Menu
blogid : 15204 postid : 1288542

तीन तलाक पर चर्चा करना ही व्यर्थ है, संसद इसे रोकने हेतु कानून बनाये

सद्गुरुजी
सद्गुरुजी
  • 534 Posts
  • 5673 Comments

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

मदद चाहती है ये हव्वा की बेटी,
यशोदा की हम्जिन्स राधा की बेटी
पयम्बर की उम्मत ज़ुलेखा की बेटी,
ज़रा इस मुल्क के रहबरों को बुलाओ,
ये कूचे ये गलियां ये मंज़र दिखाओ,
जिन्हें नाज़ है हिन्द पर उनको लाओ,
जिन्हे नाज़ है हिन्द पर वो कहाँ हैं,
कहाँ हैं, कहाँ हैं, कहाँ हैं…
जिन्हे नाज़ है हिन्द पर वो कहाँ हैं,
कहाँ हैं, कहाँ हैं, कहाँ हैं ?

हमारे मुल्क में ओरतों की दुर्दशा और बेहद दयनीय सामाजिक स्थिति पर आधारित ये क्रांतिकारी गीत मशहूर कवि साहिर लुधियानवी साहब ने 1957 में आई फिल्म ‘प्यासा’ के लिए लिखा था. इस गीत में लिखे एक एक शब्द स्त्रियों से जुडी एक ऐसी सामाजिक सच्चाई बयान करते हैं कि सुनने वालों की आँखों से आंसू झलक पड़ते हैं और लोग महिलाओं की बेहद ख़राब सामाजिक स्थिति में कोई सकारात्मत सुधार न करने के लिए देश के नेताओं को कोसते लगते हैं. फिल्म ‘प्यासा’ को एक बेहतरीन और क्रांतिकारी फिल्म होने के नाते कोई बड़ा पुरस्कार मिलना चाहिए था, किन्तु इस फिल्म को पुरस्कृत करने की बजाय तत्कालीन सरकार ने उल्टे इस फिल्म के कभी न भूलने वाले उपरोक्त गीत से अपनी नाराजगी जाहिर की थी. उनसे इस गीत में वर्णित सच्चाई न पढ़ी जा रही थी और न ही सुनी. बचपन से ही मैं भी ये गीत सुनता चला आ रहा हूँ. मैं ये गीत सुनकर सोचता था कि क्या वास्तव में कभी इस देश में ऐसा कोई नेता सामने आएगा, जो औरतो की दयनीय सामाजिक और आर्थिक स्थिति में सुधार ला सकेगा, जिसकी कल्पना अपने गीत में साहिर साहब ने की थी. लम्बे अरसे बाद पीएम मोदी में उस रहबर की झलक दिखाई देने लगी है. ‘तीन तलाक’ के मुद्दे पर उन्होंने अपनी जो अच्छी राय रखी है, उसका केवल मौलानाओं के भय, अल्पसंख्यक तुष्टिकरण और वोट बैंक की घटिया राजनीति के कारण ही विरोध हो रहा है.
Narendra_Modi_GE_241016
उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड इलाके में ‘महापरिवर्तन रैली’ को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीन बार तलाक बोलकर पत्नी से रिश्ता ख़त्म कर लेने के अति संवेदनशील और बेहद विवादित मुद्दे पर पहली बार बोलते हुए कहा, ‘मेरी मुसलमान बहनों का क्या गुनाह है, कोई ऐसे ही फोन पर तीन तलाक दे दे और उसकी जिंदगी तबाह हो जाए.’ इस विषय पर बोलते हुए उन्होंने आगे कहा, ‘क्या मुसलमान बहनों को समानता का अधिकार मिलना चाहिये या नहीं. कुछ मुस्लिम बहनों ने अदालत में अपने हक की लड़ाई लड़ी. उच्चतम न्यायालय ने हमारा रुख पूछा. हमने कहा कि माताओं और बहनों पर अन्याय नहीं होना चाहिये. सम्प्रदायिक आधार पर भेदभाव नहीं होना चाहिये.’ मोदी ने कहा ‘चुनाव और राजनीति अपनी जगह पर होती है लेकिन हिन्दुस्तान की मुसलमान औरतों को उनका हक दिलाना संविधान के तहत हमारी जिम्मेदारी होती है.’ प्रधानमंत्री मोदी ने मीडिया से अनुरोध किया कि ‘तीन तलाक को लेकर जारी विवाद को मेहरबानी करके सरकार और विपक्ष का मुद्दा ना बनाएं. बीजेपी और अन्य दलों का मुद्दा ना बनाएं, हिन्दू और मुसलमान का मुद्दा ना बनाएं. जो कुरान को जानते हैं, वे टीवी पर आकर चर्चा करें.’

मोदी सरकार का यह बहुत स्वागत योग्य कदम है कि उसने मुस्लिम ओरतों की बेहतरी के लिए यह शुभ संकल्प लिया है कि तीन तलाक कहकर औरतों की जिंदगी बर्बाद करने वालों को अब यूं ही नजरअंदाज नहीं किया जाएगा, जैसा कि अपना वोट बैंक बरकरार रखने की खातिर पिछली सरकारें करती रही हैं. सुप्रीम कोर्ट भी इस बात के लिए तारीफ़ का हकदार है कि उसने तीन तलाक के विचाराधीन विवादित मुद्दे से पल्ला नहीं झाड़ा, बल्कि उसे केंद्र सरकार के सामने उठाते हुए उसपर उसकी राय पूछी है. हालांकि भारत जैसे वोट बैंक और विविधिता वाले देश में इसका कोई सर्वमान्य हल जल्दी निकलना मुश्किल है. जबकि पाकिस्तान और बांग्लादेश सहित 22 मुस्लिम देश इसपर पाबन्दी लगा चुके हैं. सरकार ने अपने हलफनामे में ‘तीन तलाक’ का विरोध किया है. ऑल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड इसे शरई कानून में दखलअंदाजी मानते हुए इसके खिलाफ पूरे देश में हस्ताक्षर अभियान चला रही है, जबकि उसे मालूम है कि भारत शरई कानून से नहीं, बल्कि अपने संविधान के अनुसार चल रहा है. उसका बेहद हास्यास्पद तर्क है कि किसी औरत की हत्या करने से तो बेहतर है कि उसे तलाक दे दिया जाए. बोर्ड का दूसरा तर्क यह है कि शरिया में मर्दों को तलाक देने का हक इसलिए दिया गया है, क्योंकि उनमें फैसले लेने की बेहतर समझ होती है.
talak-arti
इसका सीधा सा अर्थ यह है कि पुरुषों के मुकाबले महिलाएं कमतर होती हैं और वो तर्कसंगत फैसले नहीं ले सकतीं हैं. मजेदार बात यह है कि इस तरह की घटिया और दकियानूसी सोच रखने वाले बोर्ड को 95.5 फीसदी मुस्लिम महिलाएं जानती ही नहीं, ये बात भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन (बीएमएमए) की ओर से किए गए एक सर्वे से ज्ञात हुई. प्रधानमंत्री जी का कहना है कि जो कुरान को जानते हैं, वे टीवी पर आकर चर्चा करें. टीवी की चर्चा का तो प्रधानमंत्री जी ये हाल है कि उसमे औरतों को तो मौलाना लोग बोलने ही नहीं देते हैं और दसरी बात ये कि वो ‘तीन तलाक’ पर चर्चा में जब हार जाते हैं तो खीझकर वर्षों पहले हुए गुजरात दंगे और आपकी पत्नी जशोदाबेन पर पहुँच जाते हैं. गुजरात दंगे के बाद वहां कोई दंगा नहीं हुआ यानि दंगाई हिन्दू मुस्लिम जो भी हों, सब पस्त हुए. दुखद किन्तु, शांतिपूर्ण प्रतिफल. जशोदाबेन को मोदी साहब ने न तो तलाक दिया और न ही दूसरी शादी की. देशप्रेम और देशहित के लिए परिवार छोड़ना सबके बस की बात नहीं. मोदी साहब को सलाम, उनके देशभक्ति और राष्ट्रहित के सर्वोपरि जज्बे को सलाम. अंत में बस यही कहूंगा कि ‘तीन तलाक’ पर चर्चा करना व्यर्थ है. इसका कोई नतीजा नहीं निकलेगा. संसद में इसे रोकने हेतु कानून बने, बस यही एक मार्ग है. साहिर साहब के एक और गीत की कुछ पंकियां प्रस्तुत हैं-

मर्दों ने बनायी जो रस्में,
उनको हक़ का फ़रमान कहा
औरत के ज़िन्दा जलने को,
कुर्बानी और बलिदान कहा
इस्मत के बदले रोटी दी,
और उसको भी एहसान कहा
औरत ने जनम दिया मर्दों को,
मर्दों ने उसे बाज़ार दिया
जब जी चाहा मसला कुचला,
जब जी चाहा दुत्कार दिया

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
आलेख और प्रस्तुति= सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी, प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम, ग्राम- घमहापुर, पोस्ट- कन्द्वा, जिला- वाराणसी. पिन- 221106
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh