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न्यूज चैनलों के ओपिनियन पोल यूपी की सियासी सरगर्मी को बढ़ा रहे हैं

सद्गुरुजी
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न्यूज चैनलों के ओपिनियन पोल यूपी की सियासी सरगर्मी को बढ़ा रहे हैं
उत्तर प्रदेश में चुनाव की घोषणा होने में अभी दो-ढाई महीने का समय लग सकता है, किन्तु राज्य का माहौल अभी से ही चुनावी रंग में रंग गया है. विभिन्न दलों के बीच बहुत जोरशोर से सियासी घमासान जारी है. आगामी चुनाव से होने वाले नफा-नुकसान का अनुमान लगा एक दल से दूसरे दल में जाने वाले अवसरवादी नेताओं की भागदौड़ भी जारी है. न्यूज चैनलों के ओपिनियन पोल सियासी सरगर्मी को और बढ़ा रहे हैं. 5 सितंबर से 5 अक्टूबर के बीच 403 विधानसभा क्षेत्रों में 22,231 लोगों से राय लेकर इंडिया टुडे-एक्सिस द्वारा किये गए ताजा ओपिनियन पोल सर्वे के अनुसार आज के हालात में यदि यूपी में चुनाव होते हैं तो बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरेगी. वो बहुमत के बेहद करीब दिख रही है. 403 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा को 170 से 183 सीटें, बीएसपी को 115 से 124 सीटें, सपा को 94 से 103 सीटें, कांग्रेस को 8 से 12 सीटें और अन्य को 2 से 6 सीटें मिलने की सम्भावना जताई जा रही है. इंडिया टुडे ग्रुप के लिए किये गए इस सर्वे में मुख्यमंत्री पद के लिए बीएसपी प्रमुख मायावती वोटरों की पहली पसंद हैं.

सर्वे में शामिल 31 फीसदी लोग मायावती को, 27 फीसदी लोगों ने अखिलेश यादव को. 18 फीसदी लोग गृहमंत्री राजनाथ सिंह को, 14 फीसदी लोग योगी आदित्यनाथ को, 2 फीसदी लोग प्रियंका वाड्रा (प्रियंका गांधी) को और केवल 1 फीसदी लोग शीला दीक्षित को मुख्यमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं. यूपी में सरकार बनाने के लिए कुल 202 सीटें जीतना जरुरी है. वर्ष 2012 में अखिलेश यादव की अगुवाई में सपा ने कुल 224 सीटों पर जीत हासिल कर पूर्ण बहुमत से सरकार बनाई थी. अखिलेश सरकार का कामकाज बहुत अच्छा तो नहीं रहा, लेकिन एकदम खराब भी नहीं रहा. दरअसल समाजवादी पार्टी को यादव कुनबे की अंदरूनी लड़ाई ने भारी क्षति पहुंचाई है. कुछ रोज पहले मुख्यमंत्री अखिलेश यादव स्वयं ही अपने मुंह से ये कड़वा सच बोल गए कि कुछ समय पहले तक हम नम्बर वन पर थे, पर इस समय कहाँ हैं, ये पता नहीं? उनकी बात सही है. इसी साल अगस्त महीने में एबीपी न्‍यूज, लोकनीति और सीएसडीएस द्वारा कराए गए ओपिनियन पोल के मुताबिक यूपी में समाजवादी पार्टी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभर रही थी. उसके पुनः सत्ता में आने की सम्भावनाएं बन रही थीं.

सपा को 141 से 151 सीट, भाजपा को 124 से 134 सीटें और बसपा को 103 से 113 सीटें और कांग्रेस को 8 से 14 सीटें मिलने का अनुमान लगाया जा रहा था. उस ओपिनियन पोल के मुताबिक मुताबिक 24 फीसदी वोटर अखिलेश यादव को और उतने ही फीसदी वोटर मायावती को मुख्यमंत्री के तौर पर देखना चाहते थे. वहीं 7 फीसदी लोग गृह मंत्री राजनाथ सिंह को और 5 फीसदी लोग भाजपा के फायरब्रांड नेता योगी आदित्यनाथ को यूपी का मुख्यमंत्री बनते देखना चाहते थे. इन दोनों सर्वे पर यदि हम गौर करें तो सबसे खस्ता हालत कांग्रेस की है. राहुल गांधी की देवरिया से दिल्ली तक की एक महीने की किसान यात्रा कोई चमत्कार दिखाती नजर नहीं आ रही है. किसान यात्रा के अंत में दिल्ली में प्रधानमंत्री और सेना के खिलाफ ‘खून की दलाली’ वाला बेतुका और आत्मघाती बयान देकर उन्होंने अपनी यात्रा के फायदों पर खुद ही पानी भी फेर दिया. ‘एक्सिस-माई-इंडिया’ ओपिनियन के लेटेस्ट पोल के मुताबिक़ मायावती की बीएसपी 115 से 124 सीटों के साथ यूपी में दूसरे नंबर पर रहेगी.

सबसे बड़ी बात ये है कि सर्वे में शामिल 31 फीसदी वोटर चाहते हैं कि मायावती प्रदेश की अगली मुख्यमंत्री बनें. बीजेपी को इस पर गौर करना होगा, नहीं तो दिल्ली और बिहार की तरह उत्तरप्रदेश भी उसके हाथ से निकल जाएगा. उसे तत्काल अपना भावी मुख्यमंत्री घोषित करना चाहिए. गृहमंत्री राजनाथ सिंह बेशक इस पद के लिए सबसे बेहतर उम्मीदवार हैं, लेकिन प्रदेश की बजाय देश को उनकी जरुरत ज्यादा है, इसलिए ये सम्भव नहीं है. मेरे विचार से भाजपा को अब देरी न कर स्वामी प्रसाद मौर्य को मुख्यमंत्री उम्मीदवार के रूप में प्रस्तुत कर देना चाहिए. वो बसपा का दामन छोड़कर भले ही कुछ माह पहले भाजपा में आये हैं, लेकिन उनकी काबिलियत पर कोई सन्देह नहीं. चुनावी समर में वो बहुत बेहतर ढंग से बसपा से जूझ सकते हैं. खासकर पिछड़ी जातियों (OBC) वोटरों को वो बहुत अच्छे ढंग से लुभा सकते हैं, जिनकी वो और बीजेपी पहली पसंद है. चुनावी सर्वे के अनुसार दलितों में 71 फीसदी वोटर चट्टान की सी अडिग मजबूती के साथ बसपा के साथ खड़े हैं. बसपा के ये वो वोट बैंक हैं, जो किसी अन्य ओर जल्दी टस से मस नहीं हो सकते हैं.

ओपिनियन पोल के अनुसार सपा के समर्थन में परम्परागत यादव वोट 67 फीसदी और 58 फीसदी मुस्लिम वोट बहुत मजबूती के साथ डटकर खड़ा है. वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में जो दलित वोटर मोदी से प्रभावित हो भाजपा को विकास के नामपर वोट दिए थे, उनमे से बहुत से पिछले दो साल में देश में हुईं दलित विरोधी कई घटनाओं और कुछ भाजपा नेताओं के बेवकूफी भरे बयानों के कारण वापस बसपा की तरफ मुड़ चुके हैं. इस बात में कोई सन्देह नहीं कि पीएम मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के मायावती के दलित वोट बैंक में सेंध लगाने की अथक कोशिशों को कुछ बीजेपी नेताओं के दलित व मुस्लिम विरोधी बयानों के कारण करारा झटका लगा है. उत्तर प्रदेश में बीजेपी की बढ़त का कारण पहला सर्जिकल स्ट्राइक और दूसरा राज्य में अन्य पिछड़ी जातियों (OBC) का लगभग 61 फीसदी समर्थन मिलना है. बिहार की तरह यूपी में भी जाति का चक्रव्यूह जबरदस्त और अभेद है, जिसे तोड़ना और भेदना है तो बीजेपी के लिए केवल एक ही उपाय है कि वो सिर्फ विकास की बात करे. उससे अलग हटकर कोई भी फ़ालतू बात न करे.

ध्यान देने वाली बात ये है कि रायशुमारी में शामिल 90 फीसदी लोग पाकिस्तान में घुसकर सर्जिकल स्ट्राइक करने के लिए मोदी और सेना का समर्थन कर रहे हैं और 88 फीसदी लोग विकास और सिर्फ विकास चाहते हैं. सबसे ज्यादा आश्चर्यजनक बात ये है कि राम मन्दिर को कोई मुद्दा मानने वालों की तादात 0 फीसदी है. ओपिनियन पोल के निष्कर्ष के मुताबिक सर्वे में शामिल करीब 59 फीसदी लोग सड़क, बिजली, पीने का पानी, स्वास्थ्य सुविधाएं, शिक्षा, कानून व्यवस्था से लेकर रोजगार के अवसर मुहैया कराने तक के मामले में मौजूदा सरकार से असन्तुष्ट हैं. यूपी में सत्ता विरोधी रुझान बहुत तेज है, इसमें कोई सन्देह नहीं, पर इसका फायदा उठाते हुए आगामी चुनावी समर में पूर्ण बहुमत से विजयी होकर सरकार कौन बनाएगा, ये तो वक्त ही बताएगा. जनता किसी भी एक पार्टी को अपना पूर्ण समर्थन दे, उत्तर प्रदेश के हित में यही सबसे अच्छा होगा. यूपी की जनता आगामी विधानसभा चुनाव में किसी को भी स्पष्ट बहुमत प्रदान न कर त्रिशंकु विधानसभा बनाने जैसी भारी गलती कभी न करे, उनसे मेरी बस यही गुजारिश है. !! जयहिंद !!

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आलेख और प्रस्तुति= सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी, प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम, ग्राम- घमहापुर, पोस्ट- कन्द्वा, जिला- वाराणसी. पिन- 221106
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