़खाबड़ गलियों में मेरी डोली फंस रही है.
पिताजी कह रहे हैं- पुत्री, तेरी डोली की राह में रोड़े अटका रही एक एक ईंट को मैं उखाड़ फेंकूगा. बेटी, अब तू अपने घर जा.

krishna-rukmini-weddingiuiui
पाठक मित्रों, आश्रम से जुड़े सभी लोंगो को वैवाहिक समारोह में आमंत्रित करना संभव नहीं था, इसलिए नियमित रूप से आने वाले मात्र सौ लोंगो को आमंत्रित किया गया था. यह भी बहुतों को दुखी करने वाला निर्णय था, परन्तु हमारी मज़बूरी थी. कुल तीन सौ लोंगो के लिए बढियां भोजन की व्यवस्था की गई थी. प्रभु कृपा से कहीं कोई कमी नहीं हुई. मेरे एक रिश्तेदार ने प्लेट में भोजन देने पर रात को दो बजे खूब बवाल किया. गर्दन में तेज दर्द और चक्कर आने से ग्रसित होने पर भी मुझे भागकर जाना पड़ा और पत्तल में भोजन देकर मामला शांत कराना पड़ा. वर, जो सोलह साल पहले मेरी शादी में सहबलिया बना था, उससे मैंने केवल इतना ही कहा था कि मेरी शादी के समय मेरे ससुर जी के पास मात्र बीस हजार रुपए थे और उतने में ही मेरी शादी हुई. लड़के ने मेरी बात का मान रखा और पूरा सहयोग भी किया, किन्तु सुबह बिदाई के समय वर और वधु आशीर्वाद तक लेने मेरे पास नहीं आये. लड़की वाले बिना हिसाब किताब देखे भाग गए. इस भय से कि हिसाब होने पर कहीं और रूपये न देना पड़े. शायद अब किसी को मेरी जरुरत नहीं थी. मैं तो बस वर-वधू के सुखद भविष्य की कामना करता रहा और नम आखों से भगोने धोते, गाडी में सामान लादते और वैवाहिक कार्यक्रम के अंत तक सेवा में जुटे अपने आश्रम के सहयोगियों को निहारता रहा. धन्य हैं वे. उन्होंने निष्काम भाव से बहुत सेवा की है. मैं उनका बहुत ऋणी और एहसानमंद हूँ.
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
(आलेख और प्रस्तुति= सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी, प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम, ग्राम- घमहापुर, पोस्ट- कंदवा, जिला- वाराणसी. पिन- २२११०६)
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh