Menu
blogid : 15204 postid : 1221437

‘आज के युग का नमक का दारोगा’ कथा भाग-एक-जंक्शन फोरम

सद्गुरुजी
सद्गुरुजी
  • 534 Posts
  • 5673 Comments

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
कहानी- ‘आज के युग का नमक का दारोगा’ भाग-एक
“नौकरी में ओहदे की ओर ध्यान मत देना, यह तो पीर का मजार है। निगाह चढावे और चादर पर रखनी चाहिए। ऐसा काम ढूँढना जहाँ कुछ ऊपरी आय हो। मासिक वेतन तो पूर्णमासी का चाँद है, जो एक दिन दिखाई देता है और घटते-घटते लुप्त हो जाता है। ऊपरी आय बहता हुआ स्रोत है जिससे सदैव प्यास बुझती है। वेतन मनुष्य देता है, इसी से उसमें वृध्दि नहीं होती। ऊपरी आमदनी ईश्वर देता है, इसी से उसकी बरकत होती हैं, तुम स्वयं विद्वान हो, तुम्हें क्या समझाऊँ। इस विषय में विवेक की बडी आवश्यकता है। मनुष्य को देखो, उसकी आवश्यकता को देखो और अवसर को देखो, उसके उपरांत जो उचित समझो, करो। गरजवाले आदमी के साथ कठोरता करने में लाभ ही लाभ है। लेकिन बेगरज को दाँव पर पाना जरा कठिन है। इन बातों को निगाह में बाँध लो यह मेरी जन्म भर की कमाई है।”
(मुंशी प्रेमचंद की कहानी “नमक का दारोगा” से उद्धृत किया गया एक अंश, जिसपर ये कथा “आज के युग का “नमक का दारोगा”आधारित है। मुंशी प्रेमचंद की कहानी “नमक का दारोगा” में दारोगा वंशीधर को अपने पिता मुंशीजी से यही उपदेश मिला था, जिसका उन्होंने पालन नहीं किया, किन्तु आज के युग के दारोगा वंशीधर उसका अक्षरशः पालन करते हैं। साहित्य अपने समय के समाज का आईना होता है। मुंशी प्रेमचंद की कहानी “नमक का दारोगा” उनके समय की एक सामाजिक घटना थी। आज के समय की एक सामाजिक घटना को मैंने कहानी का रूप देने की कोशिश की है।)

आज के युग के वंशीधर नमक विभाग नहीं, बल्कि पुलिस विभाग में दारोगा के पद पर प्रतिष्ठित हो गए, जहाँ पर वेतन तो अच्छा था ही उसके साथ ही ऊपरी आय की तो कोई सीमा ही नहीं थी। उनके वृद्ध पिता मुंशीजी को जब यह सुखद समाचार मिला तो वे फूले न समाए।
वो अपने बेटे को कई वर्षों से यही समझा रहे थे, ‘बेटा! ऐसी नौकरी ढूँढना जहाँ पर अधिक से अधिक ऊपरी आय हो।’
उनके वृध्द पिता मुंशीजी एक सरकारी विभाग से सेवानिवृत बाबू और बहुत अनुभवी पुरुष थे। वो बेटे को समझाने लगे, ‘नौकरी में ऊपरी आमदनी पर विशेष ध्यान रखना चाहिए। गरजवाले आदमी से लेने में कोई हर्ज नहीं। मासिक वेतन भर से संतोष करने वाला व्यक्ति जिंदगी में बहुत ज्यादा उन्नति नहीं कर सकता है। समझदार व्यक्ति तो वो है जो मासिक वेतन को बचाकर अपने बैंक खाते में जमा करता रहे और ऊपरी आय से घर चलाये तथा सुख-सुविधा देने वाली सभी जरुरी चीजों से घर भर दे। यही नहीं, बल्कि ऊपरी आय यदि बहुत ज्यादा हो तो जमीन-जायदाद खरीद लो। आजकल सोना-चांदी खरीदने से कई गुना ज्यादा मुनाफ़ा जमीन-जायदाद खरीदने में है। घर में ज्यादा सोना-चांदी रखना भी तो खतरे से खाली नहीं है। एक तो चोरी और दूसरे सरकारी छापेमारी का डर।’

वंशीधर न केवल विद्वान, बल्कि पिता के आज्ञाकारी पुत्र भी थे। पिता की बातें बड़े ध्यान से सुनीं और उसे अपने मन में गांठ की तरह बाँध ली। उन्होंने बड़ी श्रद्धा भाव से झुककर सदुपदेश देने वाले अपने पिता के पैर छुए और उन्होंने बेटे के सिर पर हाथ रख खूब फलने-फूलने का आशीर्वाद दिया। पिता का सदुपदेश और आशीर्वाद रंग लाया। वंशीधर को दारोगा बने महज कुछ ही साल बीते होंगे कि उनके घर की न सिर्फ शानशौकत बढ़ गई, बल्कि घर के बाहर नया चमचमाता हुआ चार पहिया वाहन भी खड़ा दिखाई देने लगा। वंशीधर की उन्नति और रुआब देख पडोसियों को जलन होने लगी।
दारोगा वंशीधर की ये काबिलियत ही थी कि उनकी दो पुत्रियां और एक पुत्र शहर के सबसे अच्छे और महंगे स्कूल में पढ़ने के लिए जाने लगे थे और उनकी इकलौती प्यारी बहन लाडली डॉक्टरी की पढाई पढ़ रही थी। वंशीधर के घर के बच्चे अच्छी शिक्षा पा रहे थे तो इसकी वजह बच्चों की योग्यता भी थी, लेकिन जलनखोर मोहल्ले वाले इसे वंशीधर की काली कमाई का करिश्मा मानते थे। वो पीठ पीछे कुछ भी सोचें या कहें लेकिन दारोगा वंशीधर और उनके परिवार का दारोगाई रुआब और शानशौकत से भरे सुखी और सम्पन्न जीवन का सुहाना सफर जारी था।

इसी बीच दारोगा वंशीधर के सबसे छोटे और मुंहलगू साला की शादी तय हो गई। एक तो जोरू का भाई और दुसरे बहुत मुंहलगा, सो एक महीने पहले से ही शादी में जाने की तैयारियां जोर-शोर से शुरू हो गईं। दारोगा वंशीधर की पत्नी और उनकी बहन लाडली ने ‘माँ शान्ति देवी आभूषण केंद्र’ के चक्कर लगाने शुरू कर दिए। शहर की ये बेहद प्रतिष्ठित और गहनों की बहुत बड़ी दूकान पंडित अलोपीदीन की थी। सराफा कारोबार में चहुंओर प्रसिद्द उनकी ईमानदारी, साख, विश्वसनीयता, बहुत अच्छा कार्य और व्यक्तिगत जीवन में अपनाई गई धर्मनिष्ठा बरबस ही ग्राहकों को दूकान पर खिंच लाती थी। यही वजह थी कि दूकान पर दिनभर ग्राहकों की भीड़ लगी रहती थी, खासकर महिलाओं की।
दो मुनीम, चार गहने दिखाने वाले कर्मचारी और गहने बनाने वाले अनेक कारीगर सुबह से लेकर रात को दूकान बंद होने तक अनवरत अपने कार्य में लगे रहते थे। हालांकि दूकान घर के ही आगे की ओर का ही एक हिस्सा थी, लेकिन दूकान के मालिक पंडित अलोपीदीन नहाखाकर सुबह एक बार जो दूकान में आते तो फिर रात को ही अपने घर में दुबारा जाते। चमचमाते हुए सफ़ेद धोती कुर्ता में लिपटे गोरे-चिट्टे रंग और लंबी-चौड़ी देह वाले तिलकधारी पंडित अलोपीदीन मुस्कुराते हुए मुखमण्डल के साथ दूकान में प्रवेश करते तो सब हाथ जोड़ अपनी जगह से उठ खड़े होते।

पंडित अलोपीदीन दुकान आकर सबसे पहले एक कोने में फोटो के रूप में विराजमान अपनी स्वर्गीय माँ की पूजा-अर्चना करते और फिर अपनी गद्दी पर बैठ काम-धंधा शुरू कर देते। उनके लिए उनकी माँ ही सबसे बड़ी इष्ट थी। जीवन में कई कामधंधा किये पर असफल रहे। अंत में माँ के कहने पर उन्होंने माँ के ही नाम से आभूषण की एक दूकान खोली जो चल निकली। समय बीतने के साथ साथ उनकी दूकान बड़ी और प्रतिष्ठित होती चली गई। आज माँ तो इस दुनिया में नहीं हैं, पर उनका आशिर्वाद पंडित अलोपीदीन को खूब फल-फूल रहा है ओर वे इसे हमेशा महसूस भी करते हैं।
परिवार में अब उनके साथ उनकी सुशील पत्नी और एम्ए कर रही उनकी एक बेटी है। गलत संगति में पड़कर लाखों रूपये बर्बाद कर देने वाला उनका एक बेटा भी था, जिसे वर्षों पहले वो न सिर्फ घर से निकाल चुके हैं, बल्कि अपनी तमाम जमीन-जायदाद और संपत्ति से भी उसे बेदखल कर चुके हैं।

जिसदिन दारोगा वंशीधर के साले की शादी थी, उस दिन सुबह से ही उनके घर पर काफी चहल-पहल थी और बड़ी जोर-शोर से शादी में जाने की तैयारियां चल रहीं थीं। दारोगा वंशीधर के तीन मंजिले आलिशान घर के बाहर ड्राईवर चमचमाती हुई नई बोलेरो को धोपोंछकर चमचमाने में लगा था।
लोहे का बड़ा और खूबसूरत गेट खुला हुआ था। रंग-बिरंगी नई और महंगी पोशाकें पहने हुए बच्चे घर के अंदर इधर उधर दौड़भाग कर धमाचौकड़ी मचाये हुए थे। अच्छे ढंग से प्रेस की हुई नई पेंट कमीज पहने मुंशी जी भी चलने के इन्तजार में सोफे पर आँख मूंदें हुए लेटे थे।
उधर अपने कमरे से दारोगा वंशीधर की पत्नी सत्या अपनी ननद को आवाज लगा रही थी, ‘लाडली जरा सुन तो! एक जरुरी काम है।’
सजी-धजी मुस्कुराती हुई लाडली पहुंची तो सत्या खुली गोदरेज की खुली आलमारी के सामने से हटते हुए बोली- ‘हमारे घर में वैसे तो चोरी का डर नहीं, लेकिन फिर भी तू गहने सब सहेज के रख दे। रूपये मैंने संभाल के रख दिए हैं। मैं जरा बाथरूम जा रही हूँ। वो आते ही होंगे।’
लाडली गहने सहेजकर रखने में जुट गई। कुछ ही देर में दरोगा वंशीधर भी आ पहुंचे। घर में घुसते ही जोर से बोले, ‘अरे भाई! तुम लोग कहाँ हो? अभी तक तैयार नहीं हुए? अब चलो भी!’
वंशीधर की रोबीली कड़कदार आवाज सुनते ही सब के सब चप्पल-जूते पहनते हुए बड़ी तेजी से घर के बाहर निकल आये। घर के मुख्य दरवाजे और गेट पर ताले जड़ दिए गए। सब लोग गाडी में बैठ चल दिए।

दारोगा वंशीधर अपने परिवार के साथ गए तो थे एक मंगल कार्य में किन्तु उसी दिन आधी रात के समय उनके घर में अमंगल हो गया। चोर आये और उनके घर के गेट और मुख्य दरवाजे का ताला तोड़ घर के अंदर घुस गए। कई घंटे तक सब कमरों का सामान इधर उधर फेंक गहने, रूपये और अन्य कीमती सामान तलाशते रहे। सुबह भोर में पड़ोसियों के जागने की आहट मिलते ही चोर भाग खड़े हुए। सुबह के चार बजते-बजते दरोगा वंशीधर अपने परिवार के साथ घर वापस लौट आये। केवल लाडली साथ नहीं थी। दुल्हन उसकी एक घनिष्ठ सहेली निकली, इसलिए कुछ रोज के लिए वो वहीँ रुक गई थी। गाडी से उतरते ही जब सबकी नजर खुले गेट और जमींन पर फेंके गए टूटे हुए ताले पर गई तो सबके होश उड़ गए। गेट के अंदर घुसे तो घर का मुख्य दरवाजा भी खुला हुआ पाया। सब घबराते हुए धड़कते दिल से घर के अंदर घुसे। घर के अंदर की उथल-पुथल व इधर-उधर फेंके सामान देख सब लोग सन्न रह गए।
सत्या चिल्लाते हुए ‘हे भगवान्!’ कहकर अपने कमरे की तरफ भागी। दारोगा वंशीधर तुरंत अपने थाने पर फोन किये। कुछ ही देर में पड़ोसियों और पुलिस वालों की भारी भीड़ जुट गई। ‘दारोगा के घर में चोरी’ ये बात जो सुने वही दंग रह जाए। पुलिस वाले दारोगा वंशीधर के सामने सिर झुकाये खड़े थे। दारोगा वंशीधर गुस्से के मारे लगभग चीखते हुए बोले, ‘दारोगा के घर में चोरी! क्या इज्जत रह गई हमारी! मेरे यहाँ चोरी करने वाले सारे चोरों की गिरफ्तारी चोरी किये गए सारे सामान के साथ चौबीस घण्टे के अंदर हो जानी चाहिए!’

दारोगा वंशीधर के थाने में उनके अधीन काम करने वाले सभी पुलिस कर्मी उन्हें सलाम ठोंक चोरों को ढूंढने व पकड़ने के लिए निकल गए। केवल शक और पुराने आपराधिक रिकार्ड के आधार पर आनन्-फानन में दसों स्थानीय चोर गिरफ्तार कर लिए गए, जो वस्तुतः नशेड़ी थे और अपनी नशे की लत पूरी करने की खातिर छोटी-बड़ी चोरियां करते थे। चोरी से सम्बन्धित तमाम क़ानूनी खानापूर्ति कर और मिलने के लिए आने वाले तमाम छोटे-बड़े अधिकारियों से फुरसत पाकर शाम के समय दारोगा वंशीधर थाने पहुंचे। थाने में दर्दनाक चीख-पुकार मंची हुई थी। शक के आधार पर पकडे गए आरोपियों को चोरी का अपराध स्वीकारने के लिए तरह तरह की यंत्रणाएं दी जा रही थीं। किसी को खड़ाकर तो किसी को उल्टा लटकाकर पिटा जा रहा था।
दारोगा वंशीधर को देखते ही लॉकअप में बंद होकर मार खाते सब के सब आरोपी हाथ जोड़कर विनती करने लगे कि साहब मैं निर्दोष हूँ। मुझे छोड़ दीजिये।
दारोगा वंशीधर ऊँची आवाज में बोले, ‘जबतक जर्म न कुबूलें इनकी खातिरदारी जारी रखो।’
पुलिस वालों की मारपीट के साथ साथ आरोपियों की दर्दनाक चीख-पुकार में भी तेजी आ गई।

कहते हैं न कि पुलिस वालों से न दोस्ती भली और न ही दुश्मनी। सभी आरोपियों की यही हालात थी। जब तक देते रहे दोस्ती रही ओर अब लेने के शक में दुश्मनी ठन गई है। दारोगा वंशीधर अपनी कुर्सी पर पीछे सिर टिका बैठ गए और आँखे मूंदकर आराम फरमाने लगे। उधर आरोपियों की रुकरुककर रातभर पिटाई होती रही।
सुबह चार बजे दारोगा वंशीधर की नींद खुली तो अपने मातहत अधिकारी को बुलाकर पूछे, ‘किसी ने चोरी का जुर्म कुबूला?’
कनिष्ठ अधिकारी ने निराश होकर कहा, ‘नहीं सर! रातभर मार खा खा के सबकी बहुत बुरी हालत हो चुकी है! उन्हें अब और मारना खतरे से खाली नहीं! पुलिस हिरासत में किसी को कुछ हुआ तो आफत आ जायेगी।’
दारोगा वंशीधर ने निराशा से भरी गहरी सांस खींचते हुए कहा, ‘ठीक है मारपीट बंद कर दो।’
दारोगा वंशीधर कुछ देर तक अपनी आँखे बन्द कर कुछ सोचते रहे, फिर सहसा आँखे खोलते हुए अपनी कुर्सी से उठे और एक लॉकअप रूम की तरफ बढेे। जिस लॉकअप में श्याम टेटू और सोनू पण्डित बन्द थे, वो वहीँ पहुँच गए। ये शहर के दो सबसे बड़े शातिर चोर थे, जिनपर दारोगा वंशीधर को शक था। दारोगा वंशीधर को देखते ही रातभर मार खाकर अधमरे हो चले दोनों आरोपी बुरी तरह से रोने गिड़गिड़ाने लगे।

दारोगा वंशीधर ने सिपाहियों को दो ईंटें और एक लोहे की सरिया लाने आदेश दिया। कुछ ही क्षणों में वो सब सामान हाजिर था।
दारोगा वंशीधर ने हुक्म दिया, ‘नीचे फर्श पर एक ईंट रखो और उससे एक हाथ की दूरी पर दूसरी ईंट रखो। अब इसी ईंट पर बारी बारी से इन दोनों का एक-एक पैर रखकर लोहे की रॉड से मारकर दो टुकड़े कर दो। और हाँ.. इन्हें इसी लॉकअप रूम में कुछ रोज के लिए तड़फने व मरने को छोड़ देना। जब डॉक्टर के पास इन्हें ले जाएंगे तो वो गैंगरीन बता इनके पैर काट देगा।’ दारोगा वंशीधर के मुंह से ये सुनते ही दोनों आरोपी थर-थर कांपते हुए उनका पैर पकड़ लिए। दारोगा वंशीधर सिपाहियों की ओर देख कुछ इशारा किये।
जैसे ही दो सिपाही श्याम टेटू का पैर पकड़ खींचने लगे, वो चिल्लाया, ‘सबकुछ बताता हूँ साहब! आपके यहाँ चोरी हमने ही की है।’
दारोगा वंशीधर यह सुनकर गुस्से से आगबबूला हो श्याम टेटू की गर्दन दबोच लिए और पूछे, ‘घर से सिर्फ गहने चोरी हुए हैं। बता वे गहने कहाँ हैं?’
श्याम टेटू गिड़गिड़ाते हुए बोला, ‘साहब! चोरी के गहने पंडित अलोपीदीन की दुकान पर ले जाकर हम लोग बेंचे हैं।’

दूसरे आरोपी सोनू पण्डित ने भी श्याम टेटू की हाँ में हाँ मिलाई। पुलिसवाले उस समय चौक गए जब पूछताछ में सोनू पण्डित ने अपने पिता का नाम पंडित अलोपीदीन बताया। पुलिसकर्मियों के थकेहारे व बुझे हुए चेहरों पर रौनक और मुस्कराहट लौट आई। सारे पुलिसकर्मी दारोगा वंशीधर की वाहवाही करने लगे। जो काम वो रातभर मारपीटकर न कर सके थे वो दारोगा वंशीधर ने अपनी सूझबूझ से कुछ ही देर में कर दिखाया था। दारोगा वंशीधर के मातहत दोनों कनिष्ठ अधिकारी भी उनसे काफी प्रभावित हुए। आज उन्होंने चोरों से जुर्म कुबूलवाने के सूझबूझ भरे अनुभवी गुर जो सीखे थे।
दारोगा वंशीधर ने श्याम टेटू से पूछा, ‘तुम्हारे साथ और कौन कौन थे?’
श्याम टेटू ने हाथ जोड़कर कहा, ‘बस मैं और सोनू पण्डित थे। इसके अलावा हमारे साथ और कोई नहीं था साहब।’
दारोगा वंशीधर ने श्याम टेटू और सोनू पण्डित को छोड़ बाकी सब आरोपियों को छोड़ने का आदेश दिया। इसके साथ ही सबको चाय पिलाने का भी आदेश दिया। दारोगा वंशीधर अपने केबिन में आ अपने कनिष्ठ अधिकारियों से इस विषय पर बातचीत करने लगे कि पंडित अलोपीदीन की दुकान पर किस तरह से छापा मारा जाए कि चोरी का सारा माल बरामद हो जाए।

नोट- कृपालु पाठकों से निवेदन है कि कृपया आगे की कथा “आज के युग का नमक का दारोगा” भाग-दो में पढ़े, जो अगले ब्लॉग में प्रकाशित है।

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
कहानी और प्रस्तुति= सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी, प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम, ग्राम- घमहापुर, पोस्ट- कन्द्वा, जिला- वाराणसी. पिन- 221106
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ ‘

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh