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माँ तेरी सूरत से अलग भगवान की सूरत क्या होगी?

सद्गुरुजी
सद्गुरुजी
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माँ तेरी सूरत से अलग भगवान की सूरत क्या होगी?

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माँ की महिमा का जितना भी बखान किया जाये वो कम है. माँ का ऋण कोई नहीं चूका सकता है. माँ की महिमा से संबंधित एक प्रेरक प्रसंग है. एक बार स्वामी विवेकानंद जी से एक जिज्ञासु ने प्रश्न किया कि- माँ की महिमा संसार में इतनी ज्यादा क्यों गाई जाती है? स्वामी जी उस व्यक्ति से बोले कि- इस प्रश्न का उत्तर पाने के लिए पांच किलो वजन का एक पत्थर ले आओ.
जब वह व्यक्ति पांच किलो वजन का पत्थर ले के स्वामी जी के आया तो वो बोले कि- अब इस पत्थर को किसी कपडे में लपेटकर अपने पेट पर बांध लो और चौबीस घंटे बाद मेरे पास आओ, तब मैं तुम्हारे प्रश्न का उत्तर दूंगा.
स्वामीजी के आदेशानुसार उसने पत्थर अपने पेट पर बांध लिया और चला गया. पेट पर पत्थर बांधे हुए वो कुछ घंटे तक काम करता रहा, परन्तु शीघ्र ही उसे परेशानी और थकान महसूस होने लगी. शाम होते-होते पेट पर पत्थर का बोझ संभाले हुए काम करना तो दूर चलना फिरना तक दूभर हो गया. शाम को ही थका मांदा कराहते हुए वो व्यक्ति स्वामी जी के पास पहुँच गया और बोला कि- मैं इस पत्थर को अब और अधिक देर तक अपने पेट पर बांध के नहीं रख सकता. एक प्रश्न का उत्तर पाने के लिए मैं इतनी बड़ी सजा नहीं भुगत सकता.
स्वामी विवेकानंद जी मुस्कुराते हुए बोले- पेट पर इस पत्थर का बोझ तुसे कुछ घंटे भी नहीं उठाया गया, जबकि माँ अपने गर्भ में पलने वाले शिशु को नौ माह तक ढोती है और घर गृहस्थी का सारा काम भी करती है. इस संसार में माँ के जैसा कोई धैर्यवान और सहनशील नहीं है, इसीलिए माँ से बढ़कर महान इस संसार में और कोई नहीं है.
माँ पर मजरूह सुल्तानपुरी का लिखा गीत “उसको नही देखा हमने कभी, पर इसकी जरूरत क्या होगी, ऐ माँ तेरी सूरत से अलग भगवान की सूरत क्या होगी”, मुझे बहुत पसंद है. जब भी ये गीत कहीं पर भी सुनने को मिलता है तो गीत के बोल और भाव ह्रदय को छूने लगते हैं और मां की याद आने लगती है. इस गीत में घोड़ों के टापूओं की “टक टक” की आवाज भी बहुत अच्छी लगती है. इस गीत को 1966 में रीलिज हुई फिल्म “दादी माँ” के लिये मन्ना दा और महेन्द्र कपूर ने गाया था और संगीत रोशन ने दिया था. फिल्म में मुख्य भूमिका में थे अशोक कुमार, माँ का किरदार किया था बीना रॉय ने, दादी माँ बनी थी दुर्गा खोटे. ये गीत बीना रॉय, दिलीप राज और काशीनाथ के ऊपर फिल्माया गया था. माँ के प्रति श्रद्धा और प्यार का असीम भाव जगाता ये गीत दुनिया की सभी माताओं के सम्मान में समर्पित है –
उसको नहीं देखा हमने कभी
पर इसकी ज़रूरत क्या होगी?
ऐ माँ! ऐ माँ तेरी सूरत से अलग
भगवान की सूरत क्या होगी? क्या होगी?
उसको नहीं देखा हमने कभी
इंसान तो क्या देवता भी
आँचल में पले तेरे
है स्वर्ग इसी दुनिया में
कदमों के तले तेरे
ममता ही लुटाऐ जिसके नयन
ऐसी कोई मूरत क्या होगी?
ऐ माँ! ऐ माँ तेरी सूरत से अलग
भगवान की सूरत क्या होगी? क्या होगी?
उसको नहीं देखा हमने कभी
पर इसकी ज़रूरत क्या होगी?
ऐ माँ! ऐ माँ तेरी सूरत से अलग
भगवान की सूरत क्या होगी?
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क्यों धूप जलाऐ दुःखों की
क्यों ग़म की घटा बरसे
ये हाथ दुआओं वाले
रहते हैं सदा सर पे
तू है तो अंधेरे पथ में हमें
सूरज की ज़रूरत क्या होगी?
ऐ माँ! ऐ माँ तेरी सूरत से अलग
भगवान की सूरत क्या होगी? क्या होगी?
उसको नही देखा हमने कभी
पर इसकी ज़रूरत क्या होगी?
ऐ माँ! ऐ माँ तेरी सूरत से अलग
भगवान की सूरत क्या होगी?
कहते हैं तेरी शान में जो
कोई ऊँचे बोल नहीं
भगवान के पास भी माता
तेरे प्यार का मोल नहीं
हम तो यही जानें तुझ से बड़ी
संसार की दौलत क्या होगी?
ऐ माँ! ऐ माँ तेरी सूरत से अलग
भगवान की सूरत क्या होगी? क्या होगी?
उसको नही देखा हमने कभी
पर इसकी ज़रूरत क्या होगी?
ऐ माँ! ऐ माँ तेरी सूरत से अलग
भगवान की सूरत क्या होगी?

(यह दो साल पहले की पोस्ट है, कुछ त्रुटि सुधार के साथ कृपालु पाठकों के समक्ष एक बार फिर प्रस्तुत है)
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आलेख, संकलन और प्रस्तुति= सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी, प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम, ग्राम-घमहापुर,पोस्ट- कन्द्वा, जिला- वाराणसी. पिन- २२११०६.
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