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मां जब भी विवादित बोल बोलती है तब विपक्षी दल कान उसके बेटे का मरोड़ते हैं

सद्गुरुजी
सद्गुरुजी
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सितम्बर 2015 में बिहार चुनाव के ठीक पहले आरक्षण पर आरएसएस के सरसंघचालक मोहन भगवत के बयान से खूब हंगामा हुआ था. चुनाव में बुरी तरह से पराजित होने के बाद आने के बाद भाजपा के कई नेताओं का कहना था कि सरसंघचालक का बयान बिहार चुनाव में बीजेपी को ले डूबा. आरएसएस ने अपनी उस गलती से कोई सबक सीखा है, ऐसा लगता नहीं है. देश के यूपी सहित पांच राज्यों में चुनावी माहौल अभी गर्माना शुरू हुआ ही हुआ था कि आरएसएस के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख मनमोहन वैद्य ने एक बयान ऐसा दे डाला है जो कि बीजेपी के सारे चुनावी गणित पर पानी फेर सकता है. आरएसएस के प्रवक्ता मनमोहन वैद्य ने जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के दौरान एक सवाल के जबाब में आरक्षण के मुद्दे पर एक बहुत ही विवादित बयान देते हुए कहा, “आरक्षण का विषय भारत में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिहाज से अलग संदर्भ में आया है. इन्हें लंबे समय तक सुविधाओं से वंचित रखा गया है. भीमराव अंबेडकर ने भी कहा है कि किसी भी राष्ट्र में ऐसे आरक्षण का प्रावधान हमेशा नहीं रह सकता. इसे जल्द से जल्द से खत्म करके अवसर देना चाहिए. इसके बजाय शिक्षा और समान अवसर का मौका देना चाहिए. इससे समाज में भेद निर्माण हो रहा है.” भीमराव अंबेडकर ने सामाजिक भेदभाव मिटने तक दलितों को आरक्षण देने की बात कही है. सब जानते हैं कि सामाजिक भेदभाव मिटा नहीं है. वो हमारे देश में आज भी एक बड़ी समस्या है.
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ऐसे में मनमोहन वैद्य के बयान पर हंगामा तो होना ही था. मुद्दा तलाश रहे बीजेपी के विरोधियों को अब एक बड़ा चुनावी मुद्दा मिल ही गया है. वो आरएसएस को बीजेपी की मां मानते हैं. हास्यास्पद बात ये है कि आरएसएस रूपी मां जब भी कुछ विवादित बोल बोलती है तो विपक्षी दल कान उसके बेटे बीजेपी का मरोड़ते हैं. वैद्य के बयान के बाद कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, जेडीयू, समाजवादी पार्टी, आरजेडी और बीएसपी सबने बीजेपी के खिलाफ ऐसे मोर्चा खोल दिया है, मानों ये बयान बीजेपी के किसी नेता ने दिया है. लालू यादव ने तो यहाँ तक कह डाला है कि ‘आरक्षण हक है खैरात नहीं है. मोदी जी आपके आरएसएस प्रवक्ता आरक्षण पर फिर अंट-शंट बक रहे है.’ विपक्ष को बीजेपी पर आक्रमक तेवर अपनाते देख आरएसएस की तरफ से तुरन्त डैमेज कंट्रोल की कोशिश भी शुरू हो गई. आरएसएस के दबाब पर आरक्षण पर दिए गए अपने विवादित बयान पर सफाई देते हुए और अपने बयान से पलटते हुए आरएसएस के प्रचार प्रमुख मनमोहन वैद्य ने कहा कि उन्होंने जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में जो बयान दिया था उसको गलत तरीके से पेश किया गया. उन्होंने कहा कि मैंने धर्म के आधार पर आरक्षण देने का विरोध किया था. धर्म के आधार पर आरक्षण देने से अलगाववाद बढ़ता है. सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट ने भी धार्मिक आधार पर आरक्षण देने को मना किया है. संघ ने ये बात कई बार कही है. संघ आरक्षण का पक्षधर है.’

आरएसएस के प्रवक्ता मनमोहन वैद्य आरएसएस के डैमेज कंट्रोल करने वाले दबाब में आकर भले ही अब अपने पूर्व के बयान से पलट रहे हों और मनगढंत सफाई देते फिर रहे हों, किन्तु एक बात तो तय है कि अपने इस बयान से मनमोहन वैद्य ने न सिर्फ मोदी और भाजपा विरोधियों को एक बड़ा चुनावी मुद्दा थमा दिया है, बल्कि एक झटके में ही बीजेपी को भारी नुकसान भी पहुंचा दिया है. इतना नुकसान तो शायद सपा, बसपा और कांग्रेस वाले एक साथ मिल कर भी नहीं कर पाते. वैद्य ने उत्तर प्रदेश और पंजाब ही नहीं, बल्कि गोवा, उत्तराखंड और मणिपुर में भी बीजेपी के विरोधियों की एक बहुत बड़ी मदद कर दी है. सब के सब विरोधी दल अब बीजेपी को आरक्षण विरोधी और दलित विरोधी साबित करने में जुट गए हैं. ध्यान देने वाली बात यह है कि यूपी में जहा एक ओर 21 फीसदी दलित तथा 40 फीसदी ओबीसी वोटर हैं, वहीँ दूसरी तरफ पंजाब में 30 फीसदी दलित वोट हैं. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के जी जान से किये गए प्रयत्नों का ही नतीजा है कि यूपी के दलितों में गैर जाटव दस फीसदी वोट और चालीस फीसदी ओबीसी में से लगभग 30 फीसदी गैर यादव ओबीसी वोट बीजेपी से जुड़े हैं. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपने लगभग ढ़ाई साल के सुशासन में दलितों, आदिवासियों और पिछड़ों को भारतीय जनता पार्टी के साथ जोड़ने में दिन रात लगे रहे हैं. अभी हाल ही में हज कोटे में वृद्धि करा उन्होंने मुस्लिमों को भी प्रभावित किया है.
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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के ऐसे अथक प्रयासों को पलीता लगाने वाले आरएसएस के नेता क्या मोदी और भाजपा के विरोधी हैं, जो उनकी मजबूत होतीं जड़ें खोदने में जुटे हैं? क्या आरएसएस के लोग दलित विरोधी हैं, जो लंबे समय तक मोदी को प्रधानमंत्री के रूप में नहीं देखना चाहते हैं? मनमोहन वैद्य के दलित विरोधी बयान के बाद ऐसे सवाल उठने स्वाभाविक हैं. आरएसएस पर कुछ लोग आरोप लगाते हैं कि इसपर ब्राह्मणों का कब्जा है और इस संगठन में दलितों और महिलाओं के लिए कोई जगह नहीं है तथा इनकी सोच सामन्तवादी और ब्राह्मणवादी है. हालाँकि आरएसएस इस बात को नकराते हुए दलितों, आदिवासियों और पिछड़ों के उत्थान के लिए चलाई जा रही अपनी एक लाख से भी अधिक योजनाओं का हवाला देता है. तो फिर अनुत्तरित सवाल वही है कि चुनाव के समय आरएसएस के नेता भाजपा को नुकसान पहुंचाने वाले विवादित बयान क्यों देते हैं? बिहार चुनाव से पहले मोहन भागवत ने भी ऐसा ही बयान विवादित बयान दिया था जो इतना बड़ा चुनावी मुद्दा बना था कि खुद प्रधानमंत्री मोदी को सामने आकर कहना पड़ा था कि आरक्षण को कोई हाथ भी नहीं लगाएगा. अब फिर वही सफाई देने वाली स्थिति है. ज्यादा अच्छा तो यही है कि आरएसएस के चक्कर में घनचक्कर बनने की बजाय बीजेपी खुद अपने पैरों पर खड़ी हो और उसके प्रवक्ता पूरी दृढ़ता से टीवी चैनलों पर कहें कि आरएसएस के विचारों से हमारा कोई लेना देना नहीं है.

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आलेख और प्रस्तुति= सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी, प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम, ग्राम- घमहापुर, पोस्ट- कन्द्वा, जिला- वाराणसी. पिन- 221106
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