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‘कृपा’ और ‘चंगाई’ का कारोबार बेरोकटोक जारी है- जंक्शन फोरम

सद्गुरुजी
सद्गुरुजी
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एक व्यक्ति अपनी ख़राब आर्थिक स्थिति से बहुत परेशान था. वो जाकर एक बाबा से मिला और उनसे अपनी परेशानी दूर करने का उपाय पूछा.
बाबा ने उसको सलाह दी, “घर जाकर पत्नी के बनाए खाने की तारीफ करो तो कृपा होगी…”
उस आदमी की शादी को बीस साल हो गए थे. उसने कभी अपनी पत्नी के हाथ से बने खाने की तारीफ नहीं की थी.
बाबा की बात उस पर असर कर गयी और घर आकर पराठे खाते हुए उसने पत्नी की जमकर तारीफ़ शुरू कर दी, “वाह… वाह… क्या स्वादिष्ट पराठे बने हैं.. आज तो खाना खाने में मजा आ गया..”
पत्नी बेलन उठाकर मारते हुए बोली, “बीस साल से मेरे खाने की तारीफ नहीं की और आज पड़ोसन ने पराठे भेज दिए तो तुम्हे मज़ा आ गया…”
पति मन ही मन में बोला, “बाबा… कृपा हो गयी…”

इंटरनेट पर ये चुटकुला पढ़ा तो हंसी आ गई. सोचा आज ‘कृपा’ के विषय पर ही एक ब्लॉग लिखा जाये. आज आध्यात्म एक बहुत बड़ा व्यापार बन चुका है. आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का सहारा लेकर आध्यात्म की मार्केटिंग करने वाले बहुत से बाबाजी लोग हैं. इसी व्यापार के जरिये मशहूर और धनवान होने वाले यूँ तो अनगिनत बाबाजी लोग हैं, किन्तु इस ब्लॉग में निर्मल बाबा और पॉल दिनाकरन की चर्चा कर रहा हूँ. आपने टीवी पर देखा-सुना होगा कि निर्मल बाबा अपने “निर्मल बाबा समागम” और “निर्मल बाबा शो” में शामिल होने वाले लोंगो की समस्या का समाधान अपनी चमत्कारी कृपा से पल भर में यूँ चुटुकी बजाकर कर देते हैं, मानो वो उनके लिए बाएं हाथ का खेल हो. आइये, अब ज़रा उनकी ‘कृपा’ की हकीकत पर गौर करें. “निर्मल बाबा समागम” में शामिल होने की फ़ीस Rs. 3870/- और “निर्मल बाबा शो” में शामिल होने की फ़ीस Rs. 6450/- प्रति व्यक्ति है. विश्वास न हो तो निर्मलबाबा.कॉम पर जाकर खुद चेक कर लें.

निर्मल बाबा लोंगो की विभिन्न समस्याओं के समाधान का सबसे सरल उपाय बताते हैं, जैसे- काले रंग का नया पर्स और उसमे नया नोट रखें, आपकी कृपा गोलगप्पे, चाट और छोले के कारण रुकी हो तो खुद भी खाएं और कुछ गरीबों को भी खिला दें. किसी देवता या मंदिर के कारण रुकी हो तो वहां जाकर महंगी वाली माला के साथ साथ पांच सौ का नोट भी चढ़ाएं. शराब पीते हैं तो जाकर काल भैरव को दो बोतल चढ़ाइए और दो बोतल खुद पी जाइये, कल्याण हो जायेगा और कृपा बरसने लगेगी. घर की पुरानी व सस्ती चीजे फेंकिए, उसकी जगह नई और महंगी चीजें खरीदिए, उन्नति शुरू हो जायेगी. आप सोच रहे होंगे ये सब क्या वाहियात उपाय हैं. ये तो गरीबी में आटा गिला करने वाले उपाय हैं और तर्क की कसौटी पर खरे भी नहीं उतरते हैं. दरअसल इस तरह के उपाय बताने वाले निर्मल बाबा लोंगो की धार्मिक आस्था से खिलवाड़ कर रहे हैं और पूरी तरह से मनोविज्ञान का सहारा लेकर उन्हें लूट रहे हैं.
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निर्मल बाबा कहते हैं कि उन्हें ईश्वरीय शक्ति हासिल है और उनका तीसरा नेत्र खुला हुआ है. यदि सच में ही उन्हें ईश्वरीय शक्ति हासिल है और उनका तीसरा नेत्र खुला हुआ है तो लोंगो से ये क्यों पूछते हैं कि कहाँ से आये हो? ये तो उन्हें खुद बताना चाहिए. सबसे बड़ी बात ये कि वो सबको यही बताते हैं कि आपकी कृपा फलां मंदिर या फलां चीज के कारण रुकी है. यूँ तो यह पूर्णतः अतार्किक बात है, किन्तु यदि इसे सच मान भी लिया जाये तो फिर निर्मल बाबाजी आपने क्या कृपा की और किस बात की भारी भरकम फ़ीस ली? निर्मल बाबा का असली नाम निर्मलजीत सिंह नरूला है. निर्मल बाबा अपने निजी जीवन में कई धंधों में हाथ लगाए, किन्तु बुरी तरह से असफल रहे. उन्होंने झारखंड में रहते हुए पहले कपड़े की दुकान खोली, लेकिन वह नहीं चली. ईंट भट्‍टे का धंधा शुरू किया, जो बुरी तरह से असफल रहा. उन्होंने खदानों की नीलामी में ठेकेदारी की, किन्तु वहां भी असफल ही रहे.

असफलता के इसी दौर में उन्होंने अपनी छठी इंद्री खुलने का एलान किया और लोगों की समस्या दूर करने के लिए मजमा लगाने लगे. 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद भड़के सिख विरोधी दंगों के कारण निर्मल बाबा रांची (झारखंड) वाला अपना घर बेचकर दिल्ली चले आये और फिर यहीं से अपने को निर्मल बाबा के रूप में प्रचारित कर ‘निर्मल दरबार’ लगाना शुरू कर दिए. उन्होंने कृपा बरसाने के नाम पर लोंगो को मूर्ख बनाते हुए अपनी खून पसीने की कमाई का 10 प्रतिशत ‘दसबंध’ के नाम पर प्रति माह देने को कहा. निर्मल बाबा ने जनता से लुटा धन मीडिया पर लुटाते हुए अपने चमत्कारी होने का खूब प्रचार-प्रसार किया. इसी के फलस्वरूप आज वो अरबपति हैं और दिल्ली के पॉश इलाके ग्रेटर कैलाश में उनका शानदार बँगला और ऐशो आराम से भरा जीवन है. यही संक्षेप में उनके नाकाम कारोबारी से सफल बाबा बनने की कहानी है. उनके खिलाफ देशभर में कई केस दर्ज हैं, किन्तु उनका ‘कृपा’ का कारोबार बेरोकटोक जारी है.

आध्यात्म का सहारा लेकर खरबपति बनने वाले एक दूसरे बाबा हैं, ईसाई समाज से जुड़े पॉल दिनाकरन. ये सीधे प्रभु यीशु मसीह से बातचीत करने उनके द्वारा लोंगो के जीवन में चंगाई और चमत्कार करने का दावा करते है. वो “जीसस काल्स” के नाम से प्रार्थना सभा आयोजित करते हैं और ये दावा करते हैं कि उनकी प्रार्थना सभा में भाग लेने से सभी दुःख दूर हो जायेगे, रोगी निरोगी हो जायेगे, बेरोजगारों को नौकरी मिल जाएगी और यहाँ तक कि सभी बिगड़े काम बन जाएंगे. ये बाबा भी बकायदे फ़ीस लेते हैं और सबसे अपनी कमाई का 10 प्रतिशत प्रति माह दान देने की अपील करते हैं. उन पर भी समय समय पर ‘धर्म परिवर्तन’ करने सहित कई गम्भीर आरोप लगे, किन्तु उन पर अनेक नेताओं की छत्रछाया बनी रही और उनका चंगाई वाला पैतृक कारोबार बिना किसी रुकावट के जारी रहा और आज भी जारी है. हालाँकि चंगाई और चमत्कार के उनके दावे कितने सच्चे हैं, यह सवालों के घेरे में हमेशा ही रहा है और आज भी है.
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ईसाई मत को मानने से यदि कोई अमीर हो जाएगा और उसके दुःख दूर हो जाएंगे तो ईसाई मत को मानने वाले बहुत से लोग और देश निर्धन क्यों हैं? प्रभु में दृढ विश्वास रखने वाली मदर टेरेसा खुद कई बार अपने आँखों एवं दिल का आपरेशन करवाईं. हार्ट अटैक के कारण ही 5 सितंबर 1997 के दिन मदर टैरेसा की मृत्यु हुई थी. दिवंगत पोप जॉन पॉल द्वितीय ने अपना पूरा जीवन ईसाई मत को समर्पित कर दिया था. उनके बारे में मैंने पढ़ा है कि वो सन 2001 में पार्किन्सन रोग से पीड़ित थे और चलने फिरने में बिलकुल असमर्थ थे. 2005 में उनका निधन हुआ था. पॉल दिनाकरन 1983 से चंगाई प्रार्थना कर रहे हैं. उन्होंने अपनी चंगाई प्रार्थना से पोप जॉन पॉल द्वितीय को स्वस्थ क्यों नहीं कर दिया? उन्होंने मदर टेरेसा की मदद क्यों नहीं की? जिस तरह का वो चमत्कारी ढंग से ‘चंगाई’ इलाज करने का दावा करते हैं, उसका प्रयोग उन्होंने ईसाई समाज के मशहूर आध्यात्मिक लोंगो पर क्यों नहीं किया?

ईसा मसीह ने कहा था कि मेरे मार्ग पर चलने से अंधे देख सकते हैं, लंगड़े चल सकते हैं और बहरे सुन सकते हैं. उनके इसी आध्यात्मिक वचन का दुरूपयोग कर उसे चंगाई प्रार्थना का नाम दिया गया. वास्तव में ईसा मसीह ने शरीर के अंदर आध्यात्मिक उन्नति करने की बात की थी. जो जन्मजात अंधे हैं, वो भी ईश्वर का प्रकाश अपने भीतर देख सकते हैं. जो लंगड़े हैं वो भी समाधि में जा अपने भीतर आध्यात्मिक गति कर सकते हैं और जो बहरे हैं, वो भी अपने भीतर ईश्वर की आवाज सुन सकते हैं. झूठे बाबाओं का कारोबार बंद हो सकता है, यदि हमारे देश की जनता अन्धविश्वास से बाहर निकल कर जागरूक हो जाए और हमारे देश के बहुत से नेता झूठे बाबाओं पर अपनी ‘कृपा’ करना बंद कर दें. जनता को जागरूक करने के लिए कबीर साहब की कही हुई एक अकाट्य बात कहूंगा, “दूर दूर ढूंढे मन लोभी, मिटे न दुःख तिरासा.” भाग्य और कर्म से जो मिलना है, वो मिल जाएगा और जो नहीं मिलना है, वो नहीं मिलेगा, इसलिए दर-दर भटको मत, नहीं तो ठगे जाओगे. अंत में इंटरनेट पर पढ़ा एक और चुटकुला प्रस्तुत है.

एक बाबा के दरबार मे फेसबुक मैनिया से पीड़ित एक युवक आता है और बाबा से कहता है.
युवक: मै बहुत परेशान हूँ बाबा.. मेरे को फ़ेस बुक पर कोई कोमेंट्स नहीं देता…
बाबा: आप आखिरी बार फेसबुक पर कब गए थे?
युवक: जी, कल रात को…
बाबा: कौन सा ब्राउज़र इस्तेमाल करते है?
युवक: जी, यूसी ब्राउज़र…
बाबा: यही तो समस्या है. आप एक काम करो, पहले आप अपना पासवर्ड बदल दो और ओपेरा ब्राउज़र का इस्तेमाल करो, बिल बाबा के आशीर्वाद से आपको खूब कोमेंट्स मिलेंगे, आपकी खूब तरक्की होंगी…
युवक: जी बाबा जी…

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(आलेख और प्रस्तुति= सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी, प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम, ग्राम- घमहापुर, पोस्ट- कंदवा, जिला- वाराणसी. पिन- 221106)
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