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गुरु पूर्णिमा पर विशेष: गुरु राखई जो कोप विधाता-जागरण फोरम

सद्गुरुजी
सद्गुरुजी
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गुरु पूर्णिमा पर विशेष: गुरु राखई जो कोप विधाता-जागरण फोरम
गुरु राखई जो कोप विधाता।
गुरु रूठे नहीं कोई जग त्राता॥

प्रकृति हमारे खिलाफ हो जाये, देवी-देवता मदद न करें और यहाँ तक कि विधाता भी कुपित हो संकट पैदा करें तो भी सद्गुरु रक्षा करते हैं। भगवान हैं या नहीं, व्यक्ति जीवन भर इसी दुविधा में फंसा रहता है। ज्ञान धर्मग्रंथों से मिल जाता है, परन्तु सत्य तो यही है कि अपने भीतर और बाहर भगवान के होने का अनुभव सद्गुरु के बिना नहीं हो सकता है। गीता सहित अन्य कई धर्मशास्त्र तत्वज्ञानी और तत्वदर्शी सद्गुरु की खोज करने पर जोर देते हैं।

तद्विद्वि प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया।
उपदेक्ष्यन्ति ते ज्ञानं ज्ञानिनस्तत्त्वदर्शिन:॥

सभी धर्मग्रन्थ भगवान के हमारे भीतर होने की बात करते हैं, परन्तु वो भगवान का अनुभव नहीं करा पाते हैं, क्योंकि भगवान का अनुभव प्राप्त करने की एक क्रियात्मक विधि है, जो लिखने में नहीं आती है। वो दीक्षा के रूप में या क्रिया रूप में सद्गुरु से ही प्राप्त होती है। परमात्मा समय से परे स्थित एक शास्वत धाम है, एक सत्य है, जिसमे प्रवेश कोई सामान्य गुरु अथवा कुलगुरु नहीं करा सकते हैं। उसके लिए एक पूर्ण सद्गुरु की आवश्यकता पड़ती है।

पूर्ण सद्गुरु देहधारी और सर्वव्यापी परमात्मा दोनों रूपों में है। देहधारी पूर्ण सद्गुरु की खोज कठिन है। एक कहावत है- पानी पियो छान के, गुरु करो जान के। परन्तु यहाँ भी एक दिक्कत है और वो ये कि आप गुरु को जानेंगे कैसे? यदि गुरु को जान ही लें तो हम खुद सद्गुरु न हो जाएँ। देहधारी पूर्ण सद्गुरु की खोज असंभव नहीं कठिन जरूर है, इसलिए संत सुझाव देते हैं कि परमात्मा का परिचायक दो ढाई अक्षर का मन्त्र जैसे- ऑम, राम, गुरु, शिव या फिर कोई अन्य श्वांस के साथ जपना शुरू करें। जप शुरू करने के कुछ समय पश्चात एक परमात्मा में श्रद्धा, पुण्य और पुरुषार्थ स्थिर होने पर परमात्मा किसी देहधारी सद्गुरु से मेल करा देते हैं।
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एक परमात्मा के भजन से आत्मा जागृत हो जाती है और उसकी भेंट किसी सद्गुरु से हो जाती है। सद्गुरु के मिलने और उनसे दीक्षा लेने के बाद हमारे भीतर क्रिया योग अथवा यौगिक क्रिया की जाग्रति हो जाती है। तत्वदर्शी देहधारी सद्गुरु का सानिध्य और उनके अनुसार बताई गई साधना ह्रदय में वास करने वाले ईश्वर को जागृत कर देती है। सोई हुई और तटस्थ आत्मा के जागते ही परमात्मा रूपी इष्ट के अनुभव, संकेत और आदेश मिलने लगते हैं। परमात्मा आप से बात करेंगे और साधना पथ पर आपका पूरा मार्गदर्शन करते हुए आपको चलाएंगे भी। भगवान के संकेत और निर्देशन के अनुसार चलकर साधक उन्हें पा लेता है।

नायमात्मा प्रवचनेन लभ्यो
न मेधया न बहुना श्रुतेन।
यमेवैष वृणुते तेन लभ्य-
स्तस्यैष आत्मा विवृणुते तनूं स्वाम्॥

‘न अयम्‌ आत्मा प्रवचनेन लभ्य’ न यह आत्मा प्रवचन से प्राप्त होती है, न विशिष्ट बुद्धि से प्राप्त होती है, न बहुत सुनने-समझने से प्राप्त होती है, बल्कि लाखों भाविकों में से जिस किसी एक का वह परमात्मा वरण कर लेता है और जिसके हृदय में जागृत होकर उसकी उँगली पकड़कर चलाने लगता है, वही उनके निर्देशन में चलकर उसके होने का अनुभव प्राप्त करता है. परमात्मा किसी भक्त की उँगली तभी पकड़ेगा जब उसकी एकमात्र परमतत्व परमात्मा में श्रद्धा हो और उसे किसी तत्वदर्शी सद्‍गुरु का सानिध्य उपलब्ध हों।

सद्गुरु ज्ञान बदरिया बरसे।
गंगा में बरसे, यमुना में बरसे,
ताल-तलैया तरसे।
साधू-संत जन निसदिन भींजे,
निगुरा बूंद भर तरसे।

संत कबीर साहिब वर्तमान समय के सद्गुरु के सानिध्य को उचित और मोक्ष के लिए बेहद जरुरी मानते हैं। संतों के अनुसार ‘गुरु’ शब्द में ‘गु’ का अर्थ है अज्ञान तथा ‘रु’ का अर्थ है अज्ञान का नाश करने वाला। माया या असत्य के अज्ञान रूपी अंधकार से ईश्वर रूपी या ज्ञान रूपी प्रकाश की ओर ले जाने वाले को ‘सद्गुरु’ कहा गया है। आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाने का एक प्रमुख कारण यह है कि आसमान में भटकते बादलों को अज्ञानी शिष्यों के रूप में और इस दिन के पूर्णिमा के चाँद को ‘तत्वदर्शी सद्गुरु’ के रूप में मान्यता दी गई है।
Vedavyasaghg
पांच सखी मिली पकवे रसोइयां,
सूरत सुहागिन परसे।
कहत कबीर सुनो भाई साधो,
विरले शब्द को परखें।

आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाने के और भी कई कारण हैं। महर्षि वेद व्यास जी का जन्म आषाढ़ मास की पूर्णिमा के दिन हुआ था, जो वेदों के प्रथम व्याख्याता तथा महाभारत और ब्रह्मसूत्र जैसे ग्रंथों के रचयिता माने जाते हैं। हिन्दू धर्म को मानने वाले बहुत से अनुयायी उन्हें गुरु और भगवान मान आषाढ़ मास की पूर्णिमा को अपनी भक्ति प्रदर्शित करते हैं। बहुत से लोग गुरु पूर्णिमा के दिन दीक्षा देने वाले अपने गुरु के पास जाकर उनका दर्शन-पूजन करते हैं और अपनी श्रद्धा व भक्ति प्रकट करते हैं। अंत में आप सबको गुरु पूर्णिमा पर्व की बधाई।

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आलेख और प्रस्तुति= सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी, प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम, ग्राम- घमहापुर, पोस्ट- कन्द्वा, जिला- वाराणसी. पिन- 221106
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