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वो भाग्यशाली लोग हैं जो सुबह उठकर ईश्वर को धन्यवाद देते हैं

सद्गुरुजी
सद्गुरुजी
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एक 80 साल के बूढ़े व्यक्ति एक मोहल्ले में रहते थे, वो हर रोज सुबह साढ़े पांच बजे उठते थे और उठते ही अपने घर के बाहर आकर सड़क पर नृत्य करने लगते थे. कभी धरती को छूते, कभी आसमान को निहारते और कभी बहुत देर तक उगते सूरज को निहारते. जोर जोर से हँसते गाते हुए आधा घंटा तक यही सब करते और फिर शांत हो घर के भीतर चले जाते. मोहल्ले वाले प्रतिदिन ये नजारा देखते थे. अधिकतर लोग बूढ़े व्यक्ति की हरकतों को देखकर हँसते थे. कोई कहता- ‘ये बूढ़ा पागल हो गया है.’ कोई कहता- ‘भैया! ये तो उम्र ही सठियाने की है.’ कुछ नौजवान उबासी लेते हुए और अपने हाथ पैर झटकते पटकते हुए अपने दरवाजे पर आकर भुनभुनाते- ‘ये पागल बूढ़ा सोने नहीं देता. सुबह-सुबह उठकर जोर-जोर से हँसता है, नाचता है, गाता है.’ दूसरा नौजवान उसकी हाँ में हाँ मिलाते हुए कहता- ‘अरे भाई! ये बूढ़ा तो पूरी तरह से पागल हो गया है. इसे तो पागलखाने भेज देना चाहिए.’
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उसी मोहल्ले में एक मास्टर साहब रहते थे. रोज की भांति जब एक दिन बूढ़े व्यक्ति का नृत्य और जोर-जोर से हँसना गाना जारी था, मास्टर साहब ने बूढ़े व्यक्ति के पास जाकर पूछ ही लिया- ‘बाबा! सुबह सुबह उठते ही ये नाचना गाना और हंसना ये सब हरकतें क्यों करते हो? सब मोहल्ले वाले आपको पागल समझतें हैं.’ बूढ़े व्यक्ति उनकी बात सुनकर भी अनसुना कर पूरी मस्ती के साथ अपने दैनिक कार्यक्रम में व्यस्त रहे. नाचना गाना हँसना आदि का सब कार्यक्रम पूरा करने के बाद वो बूढ़े व्यक्ति मास्टर साहब के करीब आ बोले- ‘मुझे कौन क्या कहता समझता है, मै उसकी परवाह नहीं करता. मै तो सुबह जब आँखे खोलता हूँ और अपने को इस संसार में जीवित पाता हूँ तो मन भगवान के प्रति इतनी श्रद्धा से भर उठता है कि मै अपने को रोक नहीं पाता और घर के बाहर सड़क पर आकर नाचता हूँ, हँसता हूँ, गाता हूँ.’

वो आगे बोले- ‘इस तरह से मैं भगवान को धन्यवाद देता हूँ कि मै आज भी बच गया. आज भी इस शारीर के भीतर जीवित हूँ. ये सूरज, ये धरती, ये मुहल्ला, ये मेरा घर और ये मेरे मोहल्ले के लोग.. इन सबको मै प्रेम भाव से निहारता हूँ और भगवान को धन्यवाद देता हूँ कि ये सबकुछ मुझे आज भी देखने को मिल रहा है. यही मेरी साधना और प्रभु आराधना है. वो बूढ़े व्यक्ति वाकई बहुत समझदार थे, वो किसी पहुंचे हुए साधू संत से कम नहीं थे. वो भाग्यशाली लोग हैं जो सुबह उठकर ईश्वर को धन्यवाद देते हैं, उगते हुए सूरज को देखतें हैं, खुली हवा में घूमतें हैं, अपने आस पास के लोगों को देखतें हैं, अपने शरीर को स्वस्थ और चलते फिरते देखतें है और प्रकृति के सौन्दर्य को धन्य भाव से निहारतें हैं. पता नहीं कब ये शरीर रोग से,चोट से ग्रस्त हो जाये और हम चलने फिरने के लायक ही न रहें या हम संसार में जीवित ही न रहें.
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आप धन्य हैं प्रभु! आप की असीम कृपा है, और क्या कहूँ, क्या मांगूं? जो अस्वस्थ हैं, बिस्तर पर बीमार पड़े हैं, जो चल फिर नहीं सकते उनसे पूछो उनका दुःख कि वो कितने बेचैन हैं? उनकी बस एक ही चाह है कि जल्द से जल्द स्वस्थ हों और अपने पाँव पर खड़े होकर घूमे फिरें. प्रभु सब पर कृपा करें, जो अस्वस्थ हैं उनको शीघ्र से शीघ्र स्वस्थ करें और जो स्वस्थ हैं उनको हमेशा स्वस्थ रखें. संसार में हमें जो कुछ भी नज़र आ रहा है सब परमात्मा की रचना है और वो रचनाकार अपनी रचना के भीतर ही छिपा हुआ है. शरीर और संसार रूपी प्रकृति के भीतर ही परमात्मा रूपी पुरुष छिपा हुआ है. ईश्वर सबके भीतर बैठकर उसकी अच्छी बुरी सोच और उसके अच्छे बुरे कर्मों को नोट करते हैं और तदानुसार ही फल भी देते हैं, इसलिए सदैव अच्छे कर्म करें. किसी का भला न कर सकें तो बुरा भी न करें.

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(आलेख और प्रस्तुति= सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी, प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम, ग्राम- घमहापुर, पोस्ट- कंदवा, जिला- वाराणसी. पिन- 221106)
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