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बह रही आंसुओं की धार, पर होगी IPL के मनोरंजन की झंकार

सद्गुरुजी
सद्गुरुजी
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भाई रे,
गंगा और जमुना की गहरी है धार,
आगे या पीछे सबको जाना है पार.
धरती कहे पुकार के,
बीज बिछा ले प्यार के.
मौसम बीता जाय,
मौसम बीता जाय…

बहुत दुखी और आक्रोशित ह्रदय के साथ ये ब्लॉग लिखने बैठा तो कवि शैलेन्द्र जी के ये बोल याद आ गए. कितना सुन्दर और सही जीवन दर्शन उन्होंने प्रस्तुत किया है. गंगा अर्थात सत्य का ज्ञान और यमुना अर्थात सत्य की अनुभूति दोनों ही गहरी नदियों के समान हैं. इनसे कोई कितना भी बचे, किन्तु बच नहीं सकता है. अन्तोगत्वा इन्हे तैर के ही सबको उस पार जाना है. भाई मेरे उस पार जाने से पहले सूखे की मार झेल रही और बंजर हो चली धरती की पुकार तो सुन लो. कहीं से भी मदद मिलने की कोई उम्मीद न देख आत्महत्या करने के लिए मजबूर हो रहे भूखे नगे किसानों की आँखों से जो बेबसी और लाचारी की अश्रुधारा बह रही है, उसे पोंछकर कुछ तो प्यार के बीज बो लो. अभी तो गर्मी की शुरुआत हुई है और देश के लगभग 12 राज्य सूखे की मार से इतनी बुरी तरह से प्रभावित हैं कि इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट को केंद्र सरकार और बीसीसीआई दोनों को ही कड़ी फटकार लगानी पड़ी है. केंद्र और राज्य सरकारों पर ये आरोप लग रहा है कि मंत्री अपने निजी हित के लिए राज्य के किसी खास हिस्से को सूखाग्रस्त घोषित कर पैसा और राहत सामग्री बाँट रहें हैं, जबकि राज्य के दूसरे सूखाग्रस्त इलाके के लोग बिना किसी मदद के भूखे प्यासे मर रहे हैं.
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दुनिया में शायद भारत ही एक ऐसा देश होगा, जहाँ पर प्राकृतिक आपदा के समय भी अपने निजी हित साधने और वोट बैंक की राजनीति करने की पूरी कोशिश होती है. आज देश के 12 राज्य भीषण सूखे की चपेट में हैं और ऐसे में लोगों को सूखे से निजात दिलाने के लिए राज्यों के साथ साथ केंद्र सरकार की भी विशेष जिम्मेदारी बनती है कि वो बिना किसी क्षेत्रीय, धार्मिक और जातीय भेदभाव के तत्काल समुचित कार्यवाही करे. सूखाग्रस्त क्षेत्रों के किसान दोहरी मार झेल रहे हैं, एक तो सूखे की और दूसरे बढ़ते कर्ज की. आज जरुरत इस बात की है कि देश के सभी सूखा प्रभावित लोगों को तत्काल जरूरत की सामग्री दी जाये और जिन किसानों ने ऋण लिया है उसको चुकाने की अवधि को एक साल तक बढ़ा दिया जाये. कितने अफ़सोस कि बात है कि इस कार्य के लिए देश की अदालतों को केंद्र और राज्य सरकारों को सोते से जगाना पड़ रहा है और उन्हें बिना किसी भेदभाव के अपना राजधर्म निभाने का स्मरण कराना पड़ रहा है.

तेरी राह में कलियों ने नैन बिछाये
डाली-डाली कोयल काली तेरे गीत गाये
तेरे गीत गाये
अपनी कहानी छोड़ जा,
कुछ तो निशानी छोड़ जा
कौन कहे इस ओर तू फिर आये न आये
मौसम बीता जाय, मौसम बीता जाय.

आईपीएल की तैयारी जोर-शोर से जारी है. बीसीसीआई के अधिकारीयों से लेकर इससे जुड़े खिलाड़ी, क्रिकेट प्रेमी, सट्टेबाज, नेता, अभिनेता व उद्योगपति सभी इसके शुभारम्भ होने की प्रतीक्षा में पलक पावड़े बिछाए बैठे हैं. आईपीएल की आड़ में प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से बेशुमार दौलत बटोरने वाले लोग कुछ ज्यादा ही उत्साहित हैं. देश रूपी वृक्ष के हर डाल पर बैठी पेशेवर और बिकाऊ मीडिया रूपी कोयल पूरे जोश-खरोश के साथ आईपीएल के गुणगान के गीत गा रही है. देश के अनेक सूखाग्रस्त इलाके के लोग जहां पानी की एक बूंद के लिए तरस रहे हैं, वहीँ दूसरी तरफ आईपीएल जैसे आयोजन में हर जगह टनों लीटर पानी बहाया जा रहा है. एक तरफ जहाँ किसानों की आत्महत्याओं से न जाने कितने घर-परिवार के लोगों के बहते हुए आंसू रो-रो कर सूख रहे हैं, वहीँ दूसरी तरफ सूखे के मातमी माहौल के बीच आईपीएल के मनोरंजक मैचों वाले बड़े उत्सव तैयारी भी चल रही है, जिसमे मनोरंजन के साथ साथ सट्टेबाजी, नाचगाने और हंसी-ठहाके सब होंगे. धिक्कार है उनपर, जिनमे जरा भी मानवीय संवेदना नहीं है. जो पूरी तरह से विवेक शून्य और पत्थर दिल हो चुके है. यदि उनमे जरा भी इंसानियत जिन्दा होती तो या तो इस आयोजन को रद्द कर देते या फिर इससे होने वाली सारी कमाई सूखा पीड़ितों पर लुटा देते. कितना शर्मनाक परिदृश्य है, कहीं बह रही है सूखा पीड़ितों के आंसुओं की धार और इससे बेखबर हो कहीं होने वाली है दौलत, ग्लैमर और मनोरंजन की झंकार.

सूखे के बावजूद भी पानी की बरबादी पर बॉम्बे हाईकोर्ट ने बीसीसीआई को फटकार लगाते हुए कहा है कि आईपीएल ज़्यादा अहम हैं या पानी? सरकार जनता को पानी बचाने का सन्देश देती है, किन्तु उसकी संस्थाएं खुद ही सरकारी संदेशों का पालन नहीं करती हैं. कितना बड़ा विरोधाभास है? उधर सुप्रीम कोर्ट ने बीसीसीआई को करारा झटका देते हुए कहा है कि आपने खेल के विकास के लिए कुछ नहीं किया है, जबकि बीसीसीआई का सबसे बड़ा काम देशभर में क्रिकेट को बढ़ावा देना है. ऐसा लगता है कि आपने आपस में ही एक दूसरे को फायदा पहुंचाने के लिए संस्था बना रखी है. माननीय सुप्रीम कोर्ट ने बहुत कटु सत्य बयान किया है. बीसीसीआई नामक दुनिया की सबसे अमीर क्रिकेट संस्था की यही सच्चाई भी है, वहां पर हमेशा ही दो चीजें हावी रही हैं- घटिया राजनीति और अंधाधुंध कमाई. इसलिए आपस में भिड़ंत भी अक्सर होती रहती है.
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लातूर महाराष्ट्र प्रान्त के दक्षिण में स्थित एक ऐतिहासिक शहर है, जिसे दक्षिण काशी के नाम से भी जाना जाता है. पंचगंगा नदी के तट पर बसे इस जिले में भारतीय पुराणों में वर्णित देवी महालक्ष्मी का मंदिर है जो भारत के प्रमुख शक्तिपीठों में एक है. इस नगर को राष्ट्रकूट राजा अमोघवर्ष ने बसाया था और छत्रपति साहू जी महाराज ने इसे आधुनिक रूप देकर विकसित किया था. महाराष्ट्र के इस ऐतिहासिक जिले की इस समय भीषण सूखे से हालत इस कदर बदतर हो गयी है कि काफी लोग यहाँ से पलायन कर गए हैं और जो हैं, उन लोगो में पानी के लिए लूट और खूनी झड़पे होने लगी हैं, जिसको देखते हुए सूखा पीड़ित लातूर जिले में धारा-144 लगा दी गई हैं. महाराष्ट्र के अन्य कई जिले भी इसी तरह की भयानक स्थिति और भीषण सूखे की मार झेल रहे हैं. केंद्र सरकार ने सूखा प्रभावित लातूर जिले में अगले 15 दिनों के भीतर ट्रेन से पानी मुहैया करने का एक अच्छा निर्णय लिया है. इसके अलावा भी कई समाधान हैं, जैसे लंबे पाइपलाइन के जरिये भी मराठवाड़ा क्षेत्र के सूखा प्रभावित जिलों तक पानी पहुंचाया जा सकता है, बस जरुरत है दृढ राजनीतिक इच्छा शक्ति की, जिसका केंद्र और राज्य दोनों स्तर पर ही अभाव नजर आ रहा है. अंत में सूखा पीड़ितों के प्रति अपनी मानवीय संवेदनाएं प्रकट करते हुए कवि शैलेन्द्र के ये आशावादी बोल प्रस्तुत हैं-

मन की बन्शी पे तू भी कोई धुन बजा ले भाई
तू भी मुस्कुरा ले
अपनी कहानी छोड़ जा,
कुछ तो निशानी छोड़ जा
कौन कहे इस ओर तू फिर आये न आये
हो भाई रे, भाई रे, भाई रे, ओ ओ
मौसम बीता जाय, मौसम बीता जाय

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(आलेख और प्रस्तुति= सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी, प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम, ग्राम- घमहापुर, पोस्ट- कंदवा, जिला- वाराणसी. पिन- 221106)
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