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रॉबिनहुड यानि गरीबों के मसीहा: इंग्लैण्ड से लेकर भारत तक- जंक्शन फोरम

सद्गुरुजी
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रॉबिनहुड यानि गरीबों के मसीहा इंग्लैण्ड से लेकर भारत तक- इतिहास के पन्नों के एक ऐसे किरदार, जिनके शरीर तो खत्म हो गए, लेकिन उनकी आत्मा सदा सदा के अमर हो गई. गरीबों और शोषितों के लिए जीने मरने वाली उनकी प्रेरणादायी जीवनगाथा राष्ट्रीय संस्कृति की अनमोल धरोहर और लोककथाओं का एक अमिट हिस्सा बन गई. इस ब्लॉग में इसी बात की चर्चा है कि क्या प्रधानमंत्री मोदी भी रॉबिनहुड बनने के मार्ग पर अग्रसर हैं?

कई साल पहले एक फिल्म मैंने देखी थी, “जिस देशमें गंगा बहती हैं.” फिल्म का नायक राजू (राजकपूर) एक भोला भाला अनाथ युवक होता है, जो गाने गाकर अपना पेट भरता है. एक दिन वो डाकुओं के एक गिरोह के ज़ख़्मी सरदार की जान बचाते हुए डाकुओं के जाल में फंस जाता है. डाकू उसे अपने साथ ले जाते हैं. राका (प्राण) जो सरदार का दाहिना हाथ है, जैसे खूंखार डाकुओं के बीच खुद को घिरा पाकर राजू घबरा जाता है, लेकिन सरदार की लड़की कम्मो (पद्मिनी) राजू को समझाती है कि वो लोग बहुत अच्छे हैं क्योंकि वो लोग दुनिया बरोबर करने का काम करते हैं. अमीर लोग ग़रीबों को लूटकर अपनी तिजोरियाँ भरते हैं और वो लोग अमीरों को लूट कर ग़रीबों में पैसा वापस कर देते हैं. भोले राजू को यह बात अच्छी लगती है और वह गिरोह के साथ ही रहने लगता है. एक दिन वह गिरोह किसी गांव के साहूकार की लड़की की शादी में धावा बोल देता है और लूट पाट के साथ साथ राका नव विवाहित दम्पति को भी मार देता है. राजू डाकुओं की असलियत जान बहुत दुखी होता है और पुलिस सुपरिन्टेन्डेन्ट (राज मेहरा) के पास जाकर उन्हें बता देता है कि डाकू अब राजगढ़ गांव में डाका डालने वाले हैं. जब पुलिस सुपरिन्टेन्डेन्ट उससे कहता है कि वह राका और उसके सारे साथियों को मौत के घाट उतार देगा तो भोला राजू समझता है कि पुलिस भी उतनी ही ज़ालिम है जितने ये डाकू.
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राजू वापस डाकुओं के अड्डे पर आकर डाकुओं के बीवी बच्चों से आग्रह करता है कि वे डाकुओं से हथियार डालने की ज़िद करें. डाकू अपने बीवी बच्चों की ख़ातिर हथियार डालने को तैयार हो जाते हैं. अकेला पड़ गया राका भी उनके साथ पुलिस के पास जाने को निकल पड़ता है. डाकू अपना अड्डा छोड़कर पुलिस की ओर रवाना होते हैं और उधर कम्मो पुलिस के दबाव में आकर पुलिस को डाकुओं के ठिकाने की तरफ़ ले चलती है. एक जगह दोनों दलों का टकराव होता है और राका के उकसाने पर डाकू फिर से हथियार उठाकर पुलिस से लोहा लेने का मन बना लेते हैं. तभी राजू डाकुओं के बीवी बच्चों को लेकर दोनों दलों के बीच में आकर खड़ा हो जाता है और फिर से डाकुओं से हथियार डाल देने का आग्रह करता है. राका समेत इस बार सभी डाकू अपने हथियार डालकर अपने और अपने परिवार को पुलिस के सुपुर्द कर देते हैं. राजू पुलिस सुपरिन्टेन्डेन्ट से निवेदन करता है कि इनको फाँसी की सज़ा नहीं मिलनी चाहिये. पुलिस सुपरिन्टेन्डेन्ट सबको आश्वासन देता है कि डाकुओं को अपने किये की सज़ा तो ज़रूर मिलेगी मगर मौत की सज़ा नहीं होगी. नोटबंदी और कालेधन को लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदीकी हालात भी इन दिनों फिल्म ‘जिस देशमें गंगा बहती हैं’ के नायक राजू (राजकपूर) के जैसी ही हो चुकी है.
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वो भी राजू की तरह दुनिया बरोबर करने निकले हैं, लेकिन कालाधन रखने वाले अनगिनत लोंगो के चक्रव्यूह में बुरी तरह से फंस चुके है. कालाधन रखने वाले अमीरों का पैसा गरीबों तक पहुंचे, लेकिन अमीरों को भी ज्यादा सजा न मिले. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस कोशिश में लगे हैं कि जनधन एकाउंट में जो पैसे गैरकानूनी ढंग से डाले गये हैं, उन्हें डालने वाले जेल जायें और उसमे जमा पैसा गरीबों को मिल जाये. मोदी इसे गरीबों पर कोई एहसान करना नहीं मानते, क्योंकि उनके विचार से यह पैसा गरीबों का खून चूसकर और उनका हक़ मारकर इकट्ठा किया गया है. वास्तव में यह पैसा गरीबों का ही है. रविवार को उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद में परिवर्तन रैली को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, ‘अगर आप वह पैसा रखे रहोगे तो मैं कुछ रास्ता निकाल लूंगा, मैं दिमाग खपा रहा हूं अभी.’ पीएम मोदी ने कहा कि देश से भ्रष्टाचार का खात्मा करना जरूरी है. लेकिन जबसे मैंने इसके खिलाफ लड़ाई शुरू की है, तो लोग मुझे गुनाहगार ठहरा रहे हैं. क्या मेरा अपराध यह है कि मैंने गरीबों को उनका हक दिलाने की कोशिश की है. उन्होंने भावुक होते हुए कहा, ‘मैं इस लड़ाई को आपके लिए लड़ रहा हूं. जो मुझ पर आरोप लगा रहे हैं, वे ज्यादा से ज्यादा क्या कर लेंगे. अरे हम तो फकीर हैं, झोला लेकर निकल लेंगे.’ लाखों की भीड़ मोदी.. मोदी.. के नारे लगाती रही.
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मुरादाबाद की रैली में पीएम मोदी ने गरीबों से अपने जन धन खातों में जमा अमीरों के पैसे को नहीं निकालने की जिस प्रकार से अपील की और ‘अमीरों का पैसा, अब गरीबों का हो जाएगा’ जैसी बात कही, उससे तो गरीबों का हितैषी नेता या कहिये रॉबिन हुड जैसी उनकी वह छवि बन रही है जो अब तक तो क्रांतिकारियों या फिर वामपंथी नेताओं की ही रही है. रॉबिनहुड अंग्रेजी लोककथाओं का एक मशहूर हीरो माना जाता है. वो मध्यकाल यानी चौदहवीं और पन्द्रहवीं सदी में एक लोकप्रिय चरित्र के रूप में प्रसिद्ध हुआ था. रॉबिनहुड आज भी आधुनिक साहित्य, फिल्मों एवं टेलीवि़ज़न सीरियलों तक में एक लोकप्रिय किरदार बना हुआ है. जंगलों में रहने वाला रॉबिनहुड एक अचूक तीरन्दाज व कुशल तलवारबाज था, किन्तु उसे प्रसिद्धि अपने साथी “मेरी मेन्स” के साथ मिलकर अमीरों की सम्पत्ति को लूट कर गरीबों में बाँट देने के कारण मिली थी. रॉबिनहुड पर लिखी गई शुरुआती कविताओं और पुराने स्रोतों से यह अंदाजा लगाया जाता है कि रॉबिनहुड शायद बार्न्सडेल के इलाके में रहता था, जो अब वृहत् ब्रिटेन यानि यूनाइटेड किंगडम के दक्षिण योर्कशायर में स्थित है. रॉबिनहुड पेशे से एक किसान था पर एक बेईमान शेरिफ (जिले का हाकिम) ने जान बूझकर उसे उसकी जमीन बेदखल कर सभ्य समाज से बहिष्कृत किया और उसे डाकू बनने पर मजबूर कर दिया.
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भारत में भी ऐसे कई रॉबिनहुड हुए हैं, किन्तु अंग्रेज जिसे स्वयं अपने मुंह से रॉबिनहुड कहते थे, वो था मध्यप्रदेश के खंडवा जिले का जननायक टंट्या भील, जिसकी गिनती आजादी के आंदोलन के महानायकों में की जाती है. टंट्या को आदिवासियों का रॉबिनहुड भी कहा जाता है, क्योंकि वो अमीरों को लूटता था और लूट का पैसा गरीब और जरूरत मंदों को दे देता था. अंग्रेज उसे डाकू और बागी मानते थे, क्योंकि अंग्रेजी हुकूमत की छत्रछाया में फलने फूलने वाले अमीरों, जमाखोरों और जमींदारों को लूटकर वो सारा धन भूखे-नंगे और शोषित आदिवासियों में बाँट देता था. गरीब कन्याओं की शादी कराकर और निर्धन व असहाय लोगो की मदद करके वो लोगो के सुख-दुःख में सहयोगी बन ‘टंट्या मामा’ के नाम से सबका प्रिय बन गया. आदिवासी समुदाय के बीच उसकी पूजा होने लगी. अंग्रेजों ने उसके अपराधों को क्षमा करने का झूठा प्रचार कर उसे गिरफ्तार किया और महू के पास पातालपानी के जंगल में उसे गोली मारकर फेंक दिया. कहते हैं कि टंट्या की ह्त्या के बाद वहां पर लगातार रेल हादसे होने लगे, जिसे रोकने के लिए वहीँ पर ‘वीर पुरुष टंट्या’ की समाधि बनाई गई, जिसे ‘टंट्या मामा का मंदिर’ भी कहते हैं. आज भी वहां से गुजरने वाली हर ट्रेन मंदिर के सामने दो मिनट रुकती है और टंट्या मामा को सलामी देने के बाद ही आगे बढ़ती है.

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आलेख और प्रस्तुति= सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी, प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम, ग्राम- घमहापुर, पोस्ट- कन्द्वा, जिला- वाराणसी. पिन- 221106
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