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राहुल गांधी की प्रधानमंत्री मोदी पर बेहूदा और गैरजिम्मेदाराना टिप्पणी

सद्गुरुजी
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राहुल गांधी की प्रधानमंत्री मोदी पर बेहूदा और गैरजिम्मेदाराना टिप्पणी, जिसकी मोदी के घोर विरोधी अरविद केजरीवाल तक ने कड़ी निंदा की है. क्या राहुल गांधी को इतनी भी अक्ल नहीं है कि इस समय सर्जिकल स्ट्राइक के मुद्दे पर राजनीति करने की बजाय सेना और पीएम मोदी के साथ एकजुट होकर खड़े रहने की जरुरत है?

नई दिल्ली के जंतर-मंतर पर किसानों को संबोधित करते कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा, ‘जो हमारे जवान हैं जिन्होंने अपना खून दिया है, जम्मू और कश्मीर में खून दिया है, जिन्होंने हिन्दुस्तान के लिए सर्जिकल स्ट्राइक किये हैं, उनके खून के पीछे आप (मोदी) छिपे हैं. उनकी आप दलाली कर रहे हो. ये बिल्कुल गलत है.’ उन्होंने मोदी पर निशाना साधते हुए कहा, ‘भारतीय सेना ने देश के लिए अपना काम किया है, आप अपना करिए.’ राहुल गांधी की इन बातों का क्या अर्थ हैं? देश के अति सुयोग्य और जनता के बीच बेहद लोकप्रिय प्रधानमंत्री को दलाल कह रहे हैं, जबकि सारी दुनिया ये सच्चाई जानती है कि जिस पार्टी से राहुल गांधी जुड़े हैं, उसने बीते 70 साल में दलाली खाने का वर्ल्ड रिकार्ड बनाया हुआ है. ‘दलाली’ खाना कांग्रेस का स्वभाव बन गया था. 2जी, सीडब्ल्यूजी, कोयला घोटाले आदि यूपीए सरकार में ही हुए थे. खुद राहुल गांधी 5000 करोड़ रुपए के नेशनल हेरल्ड घोटाले में जमानत पर हैं. डॉक्टर जाकिर नाइक जैसे देशद्रोही से वर्ष 2011 में राजीव गांधी ट्रस्ट ने 50 लाख रुपए की राशि अनुदान के रूप में प्राप्त किया था.

उस समय ट्रस्ट की सर्वेसर्वा कांग्रेस पार्टी की अध्यक्षा सोनिया गांधी थीं. मोदी जैसे देशभक्त, निष्काम भाव वाले और पूरी तरह से ईमानदार प्रधानमंत्री पर दलाली जैसा हास्यास्पद आरोप लगाना उल्टे भ्रष्ट कांग्रेस के मुंह पर तमांचा मारने जैसा है, जो अपने शासनकाल में हर चीज में दलाली खाने वाली पार्टी बन गई थी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर ‘जवानों के खून की दलाली’ सम्बंधी टिप्पणी मानसिक रोग के शिकार व्यक्ति के वक्तव्य लगते हैं. दरअसल वो अभी तक मोदी से 2014 में मिली बहुत बड़ी सियासी हार को भूल नहीं पाए हैं. उन्होंने कभी स्वयं कहा था, ‘मैं आपको बताता हूं आखिरी बार जब मैं विपश्यना के लिए गया तो मैं असमंजस में था. सोचा कि 2014 में बड़ी हार की वजह राहुल गांधी है, ये जानकर मानसिक तनाव हुआ. सिर्फ यही सोचता रहा कि क्या मेरी राजनीति गलत है?’ राहुल गांधी ने सच कहिये या फिर मन की कड़वाहट कहिये, वो बयान कर ही दी थी. वो 2014 की बड़ी हार के बाद बर्मा में विपश्यना करने गए थे, किन्तु उनपर साधना का कोई असर दिखता नहीं है. विपश्यना करने वाला शांतचित्त और प्रेममय हो जाता है.
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किन्तु इसके ठीक उलट राहुल गांधी आज भी बचपन में कभी चाय बेचने वाले पीएम मोदी से बेहद नफरत करते हैं और खुद को पीएम की कुर्सी का असली खानदानी वारिस समझते हैं. राहुल गांधी कांग्रेस के युवराज हो सकते हैं, पर आजाद हिंदुस्तान के नहीं. बहुत गुलामी कर लिया हमलोंगों ने वंशवाद, खानदान और परिवारवाद की, अब नेहरू खानदान और गांधी के नाम पर जनता को मूर्ख और गुलाम बनाने की राजनीति नहीं चलेगी. राष्ट्रीय राजनीति में मोदी के आने से देश में एक बहुत बड़ा बदलाव आया है. सारी दुनिया आज हर क्षेत्र में जारी भारत की जोरदार आर्थिक उन्नति, बहुत सफल विदेश नीति और गहरे रसूख को सलाम कर रही है. पहले देश की सेना पाकिस्तानी सेना से लड़ती थी और अब सीमा पार कर सीधे आतंकियों पर प्रहार करना शुरू कर दी है. प्रधानमंत्री तो अपने मुंह से सेना के सर्जिकल स्ट्राइक की चर्चा ही नहीं कर रहे हैं. उन्होंने अपने मंत्रियों को भी इसकी चर्चा न करने की हिदायत दे रखी है. ऐसे में राहुल गांधी की पीएम मोदी के लिए ‘जवानों के खून की दलाली’ वाली टिप्पणी बेहूदा और गैरजिम्मेदाराना लगती है.

ये उनके मन का भय भी जाहिर करती है कि आगामी चुनावों में सर्जिकल स्ट्राइक की वजह से कहीं सब जगह कांग्रेस का सूपड़ा साफ़ न हो जाए और कांग्रेस के हारने का ठीकरा फिर से कहीं उनके माथे पर आकर न फूटे. वो भावी पीएम तो क्या विपक्ष के नेता कहलाने लायक भी नहीं लगते. ज़रा भी देश, प्रधानमंत्री और सेना से प्रेम और शर्मोहया उनके भीतर बची हो तो तुरन्त उन्हें माफ़ी मांगनी चाहिए. सच कहूँ तो राहुल गांधी का भाषण सुनकर मुझे कभी नहीं लगा कि हिंदुस्तान का कोई परिपक्व नेता या एक भावी प्रधानमंत्री भाषण दे रहा है. किसी प्रादेशिक चुनाव में भी जाकर तोते की तरह बस मोदी मोदी रटते हैं और बिना सोचे समझे उलजुलूल भाषण देते हैं. वो पीएम मोदी के बराक ओबामा और अमिताभ बच्चन के साथ सेल्फी लेने पर अपने दिल की जलन जाहिर कर देते हैं. पत्रकारों द्वारा कुछ ऐसा वैसा सवाल पूछने पर वो गुस्से में आ हिंदी छोड़ अंग्रेजी बूकने लगते हैं. वस्तुतः उनका रहन सहन विदेशी है और वो देखने में भी हिंदुस्तानी कम विदेशी ज्यादा लगते हैं. इसलिए चुनाव के समय उनका गरीबों के बीच जाना एकदम दिखावटी लगता है. भारतीय जनता उन्हें प्रधानमंत्री के रूप में पिछले लोकसभा चुनाव में अस्वीकार कर चुकी है.

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