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उमर बह जानी है.. इसकी चिंता न कर आइये हँसिये मुस्कुराइये

सद्गुरुजी
सद्गुरुजी
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उमर बह जानी है.. इसकी चिंता न कर आइये हँसिये मुस्कुराइये

कोई लौटा दे मेरे, बीते हुए दिन
बीते हुए दिन वो हाय, प्यारे पल छिन
कोई लौटा दे …

अंकल.. अंकल ..अंकल.. आंटी.. आंटी.. आंटी,..
आपके बालों में आ रही सफेदी देखकर किसी ने आपको अंकल या आंटी कहा और आपके दिल पर छुरियां चल गईं. पर आप दुखी मत होईये. इसका त्वरित समाधान है. बच्चे बापको भैया या दीदी कहें, इसके लिए बाल काले कीजिये और फलां हेयर डाई का प्रयोग कीजिये. मोटापा बहुत बढ़ गया है और आपकी तोंद निकल गई है, तो बच्चे अंकल या आंटी तो कहेंगे ही. लेकिन आप परेशान मत होइए. बॉडी को स्लिम शेप देने वाले और तुंरन्त कई किलो वजन घटा देने वाले ये चमत्कारी कपडे मंगवाइए और पहनते ही इसका कमाल देखिये. बच्चे आपको देखते ही भैया या दीदी कहकर पुकारने लगेंगे और आपके दिल को ऐसा सुकून मिलेगा कि पूछिए मत..
Laughingtrtr
मित्रों! इस तरह के चमत्कारी और लुभावने विज्ञापन टीवी पर आप रोज ही देखते होंगे. आइये आज कुछ हलके फुल्के मजाकिया अंदाज में इसी विषय पर चर्चा हो जाये. आपके होंठों पर आई मुस्कराहट और हंसी ही मेरे लिए सबसे बड़ा पुरस्कार होगी. चर्चा अपने ही घर से शुरू करता हूँ. कुछ साल पहले कि बात है मेरी छोटी बहन उन दिनों पीएचडी कर रही थीं. वो एक दिन अपनी सहेली के साथ कहाँ जा रही थीं कि रास्ते में क्रिकेट खेल रहे कुछ बच्चों ने उन्हें दीदी कि जगह ‘आंटी’ कहकर सम्बोधित कर दिया. बस फिर क्या था, दिल पे छुरियां चल गईं- ‘अरे अभी शादी भी नहीं हुई और बच्चे आंटी कहने लगे’. वो शाम को बाल काले करने वाला हेयर डाई लेकर घर लौटीं. जैसे ही हेयर डाई उसने बालों में लगाया, खुजली शुरू हो गई और कुछ ही देर में बहुत तेजी से पानी निकलने लगा. सिरदर्द और चक्कर भी आने शुरू हो गए. सब लोग बहुत घबरा गए. तुरंत उन्हें डॉक्टर के पास ले के जाना पड़ा. केमिकल मिली हेयर डाई का ये रिएक्शन था.

पूरे चौबीस घंटे वो परेशान रहीं. वो इतनी डर गईं कि शरमाते और हँसते हुए कहने लगीं- ‘भाड़ में गई ऐसी हेयर डाई.. बच्चे आंटी कहते हैं तो कहने दो..’ अब तो उनकी शादी हो चुकी है और एक बच्ची की माँ भी बन चुकी हैं, पर अभी भी हमलोग उन्हें चिढ़ाने के लिए अक्सर उस वाकये का जिक्र कर ही देते हैं. बहुत समय तक हम लोग शहर के विभिन्न क्षेत्रों में किराए के मकान में रहे. एक जगह पर हमारे पड़ोस में पेंतीस साल के लगभग की एक महिला रहती थीं. वो अक्सर मुहल्ले के बच्चों को इकट्ठा कर उन्हें टॉफी बांटती थीं और दीदी कहने के लिए कहती थीं. चालाक बच्चे दीदी बोलकर टॉफी ले लेते थे और मुंह में डालते ही थैंक्यू आंटी बोलने लगते थे और वो चिढ़कर उन्हें मारने दौड़ती थीं. हँसते चिढ़ाते हुए फुर्ती से भागने वाले तेजतर्रार बच्चे भला उनके हाथ कहाँ आने वाले थे. वो खिसियाकर बड़बड़ाती भर रह जाती थीं- ‘बदमाश.. शैतान कहीं के.. कल आना टॉफी लेने.. फिर बताउंगी..’ कुछ रोज बाद बच्चे आते थे तो बड़ी मासूमियत से ‘सॉरी दीदी’ बोलते थे और थोड़ी देर की मानमनौवल के बाद उनसे टॉफी लेकर मुंह में डालते ही खुराफाती बच्चे फिर उन्हें ‘आंटी’ कहकर चिढ़ाने लगते थे और उन्हें ठेंगा दिखाते हुए भाग खड़े होते थे. उस महिला के अपने कोई बच्चे नहीं थे, सो अक्सर इसी तरह से वो अपना मन बहला लेती थीं.

एक और मजेदार वाकया है. पैंतीस-छत्तीस साल के लगभग के एक पत्रकार महोदय हैं. पुराने परिचित हैं, इसलिए अक्सर मिलने आ जाते हैं. एक दिन आये तो मुझसे शिकायत करने लगे- ‘बताइए.. न शादी हुई और न बच्चे हुए.. फिर भी लड़के अक्सर मुझे अंकल बोल देते हैं.. बड़ा खराब लगता है..’ फिर कुछ देर रूककर बोले- ‘पर आज मैं एक लड़के को बहुत करारा सबक सिखा के आ रहा हूँ.. वो जल्दी भूलेगा नहीं और फिर कभी मिला तो मुझे अंकल कहने की हिम्मत नहीं करेगा..’ मैंने पूछा- ‘आपके साथ ऐसा हुआ क्या कि किसी को सबक सिखाने की जरुरत आ पड़ी.’ वो कुर्सी पर आराम से बैठ बताने लगे- ‘घर से सुबह रेलवे स्टेशन जाने के लिए निकला तो मुहल्ले का एक लड़का बहुत चिरौरी मिनती करने लगा कि साहब.. स्टेशन जा रहे हो तो हमें भी अपने स्कूटर पर बिठा के ले चलो. मैं भी कुछ जरुरी काम से वहीँ जा रहा हूँ.’ मैं दया करके उसे अपने स्कूटर पर बैठा लिया और आधे घंटे बाद बारह किलोमीटर दूर रेलवे स्टेशन पर उसे ले के पहुँच गया, पर वो एहसानफरामोश मेरी गाडी से उतरते ही मुझे ‘थैंक्यू अंकल’ कहकर जाने लगा. मेरे तो तन मन में आग लग गई. उसे कसकर डांटते हुए अपने स्कूटर पर मैं बैठाया और उसे अपने मुहल्ले में वहीं ले जाकर छोड़ दिया, जहाँ से उसे अपने स्कूटर पर बैठाया था.’

जब भी इस वाकये को याद करता हूँ, बहुत हंसी आती है. एक बार एक खिलौने की दूकान पर मैं बैठा था. तभी एक बच्चे के साथ तीस-बत्तीस साल की एक महिला आई और लगभग दो हजार के खिलौने पसंद कर एक तरफ रखवा दी. दुकानदार के छोटे भाई ने तभी एक खिलौना उठाते हुए उस महिला से अनुरोध किया- ‘माताजी.. छोटे बच्चे के लिए ये भी एक बढियां खिलौना है..’ महिला गुस्से से आग बबूला हो दुकानदार पर भड़क गई- ‘तू मुझे माताजी क्यों बोला.. मैं तुझे माताजी दिख रही हूँ.. अब मैं तेरी दूकान से एक भी खिलौना नहीं लूंगी..’ और यह कहकर वो खिलौने के लिए रोते अपने बच्चे को घसीटते हुए वहां से चल दी. दुकानदार ‘सॉरी मैडम’ बोलते हुए बस गिड़गिड़ाता रह गया. चालाक दुकानदार महिलाओं को ‘दीदी’ और ‘मैडम’ कहकर तथा पुरुषों को ‘भैया’ और ‘सर’ कहकर खूब चूना लगाते हैं. ग्राहक बूढ़ा है या जवान इससे उन्हें क्या मतलब. ग्राहक को खुश करके उन्हें तो अपनी तिजोरी भरने से मतलब है. एक परिचित की लड़की है, जो बिजनेस करती है. वो सबको ‘भैया’ और ‘दीदी’ कहके बुलाती है और उसका बिजनेस भी बहुत अच्छा चल रहा है.
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अधेड़ावस्था में कदम रखने के साथ साथ दाढ़ी, मूंछ और सिर के बाल सफ़ेद होने ही हैं. खा पी के मोटे होते शरीर के साथ ही तोंद भी निकलनी ही है. अभी कुछ दिन पहले एक महिला अपने अधेड़ आदमी को लेकर मेरे पास आई और मुझसे अनुरोध करने लगी कि मैं उसके घर बैठने वाले पति को समझाऊं, ताकि वो सब्जी बेचने के लिए बाजार जाने को तैयार हो जाये. मैंने उस महिला के पति से पूछा-‘क्यों भाई.. सब्जी बेचने बाजार क्यों नहीं जाते हो?’ वो खिसियाते हुए बोले- ‘सब्जी बेचे का जाईं.. ससुर हमसे उमर में बूढ बूढ अदमी चाचा अउर लईका सब हमके दादा कहेलेसन.’ बड़ी हंसी आई. किसी तरह समझाकर उन्हें विदा किया. दिखावटी-बनावटी जीवन तथा भोग और सौंदर्य के पीछे दिनरात भाग रहा इंसान आज अपनी उम्र के तेज बहाव को लेकर सबसे ज्यादा चिंतित है. समय की तेज धारा में बहते हुए हम सबकी उम्र बहुत तेजी से बहनी ही है. इस सत्य को नाराज होकर या चिंतित होकर नहीं बल्कि हँसते मुस्कुराते हुए स्वीकार कीजिये. जीवन की तमाम समस्याओं को झेलते हुए और उन्नति के लिए प्रतिदिन जारी जीवन भागदौड़ के बीच जो घडी हम प्रेम और ख़ुशी से जी लेंगे, बस वही याद रह जानी है.
समय की धारा में,
उमर बह जानी है!
जो घड़ी जी लेंगे,
वही रह जानी है!!

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(आलेख और प्रस्तुति= सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी, प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम, ग्राम- घमहापुर, पोस्ट- कंदवा, जिला- वाराणसी. पिन- 221106)
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