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17 सितम्बर: विश्वकर्मा पूजन और मोदी रूपी विश्वकर्मा का जन्मदिन
सृष्टि के कार्य में सहयोग कर्ता, शिल्प कलाधिपति, तकनीकी और विज्ञान के जनक भगवान विश्वकर्मा जी की पूजा-अर्चना यूँ तो वर्ष भर में कई बार की जाती है, किन्तु हर वर्ष 17 सितंबर को देव शिल्पी विश्वकर्मा जी का जन्मदिन विश्वकर्मा जयंती अथवा विश्वकर्मा पूजा के रूप में देश भर में मनाया जाता है. हालाँकि हिन्दू धर्म शास्त्रों के अनुसार विश्वकर्मा जी का जन्म माघ शुक्ल त्रयोदशी को हुआ था. इन्हें भगवान् शिव का अवतार भी माना जाता है, क्योंकि वृद्ध वशिष्ठ पुराण मे स्वयं भगवान् शिव ने अपनी पत्नी पार्वती जी से कहा है, “हे पार्वती माघ मास की त्रयोदशी तिथि के पुनर्वसु नक्षत्र के अट्ठाइसवे अँश मे मैँ विश्वकर्मा के रूप मे जन्म लेता हूँ.”
माघे शुकले त्रयोदश्यां दिवापुष्पे पुनर्वसौ।
अष्टा र्विशति में जातो विशवकमॉ भवनि च।।
महर्षि प्रभास वसु और वरस्त्री से कलाधिपति भगवान विश्वकर्मा जी का जन्म हुआ हुआ था, इसलिए उन्हें वसु पुत्र विश्वकर्मा’ भी कहते है. उनकी माता वरस्त्री कोई साधारण स्त्री नहीं थीं, वो देवताओं के गुरु बृहस्पति की बहन थीं. उन्हें वेद पँडिता और योग सिद्धा भी कहा गया है. कहा जता है कि वो अपने अपने योग बल से आकाश मार्ग के द्वारा कहीँ भी आने-जाने में सक्षम थीं. विश्वकर्मा जी को बहुत सी विद्याओं का ज्ञान और कई तरह की सिद्धियां अपनी माता जी से ही प्राप्त हुई थीं. पौराणिक ग्रंथों के अनुसार देवशिल्पी विश्वकर्मा जी देवताओं के लिए महल, अस्त्र-शस्त्र, आभूषण आदि बनाने का काम करते हैं. शास्त्रों के अनुसार भगवान विश्वकर्मा जी सृष्टि की रचना और विकास में ब्रह्मा जी की सहायता करते हैं. ऐसी लोक मान्यता है कि उड़ीसा में स्थित भगवान जगन्नाथ, बलभद्र एवं सुभद्रा की मूर्ति का निर्माण विश्वकर्मा जी ने ही किया था.
एक धार्मिक कथा के अनुसार भगवान शिव ने पार्वती जी से विवाह करने के बाद पत्नी द्वारा अच्छा घर न होने की शिकायत करने पर विश्वकर्मा जी को लंका में सोने का महल बनाने का आदेश दिया था. उन्होंने नए घर के गृह पूजन के लिए रावण को पंडित के तौर पर बुलाया. सोने का महल देखकर रावण के मन में लालच आ गया. उसने पूजा के पश्चात छल और चतुराई दिखाते हुए भगवान शिव से दक्षिणा के रूप में सोने की लंका ही मांग लिया. हनुमान जी ने सीता की खोज करने के दौरान जब सोने की लंका को जला दिया था तब रावण के कहने पर विश्वकर्मा जी ने ही सोने की लंका का पुनर्निमाण किया था. कई देवताओं के दिव्य विमान और स्वर्ग के राजा इन्द्र का सबसे शक्तिशाली अस्त्र वज्र का निर्माण भी विश्वकर्मा जी ने ही किया था. शास्त्रों में इस बात के अनेक प्रमाण हैं कि विश्वकर्मा जी का पूजन और आह्वाहन प्राचीन काल से ही होता चला आ रहा है.
वर्तमान मशीनी युग में प्राचीन काल के पहले और दिव्य मन्त्रों व यन्त्रों से सिद्ध इंजीनियर विश्वकर्मा जी का महत्व और भी ज्यादा बढ़ गया है. हमारे देश में पहले ज्यादातर शिल्पकार लोग ही विश्वकर्मा जी की पूजा किया करते थे, लेकिन अब तो देश भर में प्रतिवर्ष 17 सितम्बर को सरकारी व गैर सरकारी तमाम ईजीनियरिग और कंस्ट्रक्शन संस्थानो मे बडे ही हषौलास से विश्वकर्मा-पूजन सम्पन्न होता है. यही नहीं, बल्कि हर तरह के छोटे-बड़े कारखानों से लेकर बहुत सी दुकानों और यहाँ तक कि घरों में भी इनकी पूजा होने लगी है. कारीगरों की ऐसी मान्यता है कि विश्वकर्मा की पूजा करने से मशीनें जल्दी खराब नहीं होती हैं और काम करते समय धोखा नहीं देती है. इस दिन सब काम रोककर मशीनों और ओजारों की साफ-सफाई की जाती है और फिर फूल. माला और मिठाई आदि समर्पित कर विश्वकर्मा जी की पूजा-अर्चना की जाती है.
भगवान विश्वकर्मा जी को पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ पुष्प चढ़ाकर कहा जाता है- ‘हे विश्वकर्मा जी, इस मूर्ति, फोटो या प्रतिष्ठान में आइये, विराजिए और मेरी पूजा स्वीकार कीजिए. इस पूजन के बाद कारखाने में स्थित विविध प्रकार के औजारों और यंत्रों आदि की पूजा की जाती है और तत्पश्चात हवन-यज्ञ किया जाता है. भगवान विश्वकर्मा जी का एक मंत्र है, जो जाप हेतु प्रयोग किया जाता है- “ओम आधार शक्तपे नम:. ओम् कूमयि नम:. ओम् अनन्तम नम:. ओम् पृथिव्यै नम:.” विश्वकर्मा जी की पूजा का मूलमंत्र और शुभ सन्देश यही है कि जिन मशीनों और ओजारों का हम अपने कारखानों या घरों में नित्य प्रयोग करते हैं, उसकी वर्ष में कम से कम एक दिन तो विधिवत साफ-सफाई करें. हम मशीनों का ख्याल रखेंगे तो वो भी हमारा ख्याल रखेंगी और बिना बार-बार बिगड़े व रुके-थके हमारे लिए अनवरत सोना उगलती रहेंगी.
17 सितंबर को ही हमारे देश के वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी का जन्म दिवस मनाया जाता है. कांग्रेस के भ्रष्ट और घाटोलों से भरे शासनकाल में कभी सोने की चिड़िया कहे जाने वाले देश की दशा बेहद खराब हो चली थी. सौभाग्य से देश की जनता ने सही समय पर कांग्रेस से सत्ता छीनकर मोदी जी को सौप दी. मोदी जी ठीक वही कार्य कर रहे हैं जो सोने की लंका के जलने के बाद विश्वकर्मा जी ने किया था. कांग्रेस ने लूट और घोटालों की अग्नि में देश को जला ही डाला था. अब मोदी जी देश का पुनर्निमाण कर रहे हैं. उन्हें आधुनिक भारत का विश्वकर्मा कहना चाहिए. उनके 67वें जन्म दिवस के मौके पर 17 सितंबर को भाजपा रक्तदान शिविर, अस्पतालों में फल वितरण, स्वच्छता कार्यक्रम आदि जैसे रचनात्मक और गरीबों व असहाय लोगों से जुड़े सेवा के कार्यक्रम चला रही है, इससे अच्छी बात और क्या होगी. मोदी जी स्वस्थ रहे और दीर्घायु हों. देश की जनता दस साल और प्रधानमंत्री मोदी जी का इसी तरह से साथ दे, भारत का सर्वांगीण विकास सुनिश्चित है.
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आलेख और प्रस्तुति= सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी, प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम, ग्राम- घमहापुर, पोस्ट- कन्द्वा, जिला- वाराणसी. पिन- 221106
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