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जननेता जयललिता: जिसके दिल का दर्द शायद नियति भी नहीं समझ सकी

सद्गुरुजी
सद्गुरुजी
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चैन नहीं बाहर, चैन नहीं घर में
मन मेरा धरती पर, और कभी अंबर में
उसको ढूँढा, हर डगर में, हर नगर में
गली गली देखा नयन उठाये
मीत न मिला रे मन का
कोई तो मिलन का, करो रे उपाय
मीत न मिला रे मन का …

गीतकार मजरूह सुलतान पुरी का हिंदी फिल्म ‘अभिमान’ के लिए लिखा गया ये गीत कुछ मशहूर नेताओं, कलाकारों और समाज सेवकों के ऊपर बिल्कुल फिट बैठता है, जिन्होंने मनमुताबिक जीवन साथी न मिलने पर घर गृहस्थी बसाई ही नहीं या फिर अपने जीवनसाथी का साथ छोड़ उम्रभर तन्हा जिंदगी जिए. अटल बिहारी वाजपेयी, अन्ना हजारे, जयललिता, ममता बनर्जी, मायावती आदि ने तो शादी ही नहीं की और महात्मा बुद्ध, वर्द्धमान महावीर (श्वेताम्बर सम्प्रदाय की मान्यता के अनुसार विवाहित), रामकृष्ण परमहंस और देश के वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आदि ने विवाहित होते हुए भी पत्नी से दूर हो आत्मसाधना और देशसेवा का मार्ग चुना. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर पत्नी को त्यागने का अक्सर विपक्ष के वे नेता आरोप लगाते रहे हैं, जिनके अपने जीवन में प्रेरक चरित्र, राष्ट्रसेवा और सुचिता नाम की कोई चीज नहीं है. भारत के इतिहास को देंखे तो देशहित के लिए किये गए हर त्याग को सर्वोपरि और महान माना गया है.
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कलाकारों, खासकर फिल्म कलाकारों और आम जनता में भी बहुत से ऐसे लोग हुए हैं, जो पति या पत्नी को तलाक दे दूसरे मनचाहा जीवनसाथी की तलाश में लग गए या फिर जीवनभर तन्हा ही जिंदगी गुजार दिए, कुछ गम और तनाव में डूबते उतराते हुए शराब पीकर और कुछ समझदारी भरी आजाद जिंदगी जीकर. आज भी हमारे समाज में बहुत से लोग ऐसी तन्हाई भरी जिंदगी जी रहे हैं. बहुतों ने तो समाजसेवा को ही अब अपने तन्हा जीवन का सबसे बड़ा उद्देश्य बना लिया है. समाज में यहाँ वहाँ घूमफिरकर और रोजाना मिलने के लिए आने वाले लोंगो से बातचीतकार मैं इस नतीजे पर पहुंचा हूँ कि अधिकतर आम लोंगों की जिंदगी में अदभुद सामंजस्य होता है, वो एक दूसरे के बिना रह ही नहीं सकते हैं. पति-पत्नी में से कोई भी एक रूठता है तो दूसरा उसे मना लेता है. किन्तु मशहूर दम्पत्तियों के भीतर अहंकार यानि ईगो प्रॉब्लम बहुत होती है. वही आगे चलकर उनके बीच झगडे और अलग होने की मूल वजह बन जाती है.

आजा सनम मधुर चांदनी में हम-तुम मिले
तो वीराने में भी आ जाएगी बहार
झुमने लगेगा आसमान
कहता है दिल और मचलता है दिल
मोरे साजन ले चल मुझे तारों के पार
लगता नहीं है दिल यहाँ
आजा सनम मधुर चांदनी में हम-तुम मिले …

गीतकार हसरत जयपुरी का लिखा हुआ फिल्म ‘चोरी चोरी’ का ये गीत कुछ रोज पहले जयललिता के मुंह से एक टीवी न्यूज चैनल पर सुन रहा था, जो कभी स्टार वर्ल्ड पर आने वाले सिम्मी ग्रेवाल के शो में जयललिता के एक इंटरव्यू के रूप में प्रसारित हुआ था. इसी शो में जयललिता ने कहा था, “शादी में मेरा विश्वास रहा है. जब युवा थी, तो मैं भी शादी के सपने देखती थी. मैं भी हैप्पी फैमिली चाहती थी, लेकिन ये नहीं हो पाया. हक़ीकत ये है कि मुझे कोई परफ़ेक्ट आदमी मिला ही नहीं, जिससे मैं शादी कर लेती. शादी नहीं करने के अपने फ़ैसले का मुझे कोई अफ़सोस भी नहीं है.” मशहूर लोग आत्ममुग्ध भी होते हैं, वो सबसे ज्यादा अपने आप से प्रेम करते हैं और हूबहू अपने जैसा जीवनसाथी तलाशने की कोशिश करते हैं, जो कि संभव नहीं है, क्योंकि इस संसार में कोई भी व्यक्ति पूर्णतः परफ़ेक्ट है ही नहीं. ये संसार भी पूर्ण नहीं है. इसलिए कहते हैं कि ईश्वर को छोड़कर कोई भी पूर्ण नहीं है, न कोई व्यक्ति और न ही दृश्यमान संसार.
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कई साल पहले एनडीटीवी को दिए इंटरव्यू में जयललिता ने कहा था, “मैं ना तो फ़िल्म की दुनिया में जाना चाहती थी और ना ही राजनीति में आना चाहती थी. फ़िल्मों में मां के प्रभाव में आई जबकि राजनीति में मुझे मेरे मेंटॉर एमजीआर (एमजी रामचंद्रन) लेकर आए. दोनों करियर चुनने में मेरा अपना कोई योगदान नहीं था. अगर मेरा वश चलता तो शायद मैं नहीं आती.” वो वकील बनना चाहती थीं, लेकिन नियति कुछ और ही बना दी. सोमवार रात को जिस जयललिता का चेन्नई के एक अस्पताल में निधन हो गया, भले ही उसके करोड़ो प्रशंसक रहे हों, कामयाबी, बुलन्दी और शोहरत उसके कदम चूमी हो, पर उसके दिल का दर्द शायद नियति भी नहीं समझ सकी, जो उसकी चाहतों के खिलाफ जीवन में कुछ और ही कार्य कराई. गीतकार प्रदीप के एक गीत के कुछ बोल हैं, जो जयललिता और पीएम नरेन्द्र मोदी जैसे नेताओं के जीवन पर अक्षरशः खरे उतरते हैं-

जगत कल्याण की खातिर तू जन्मा है
तू जग के वास्ते हर दुःख उठा रे
भले ही अंग तेरा भस्म हो जाये
तू जल जल के यहाँ किरणें लुटा रे
लिखा है ये ही तेरे भाग में कि तेरा जीवन रहे आग में
सूरज रे जलते रहना जगत भर की रोशनी के लिये
करोड़ों की ज़िंदगी के लिये सूरज रे जलते रहना …

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आलेख और प्रस्तुति= सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी, प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम, ग्राम- घमहापुर, पोस्ट- कन्द्वा, जिला- वाराणसी. पिन- 221106
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