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केसरिया रंग उडी जायलो ! हो लाल हो रंग उडी जायलो ! भजन

सद्गुरुजी
सद्गुरुजी
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मालवा क्षेत्र का “मालवा” नाम “मालव” नामक जाति के आधार पर पड़ा था. ये शूरवीर मालव जाति सिकंदर से युद्ध लड़ी थी. पश्चिमी भारत का यह भाग ज्वालामुखी की राख से बना माना जाता है. मध्यप्रदेश का पश्चिमी भाग और राजस्थान का दक्षिणी-पश्चिमी भाग मालवा क्षेत्र में शामिल किया जाता है. इस पठारी क्षेत्र को मालवा का पठार भी कहते हैं. चम्बल नदी और माही नदी इस क्षेत्र में बहती है. मालवा क्षेत्र आर्यों के समय से ही एक स्वतंत्र क्षेत्र रहा है. मालवा क्षेत्र अपनी विशेष भाषा, विशेष सभ्यता वऔर विशेष संस्कृति के लिए प्रसिद्द है.

ढोलक और तम्बूरा पर संत कबीर साहिब की निर्गुण भक्ति धारा का प्रचार-प्रसार करते सूफियाना भजन यहाँ पर बहुत ही निराले अंदाज में गाये जाते हैं. मालवा क्षेत्र में सदियों से संत कबीर साहिब की वाणी गूंज रही है. इस क्षेत्र में बहुत सी भजन मंडलियां हैं,जो कबीर साहिब के शिक्षाप्रद और जन-जन के लिए उपयोगी पारम्परिक भजनो को मालवा क्षेत्र में ही नहीं बल्कि पूरे देशभर में और दुनिया के कई देशों में अपनी मधुर आवाज में गाकर लोकप्रिय बना रहीं हैं.
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कबीर गायन के लिए पद्मश्री से लेकर संगीत नाट्य अकादमी और मध्यप्रदेश का शिखर सम्मान तक प्राप्त गायक प्रहलाद सिंह टिपानिया को कबीर गायन में महारत हासिल है. उन्होंने कबीर गायक की पारंपरिक मालवी शैली को देश-विदेश में गाकर उसे बहुत लोकप्रिय बना दिया है. वार्षिक सूफी संगीत समारोह ‘रूहानियत’ सहित देश-विदेह के अनेक बड़े मंचों पर और अनेक विश्वविद्यालयों में अपने गायन से उन्होंने श्रोताओं को न सिर्फ मंत्रमुग्ध किया है, बल्कि आत्मसुधार से लेकर समाज सुधार तक का बेहद प्रभावी सन्देश देने वाली कबीर वाणी को जन जन तक पहुँचाया है. उनका गाया हुआ संत कबीर साहिब का एक बहुत प्रसिद्द निर्गुण भजन पाठकों के लाभार्थ प्रस्तुत है-

एै जी, दुर्लभ मानुष जन्म है, देह न बारम्बार !
तरुवर ज्यों पत्ता झड़े, बहुरि न लागे डार !!
एै जी, पानी केरा बुदबुदा, अस मानुष की जात !
देखत ही छिप जायेगा, ज्यों तारा परभात !!
एै जी, कबीर कहा गरबियो, काल गहे कर केस !
ना जाने कहाँ मारिसी, क्या घर क्या परदेस !!

हाँ, मत कर मान गुमान ! हाँ मत कर काया को अहंकार !
हाँ, मत कर मान गुमान ! हाँ मत कर काया को अहंकार !
केसरिया रंग उडी जायलो ! हो लाल हो रंग उडी जायलो !!
केसरिया रंग उडी जायलो ! हो लाल हो रंग उडी जायलो !!
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१-हाँ, यो संसार कागज के री पुड़िया, हाँ, बूंद पड़े ने गल जाय !
हाँ,यो संसार कागज के री पुड़िया, हाँ, बूंद पड़े ने गल जाय !
केसरिया रंग उडी जायलो ! हो लाल हो रंग उडी जायलो !!
हाँ, मत कर मान गुमान ! हाँ मत कर काया को अहंकार !
केसरिया रंग उडी जायलो ! हो लाल हो रंग उडी जायलो !!

२-हाँ, यो संसार झाड़ और झाँखर, हाँ, आग लगे ने बरी जाय !
हाँ, यो संसार झाड़ और झाँखर, हाँ, आग लगे ने बरी जाय !
केसरिया रंग उडी जायलो ! हो लाल हो रंग उडी जायलो !!
हाँ, मत कर मान गुमान ! हाँ मत कर काया को अहंकार !
केसरिया रंग उडी जायलो ! हो लाल हो रंग उडी जायलो !!

३-हाँ, यो संसार बोर वाली झाड़ी,हाँ, यामें उलझ-पुलझ मरी जाय !
हाँ, यो संसार बोर वाली झाड़ी, हाँ, यामें उलझ-पुलझ मरी जाय !
केसरिया रंग उडी जायलो ! हो लाल हो रंग उडी जायलो !!
हाँ, मत कर मान गुमान ! हाँ मत कर काया को अहंकार !
केसरिया रंग उडी जायलो ! हो लाल हो रंग उडी जायलो !!
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४-हाँ, यो संसार हॉट वालो मेलो, हाँ, सौदा करी ने घर जाय !
हाँ, मूरख मूल गंवाय, हाँ, मूरख मूल गंवाय !
हाँ, यो संसार हॉट वालो मेलो, हाँ, सौदा करी ने घर जाय !
हाँ, मूरख मूल गंवाय, हाँ, मूरख मूल गंवाय !
केसरिया रंग उडी जायलो ! हो लाल हो रंग उडी जायलो !!
हाँ, मत कर मान गुमान ! हाँ मत कर काया को अहंकार !
केसरिया रंग उडी जायलो ! हो लाल हो रंग उडी जायलो !!

५-हाँ, योसंसार कांच वाली चूड़ियाँ, हाँ, लगे टकोरो झड़ जाय !
हाँ, योसंसार कांच वाली चूड़ियाँ, हाँ, लगे टकोरो झड़ जाय !
केसरिया रंग उडी जायलो ! हो लाल हो रंग उडी जायलो !!
हाँ, मत कर मान गुमान ! हाँ मत कर काया को अहंकार !
केसरिया रंग उडी जायलो ! हो लाल हो रंग उडी जायलो !!

६-हाँ, कहहूँ कबीर सुनो भाई साधो, हाँ, सद्गुरु नाम सहाय !
हाँ, कहहूँ कबीर सुनो भाई साधो, हाँ, सद्गुरु नाम सहाय !
केसरिया रंग उडी जायलो ! हो लाल हो रंग उडी जायलो !!
हाँ, मत कर मान गुमान ! हाँ मत कर काया को अहंकार !
केसरिया रंग उडी जायलो ! हो लाल हो रंग उडी जायलो !!

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(आलेख और प्रस्तुति= सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी, प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम, ग्राम- घमहापुर, पोस्ट- कंदवा, जिला- वाराणसी. पिन- 221106)
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