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चुनावी नतीजे और ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ का जुमला- विस्तृत चर्चा

सद्गुरुजी
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चुनावी नतीजे और ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ का जुमला- विस्तृत चर्चा
हाल ही में सम्पन्न हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को काफी नुकसान हुआ है. ये एक सच्चाई है कि कांग्रेस का वजूद पिछले दो सालों में देशभर में सिमटा है, खासकर बड़े राज्यों में. यही वजह है कि आज कोई ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ की बात कर रहा है तो कोई ‘गांधी मुक्त कांग्रेस’ कांग्रेस की. इस पर चर्चा करने से पहले पांच राज्यों के चुनावी नतीजों पर चर्चा कर ली जाये. केंद्र शासित प्रदेश पुदुच्‍चेरी में कांग्रेस 30 में से 15 सीट जीत पांच राज्यों के चुनाव में एकमात्र अच्छी सफलता प्राप्त की है. सत्तारूढ़ एआईएनआरसी को कांटे के मुकाबले के बाद अन्तोगत्वा उसे हराते हुए दो सीट पाने वाले अपने सहयोगी दल द्रमुक के साथ मिलकर वो सरकार बनाने जा रही है.

तमिलनाडु में जयललिता की वापसी हुई है. वो रिकार्ड छठी बार मुख्यमंत्री बनने जा रही हैं. इस बार तमिलनाडु में सत्ता पाने की पूरी उम्मीद रखने वाली करुणानिधि की पार्टी द्रमुक 89 सीटों से आगे नहीं बढ़ पाई. कांग्रेस को आठ सीटों से संतोष करना पड़ा. बीजेपी को कोई सीट तो नहीं मिली, लेकिन तमिलनाडु में उसका मत प्रतिशत जरूर बढ़ा है. यहाँ पर सबसे ज्यादा निराशा पांच बार मुख्यमंत्री रह चुके 92 वर्षीय मुत्तुवेल करुणानिधि को हुई है. वे तमिल सिनेमा जगत के एक मशहूर नाटककार और पटकथा लेखक माने जाते हैं. तमिल जनता के बीच ‘कलाईनार’ यानि “कला का विद्वान” के रूप में प्रसिद्द हैं.
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एम. करुणानिधि छठी बार तमिलनाडु का मुख्यमंत्री बनने का सपना देख रहे थे, किन्तु जनता और ईश्वर ने यह मौका उन्हें नहीं बल्कि 68 वर्षीय ‘अम्मा’ यानि जयललिता को प्रदान किया है. हार से बौखलाए डीएमके प्रमुख करुणानिधि ने चुनाव आयोग पर एआईएडीएमके प्रमुख जयललिता की गुलामी करने का आरोप लगाया है. तमिलनाडु के विधानसभा चुनाव में मिली हार के बाद डीएमके प्रमुख करुणानिधि के पोते और पूर्व केंद्रीय मंत्री दयानिधि मारन ने बहुत ही विवादित बयान दिया है. एआईएडीएमके के हाथों मिली हार से बौखलाकर डीएमके नेता दयानिधि मारन ने कहा कि ‘तमिलनाडु के लोगों ने अपना जमीर शैतान के हाथों बेच दिया है.’

उन्होंने एआईएडीएमके पर आरोप लगाया कि सत्ताधारी पार्टी ने विधानसभा चुनाव में अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए वोटरों को प्रलोभन और पैसे दिए. आज के युग की ये एक कड़वी सच्चाई है कि अब इस इस देश में ग्राम प्रधान या सभासद के चुनाव से लेकर सांसद तक के चुनाव में प्रलोभन और पैसों का गंदा खेल कहीं चोरी-छिपे तो कहीं खुलकर खेला जा रहा है, हालांकि इस गंदे खेल में थोड़ा या बहुत सभी दल शामिल हैं. अतः दयानिधि मारन का आरोप सही और एक निष्पक्ष जांच का विषय हो सकता है, किन्तु उनके जैसे अनुभवी और शिक्षित राजनीतिज्ञ को जनता पर दोष मढ़ने की बजाय जनादेश का सम्मान करना चाहिए था, क्योंकि उनके विवादित बयान से यह सवाल उठ खड़ा होता है कि क्या वो भविष्य में तमिलनाडु की जनता के समक्ष वोट मांगने नहीं जाएंगे?

केरल में लेफ्ट गठबंधन को सत्ता हासिल हुई है. केरल में वामदलों की यदि हार होती तो इसका मतलब होता, वाम पार्टियों का देशभर में केंद्र और किसी राज्य की सत्ता प्राप्ति से पूर्णरूपेण सफाया हो जाना. केरल में कांग्रेस को निराश होना पड़ा है. केरल की सत्ता उसके हाथ से जा चुकी है. यहाँ भी मुख्य विपक्षी दल बनकर ही अब उसे संतोष करना पडेगा. कांग्रेस और लेफ्ट का केरल में एक दूसरे से घोर राजनीतिक विरोध था और पश्चिम बंगाल में सत्ता प्राप्ति के लिए गठबंधन था. यह बेमल गठबंधन शायद लोंगो के गले नहीं उतरा और दोनों को ही नुकसान हुआ. केरल में कांग्रेस हारी और पश्चिम बंगाल में लेफ्ट को बहुत कम सीटें मिलीं. केरल में बीजेपी को फायदा हुआ. उसका न सिर्फ खाता खुला है, बल्कि उसका वोट प्रतिशत भी पिछली बार की तुलना में ढाई गुना ज्यादा बढ़ा है.
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पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की शानदार वापसी हुई है. ग़रीबों की लड़ाई लड़ने वाली, सादगी से रहने वाली और भ्रष्टाचार से व्यक्तिगत रूप से खुद को दूर रखने वाली ममता बनर्जी एक बहुत बड़ी जीत के साथ पश्चिम बंगाल की राजनीति में सबसे बड़ी ताकत के रूप में उभरी हैं. सबसे बड़ी आश्चर्य की बात यह है कि तृणमूल कांग्रेस पर शारदा चिटफंड घोटाला और आतंकवादी गतिविधियों में संलिप्तता के गम्भीर आरोप लगे थे, लेकिन पश्चिम बंगाल के वोटर इन सब आरोपों की परवाह नहीं करते हुए और ममता बनर्जी को बहुत भारी बहुमत प्रदान करते हुए एक बार फिर तृणमूल कांग्रेस पर ही अपना पूर्ण भरोसा जतायें हैं.

सब जानते हैं कि शारदा घोटाला पश्चिम बंगाल राज्य का एक बहुत बड़ा आर्थिक घोटाला और राजनीतिक मिलीभगत का काण्ड था, जिसमे 10 लाख से ज्यादा लोग एक चिटफंड कंपनी की ठगी के शिकार हुए थे और गरीबों की खून-पसीने की कमाई के लगभग 20,000 करोड़ रुपये लेकर पश्चिम बंगाल की चिटफंड कंपनी शारदा ग्रुप फरार हो गई थी. पश्चिम बंगाल में भाजपा को हालांकि तीन ही सीटें मिलीं हैं, लेकिन उसका वोट प्रतिशत बढ़ा है. कांग्रेस लेफ्ट से ज्यादा सीटें जीत मुख्य विपक्षी दल बनकर संतुष्ट हो सकती है. सबसे बुरी स्थिति लेफ्ट की है. कई दशक तक पश्चिम बंगाल में एकछत्र राज्य करने वाली लेफ्ट पार्टी अब वहाँ की मुख्य विपक्षी दल तक नहीं रही.
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असम में बीजेपी को 60 और उसके सहयोगियों को 26 सीटें मिलीं हैं. यहाँ पर सत्ता खोने वाली कांग्रेस को मात्र 26 सीटें ही मिली है. असम में भाजपा को मिली ऐतिहासिक जीत के बाद भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने कांग्रेस की हार पर तीखा कटाक्ष करते हुए कहा कि ‘देश ने ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ की तरफ दो कदम और बढ़ाए हैं.’ दरअसल उनका इशारा असम व केरल में कांग्रेस को मिली हार की तरफ था. हालांकि अपना नेता चुनना किसी पार्टी का व्यक्तिगत मामला है, किन्तु कई बड़बोले नेता व्यंग्य भाव से कांग्रेस के उभार हेतु ‘गांधी मुक्त कांग्रेस’ की सलाह दे रहे हैं. अमित शाह ने पांच राज्यों के चुनावी नतीजों को आगामी लोकसभा चुनावों की मजबूत बुनियाद बताते हुए कहा कि इस पर 2019 में एक मजबूत इमारत बनेगी.

अमित शाह की इस बात से मै सहमत हूँ कि सबसे बड़ी राष्ट्रीय पार्टी के रूप में भाजपा का प्रचार-प्रसार पूरे देशभर में तेजी से हो रहा है और नरेन्द्र मोदी सरकार की नीतियों पर जनता की मुहर भी लग रही है, किन्तु उनकी इस बात से मैं सहमत नहीं हूँ कि ये देश ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ बन चुका है या बन रहा है या कभी भविष्य में बनेगा. लोकतंत्र में सत्ता पक्ष की निरंकुशता रोकने हेतु मजबूत विपक्ष का होना भी जरुरी है. भाजपा के नेताओं में सबसे बड़ी कमी यही है कि वो बहुत जल्दी गुब्बारे की तरह फूलते और पचकते हैं. किसी राज्य में विजय मिली नहीं कि अहंकार में आ फूल जाते हैं और किसी राज्य में टॉय टॉय फुस्स हुए नहीं कि मुंह लटकाकर पचक जाते हैं. वो लोग अपने को आध्यात्मिक कहते हैं, किन्तु कभी भी एक रस, विनम्र और स्थित प्रज्ञ नहीं रहते हैं, यही उनकी सबसे बड़ी कमी है.
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भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और पीएम मोदी ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ भारत की बात अक्सर उछालते हैं, ठीक उसी तरह, जैसे 2014 में लोकसभा चुनाव के समय ‘विदेश से काला धन लाने और 15 लाख हर व्यक्ति को देने’ की बात करते थे. चुनाव भारी बहुमत से जीतने के बाद अमित शाह ने उसे जनता को मूर्ख बनाने वाला महज एक चुनावी जुमला कहा. कुछ उसी तरह का जनता को मूर्ख बनाने वाला दूसरा चुनावी जुमला है, ‘कांग्रेस मुक्त भारत’. अमित शाह जी, पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस कुल 125 सीटें जीती है और भाजपा सिर्फ 64 सीटें. जिन राज्यों में आप कांग्रेस को हराए हैं, वहाँ पर मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस है. मुख्य विपक्षी दल का मतलब होता है कि वो भविष्य में पुनः सत्ता में आ सकती है, फिर आप ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ का नारा कैसे लगा सकते हैं?

भाजपा की 11 राज्यों में सरकारे हैं, तो वहीँ दूसरी ओर कांग्रेस की भी 8 राज्यों में सरकारे हैं. कांग्रेस-मुक्त भारत की शुरुआत मानते हुए कुछ बुद्धिजीवी ये कह रहे हैं कि आज देशभर में भाजपा ज्यादा लोकप्रिय है. राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस सत्ता की दौड़ से बाहर है. भाजपा के सामने अब कांग्रेस नहीं, बल्कि क्षेत्रीय दलों से निपटना सबसे बड़ी चुनौती है, चाहे वो उनसे गठजोड़ करे या फिर संघर्ष. इन तर्कों में कुछ सच्चाई है, किन्तु पूरी नहीं. पूर्ण सच्चाई ये है कि क्षेत्रीय दलों से निपटना कांग्रेस के लिए भी बड़ी चुनौती बन चुकी है, वो भी उनसे कहीं पर गठजोड़ कर रही है तो कहीं पर संघर्ष. इस मामले में दोनों पार्टियां एक ही राह पर चल रही है. भविष्य में होने वाले विधानसभा चुनावों में चाहे वो उत्तरप्रदेश हो या फिर पंजाब भाजपा को मजबूत क्षेत्रीय दलों से संघर्ष करना पडेगा.
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वो दिल्ली ओर बिहार में क्षेत्रीय दलों से निपटने में बुरी तरह से विफल रही है. इसका बड़ा कारण लोकप्रिय और जमीनी हकीकत से वाकिफ क्षेत्रीय नेता का अभाव था. वो केवल अपने राष्ट्रीय नेताओं के ऊपर ही आश्रित थे. अपनी इस गलती से सबक लेते हुए उन्होंने असम में सर्वानंद सोनोवाल को मजबूती से खड़ा किया और पीएम मोदी तक ने असम की जनता के बीच यही नारा लगाया कि ‘आपके जीवन में आनंद लाना है, इसलिए हमें असम में सर्वानंद को लाना है.’ असम में बीजेपी की यह रणनीति सफल रही. इसी रणनीति के तहत उत्तरप्रदेश में केशव प्रसाद मौर्य को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया है. कोई आश्चर्य की बात नहीं कि उन्हें अब आगे 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के मुख्यमंत्री उम्मीदवार के रूप में प्रस्तुत किया जाए.

भाजपा 2014 के लोकसभा चुनाव की तरह वो चमत्कार फिर से कर सकती है, जिसमे उसने क्षेत्रीय दलों को बुरी तरह से धूल चटाई थी. पांच राज्यों के चुनाव नतीजे निश्चित रूप से इस बात के संकेत हैं कि भाजपा और आरएसएस का फैलाव पूरी तेजी से पूरे देशभर में हो रहा है. मुझे लगता है कि देश की एकता, सुरक्षा और शान्ति के लिए ये जरुरी भी है. पंजाब में भाजपा अकाली दल से मिल अपना फैलाव की तो वहाँ शांति आई और असम में आगे बढ़ी तो वहां की 50 साल पुरानी बांग्लादेशी घुसपैठ की समस्या हल होनी शुरू हो गई, जिसके बारे में कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री तरुण गगोई ने कभी कहा था कि ‘असम ज्वालामुखी के ऊपर बैठा है.’ सब जानते हैं कि बांग्लादेशी घुसपैठ की समस्या को अपने राजनैतिक फायदे के लिए ज्वालामुखी बनाने वाली भी कांग्रेस ही थी.

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(आलेख और प्रस्तुति= सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी, प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम, ग्राम- घमहापुर, पोस्ट- कंदवा, जिला- वाराणसी. पिन- 221106)
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