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रक्षाबन्धन: महिलायें अपनी रक्षा करने के लिए स्वयं जागरूक हों
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः ।
यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः ।।
भावार्थ- जहां स्त्रीजाति का आदर-सम्मान होता है, उनकी सुरक्षा की जाती है और उनकी आवश्यकताओं-अपेक्षाओं की पूर्ति होती है, उस स्थान, समाज, तथा परिवार पर देवतागण प्रसन्न रहते हैं. जहां ऐसा नहीं होता और उनके प्रति तिरस्कारमय व्यवहार किया जाता है, वहां देवकृपा नहीं रहती है और वहां संपन्न किये गये कार्य सफल नहीं होते हैं.
हिन्दू धर्मग्रंथों में कहा गया है कि आकाश में देवताओं के विभिन्न लोक हैं, जहाँ वो बसतें हैं. अंतरिक्ष में देवता सदैव भ्रमण करते हैं और पृथ्वीलोक में तो मनुष्य के भीतर और बाहर दोनों जगह रमण करते हैं. देवताओं को सर्वव्यापी निराकार ब्रह्म का लौकिक यानि सगुण रूप माना जाता है. बृहदारण्य उपनिषद में कहा गया है कि देवी देवता व्यापक रूप में 33 करोड हैं. संक्षिप्त रूप में 33 प्रकार के हैं और अंत में केवल एक ब्रह्म है, जिसके ये सब विभिन्न लौकिक और कार्यकारी रूप हैं. परमात्मा ने यदि 33 करोड़ देवी-देवता इस संसार के हित के लिए नियुक्त कर रखें हैं तो वो सब कहाँ हैं? उनके पृथ्वी पर रमने से मनुष्य को क्या फायदा हो रहा है? इस समय धरती पर असुरों का साम्राज्य कायम होता जा रहा है.
मनुष्य दिन प्रतिदिन अपना देवत्व खोकर असुर होता जा रहा है. देवी-देवता क्या कर रहे हैं? क्या वो धरती पर जारी पाप का तमाशा भर देखने के लिए हैं? यदि हाँ तो ऐसे देवी-देवताओं को पूजने और याद करने की बजाय उन्हें भूल जाने में ही मनुष्य की भलाई है. धरती पर इस समय इंसान इतना खूंखार, वहशी और दरिंदा हो गया है कि नारी को पूजने की बात तो दूर रही, वो तो उसे भोग की वस्तु समझ कहीं से भी उठाकर न केवल भोग रहा है, बल्कि उसकी नृशंस हत्या भी कर दे रहा है. चाहे वो नौकरी के लिए जाती महिला हो, वाहन में सवार महिला हो, शौच के लिए जाती महिला हो या फिर पूर्णत:सुरक्षित समझे जाने वाले घरो में रहने वाली महिला ही क्यों न हो, आज वो कहीं भी सुरक्षित नहीं है.
कुछ समय पहले अख़बार में छपी एक खबर ने मेरे समूचे मानवीय बजूद को ही झकझोर कर रख दिया था. एक दरिंदा सगी बेटी के साथ सात साल से दुष्कर्म करता रहा. उसके इस कुकृत्य के कारण उसकी दो बीवियों ने आत्महत्या कर ली, तीसरी ने तलाक दे दिया और चौथी इस समय प्रसूता है मगर उस इंसान की हवस की भूख नहीं मिटी. उसने फिर से अपनी शादीशुदा बेटी की अस्मत लूटनी चाही लेकिन इस बार बेटी ने हिम्मत दिखाते हुए पुलिस से शिकायत की, जिसके बाद से वो दुराचारी पिता जेल में है.
अब विचार इस बात पर करना है कि महिलाओं पर जो अत्याचार हो रहा है, उसका समाधान क्या है? महिलायें अपने को कमजोर समझकर संकट के समय देवी देवताओं को पुकारना छोड़ें. आज से पांच हजार वर्ष पूर्व बलात्कार का शिकार होती द्रौपदी ने उन सभी देवी-देवताओं को पुकारा था, जिनकी उसने सिद्धि की थी और जिनकी रोज पूजा करती थी, परन्तु कोई भी देवी देवता उसकी इज्जत बचाने नहीं आया. अंत में उसने भगवान श्री कृष्ण को याद किया, जिन्होंने उसकी लाज बचाई. परन्तु ये गुजरे हुए इतिहास की सदियों पुरानी बात है. किसी संकटग्रस्त महिला की मदद करने के लिए आज भगवान श्री कृष्ण शरीर रूप से हम सबके बीच नहीं हैं. आज का वो श्री कृष्ण रूप हमारी आदलते हैं, वो अपना न्याय रूपी सुदर्शन चक्र चलायें और बलात्कारी व हत्यारे असुरों को कठोरतम दंड दें.
ज्यादा अच्छा तो यही है कि ऐसे हैवानों को सार्वजनिक रूप से फांसी की सजा दी जाए, जिससे महिलाओं की आजादी के सबसे बड़े दुश्मन बलात्कारियों को समुचित सबक मिल सके और महिलाओं के प्रति बुरी नियत रखने वालों में कानून का ख़ौफ़ पैदा हो. आज के आपराधिक समय में महिलाऐं अपनी रक्षा करने के लिए स्वयं को जागरूक करें. संकट के समय अपनी रक्षा करने के लिए महिलाएं जुडो-कराटे और मार्शल आर्ट सींखें. वो भयभीत होकर देवी-देवताओं को पुकारने की बजाय अपने भीतर और बाहर व्याप्त परमात्मा को याद कर तुरंत शिव या दुर्गा का रौद्र रूप धारण कर लें और पूरी हिम्मत से अपराधियों का मुकाबला करें.
छोटे बच्चियों की रक्षा माता-पिता स्वयं करें, जो हैवानों से अपनी रक्षा करने में असमर्थ हैं. अपने पडोसी, ट्यूशन पढ़ाने वाले और अपने रिश्तेदारों पर कभी भी आँख मूंद के विश्वास न करें. सबसे बड़ी बात ये कि बच्चे यदि यौन-उत्पीडन की शिकायत माता-पिता से करें तो उसे उपेक्षित न कर बहुत गम्भीरता से लें. बच्चे की पूरी बात सुनें और सत्य की पड़ताल जरूर करें. अंत में रक्षाबन्धन की बधाई देते हुए यही कहूंगा कि भाई तो आजीवन अपना कर्तव्य निभाएगा ही, किन्तु महिलाऐं खुद भी साहसी बनें. अपनी रक्षा करने के लिए वो स्वयम जागरूक हों और जरुरत पड़ने पर पुलिस और कानून का सहारा भी जरूर लें. !! वन्देमातरम !!
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आलेख और प्रस्तुति= सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी, प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम, ग्राम- घमहापुर, पोस्ट-कंदवा, जिला- वाराणसी. पिन- 221106
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