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शंकराचार्य के विवादित तर्क हिन्दू जनमानस को स्वीकार्य नहीं हैं

सद्गुरुजी
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शंकराचार्य के विवादित तर्क हिन्दू जनमानस को स्वीकार्य नहीं हैं
पिछले कुछ दिनों से मैं देख रहा हूँ कि मुझसे मिलने के लिए आने वाले लोग बातों ही बातों में शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी की चर्चा छेड़ देते हैं और उनकी कही हुई बातों पर मेरा नजरिया जानने की कोशिश करते हैं. बहुत से लोग बड़े ध्यान से मेरे ब्लॉग पढ़ते हैं और मिलने पर उस विषय पर चर्चा भी करते हैं. मेरी किसी बात से सहमत होते हैं और किसी बात से नहीं भी. हर बात को सच्चाई और तर्क की कसौटी पर जांच परख कर ही स्वीकार या अस्वीकार करने वाले लोंगो की हिन्दुओं में भी कोई कमी नहीं है, इसलिए कोई भी व्यक्ति या धर्मगुरु ये दावा नहीं कर सकता कि हिन्दू जनमानस उसके कहे अनुसार चल रहा है. हाँ, लोकतंत्र में अपने विचार रखने की स्वतंत्रता सबको है और उसपर प्रतिक्रिया व्यक्त करने की स्वतंत्रता भी सबको है. आइये निष्पक्ष और तार्किक ढंग से शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी के विवादित बयानों पर विचार किया जाये कि वो हिन्दू जनमानस के लिए स्वीकार करने योग्य हैं या नहीं?
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द्वारिका-शारदापीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी पिछले कई दशकों से समय-समय पर विवादित बयान देते रहे हैं और अपने बयानों के जरिये स्वयं ही धर्मतन्त्र के माध्यम से राजनीति करते रहे हैं, हालाँकि धार्मिक मामलों पर राजनीति करने का दोषारोपण वो हिन्दू विचारधारा से प्रभावित राष्ट्रवादी दलों और संगठनों पर मढ़ते रहे हैं. अभी हाल ही में उनके द्वारा दिए हुए कुछ विवादित बयानों पर चर्चा करने से पूर्व उन बयानों पर भी जरा गौर कीजिये. अपनी हरिद्वार की यात्रा के दौरान शंकराचार्य जी ने कहा कि साईं एक फकीर थे और वो अमंगलकारी थे. जो पूजा करने लायक नहीं हैं, जब उनकी पूजा होती है तब आपदा आती है. उन जगहों पर सूखा, बाढ़ और अकाल मौत होती हैं और महाराष्ट्र में यह सबकुछ हो रहा है. सूखे के लिए साईं पूजा को जिम्मेदार ठहराते हुए उन्होंने कहा कि अगर सूखे से बचना है तो तुरंत साईं की पूजा बंद होनी चाहिए. महाराष्ट्र के आराध्य भगवान गणेश जी है, इसलिए गणेश जी की पूजा ही होनी चाहिए.

एक धर्मगुरु के दिए हुए इस तर्क पर यदि अपने विवेक का प्रयोग करते हुए निष्पक्षता से विचार करें तो यही पाएंगे कि यह बहुत भ्रामक और हिन्दू जनमानस में अन्धविश्वास को बढ़ावा देने वाला बयान है. हर पढ़ा लिखा समझदार आदमी यह सवाल कर रहा है कि यदि महाराष्ट्र में साईं पूजा की वजह से सूखा पड़ा है तो देश के बाकी 11 राज्यों में पड़े सूखे की वजह क्या है? दूसरी बात ये कि महाराष्ट्र में क्या हिन्दू सिर्फ साईं बाबा और गणेश जी कि ही पूजा करते हैं? इसका जबाब है, नहीं. अधिकतर हिन्दू बहुदेववाद को मानने में विश्वास करते हैं और पूजा के समय कई देवताओं की पूजा करते हैं. अतः महाराष्ट्र में साईं पूजा को सूखे की वजह मानना तार्किक दृष्टि से सही नहीं है. ये मुद्दा शंकराचार्य जी ने पिछले कुछ सालों में कई बार उठाया है. दरअसल इस मुद्दे की मूल वजह शिरडी के साईंबाबा मंदिर में बहुत बड़ी राशि में चढ़ने वाला चढ़ावा है. कुछ साल पूर्व उन्होंने वहां दान देने पर आपत्ति जताते हुए कहा था कि दान दाताओं को सोचना चाहिए कि वे दान कहां कर रहे हैं?
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दूसरा विवादित बयान शंकराचार्य जी ने यह कहकर दिया है कि‘शनि शिंगणापुर मंदिर में महिलाओं का प्रवेश दुर्भाग्यपूर्ण साबित होगा, क्योंकि शनि एक क्रूर ग्रह है और उसकी पूजा से महिलाओं के खिलाफ अपराध बढ़ेंगे. उन्होंने कहा कि शनि भगवान् नहीं एक ग्रह है और ग्रह की शांति होती है पूजा नहीं की जाती. शंकराचार्य जी यह बयान देते हुए यह भूल गए कि ग्रह शांति कराना भी तो एक तरह की पूजा ही है, महाराष्ट्र के शनि शिंगणापुर मंदिर में महिलाओं को प्रवेश की अनुमति मिलना धार्मिक दृष्टि से भले ही एक विवादित विषय हो, लेकिन यह निर्विवाद रूप से सत्य है कि लैंगिक समानता लाने के क्षेत्र में हुई इस सदी की यह एक बहुत बड़ी ऐतिहासिक क्रांति है. लैंगिक भेदभाव वाला ये मुद्दा उठाने वाली महिलाओं और उस पर बहुत सही और न्यायपूर्ण निर्णय देने वाले कोर्ट को इसका पूरा श्रेय जाता है. शंकराचार्य जी ऐसे विवादित बयान देकर शम्बूक रूपी तपस्वी दलित समाज और दुर्गा रूपी महिलाओं के प्रति आज भी हो रहे घोर अन्याय और सामाजिक भेदभाव को ही बढ़ावा दे रहे हैं, जो हिन्दू समाज में एकजुटता नहीं होने और बड़े पैमाने पर दलित हिन्दुओं के हो रहे धर्म परिवर्तन का मूल कारण है, इसलिए उनके विवादित तर्क हिन्दू जनमानस को स्वीकार्य नहीं हैं. जयहिंद!!

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(आलेख और प्रस्तुति= सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी, प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम, ग्राम- घमहापुर, पोस्ट- कंदवा, जिला- वाराणसी. पिन- 221106)
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