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हरेक महल से कहो कि झोपड़ियों में दिये जलाये
छोटों और बड़ों में अब कोई फ़र्क नहीं रह जाये
इस धरती पर हो प्यार का घर-घर उजियारा
यही पैगाम हमारा…
नोटबंदी का शायद यही पैगाम और उद्देश्य था, जो कब पूरा होगा, पता नहीं. नोटबंदी करने वाले और ‘सबका साथ-सबका विकास’ जैसा लोकप्रिय नारा देने वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अब यूपी की चुनावी सभाओं में श्मशान और कब्रिस्तान की बात भी करने लगे हैं. कुछ रोज पहले फतेहपुर की चुनावी रैली में भाषण देते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, ”गांव में अगर कब्रिस्तान बनता है तो श्मशान भी बनना चाहिए, रमज़ान में बिजली मिलती है तो दिवाली में भी मिलनी चाहिए, होली में बिजली आती है तो ईद पर भी आनी चाहिए.” उन्होंने कहा कि सरकार का काम है कि वह भेदभाव मुक्त शासन चलाए. प्रधानमंत्री की कही हुई बातों पर गौर करें तो इसका सीधा सा अर्थ है कि यूपी में समाजवादी पार्टी की सरकार ने धर्म, जाति और क्षेत्रीयता के आधार पर काफी हद तक भेदभाव किया है. बात काफी हद तक सही भी लगती है. सपा ने पिछले कई सालों में जिनके लिए सबसे ज्यादा कार्य किया है, अब उसी M-Y (मुस्लिम-यादव) फैक्टर पर ही उसे पूरा भरोसा है. यह बात किसी से छिपी नहीं है, सब जानते हैं. इसी बात को लेकर यूपी की बहुसंख्यक, खासकर दलित और सवर्ण जनता का जो आक्रोश है, वो न्यूज चैनलों द्वारा आयोजित होने वाले चुनावी बहस के कार्यक्रमों में अक्सर देखने को मिल जाता है.
यूपी के चुनाव में मुस्लिम-यादव फैक्टर इस कदर हावी है कि 2014 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश की 80 में से 73 सीटें जीतने का पराक्रम करने वाली भाजपा का 2017 के विधानसभा चुनाव में 403 सीटों में से लगभग 300 से भी ज्यादा सीटों पर सीधा मुकाबला सपा-कांग्रेस गठबंधन से हो रहा है. मतदाताओं की खामोशी यही बता रही है कि इस बार किसी भी दल की लहर नहीं चल रही है. हालाँकि मोदी फैक्टर काम कर रहा है, मोदी के अब तक काम से अधिकतर लोग प्रभावित हैं, इसमें कोई शक नहीं, किन्तु ये भी सच है कि इस समय यूपी में 2014 के लोकसभा चुनाव के समय वाली मोदी लहर नहीं चल रही है. यही वजह है कि प्रधानमंत्री मोदी को MY फैक्टर की मजबूत काट के लिए इसके उलट जमीन तलाशनी पड़ रही है. इसलिए वो श्मशान और कब्रिस्तान की बात कहने के बहाने सपा पर ‘मुस्लिम तुष्टिकरण’ करने का अप्रत्यक्ष रूप से आरोप लगाकर बीजेपी के परंपरागत हिन्दू वोटर्स को अपने साथ जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं. इसके साथ ही वो समाजवादी पार्टी के MY समीकरण से इतर दलित, कुर्मी और ब्राह्मण वोटर्स को भाजपा की तरफ खींचने में लगे हैं. मोदी कर्ज से दबे किसानों और गरीबों की बात भी कर रहे हैं, क्योंकि इनकी तादात भी यूपी में बहुत बड़ी है.
यूपी के चुनाव के तीन चरण पूरे हो चुके हैं और चुनाव के हर चरण के बाद चुनावी रणनीति और चुनावी प्रचार की भाषा कुछ इस कदर बदल जा रही है कि पूछिये मत. पीएम मोदी ने लगभग एक हफ्ते पहले हरदोई में रैली को संबोधित करते हुए कहा था कि यूपी ने मुझे गोद लिया है. यूपी मेरा माईबाप है. मैं माईबाप को नहीं छोड़ूगा. यूपी की चिंता है मुझे. यहां की स्थिति बदलना मेरा कर्तव्य है. जब मोदी ने खुद को यूपी का गोद लिया बेटा बताया तो हंगामा खड़ा हो गया था. एक तरफ जहाँ बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने मोदी को नोटिस भेजा तो दूसरी तरफ अखिलेश, राहुल, प्रियंका गांधी और डिंपल यादव सबने मोदी को बाहरी कहकर घेर लिया. कांग्रेस की स्टार प्रचारक प्रियंका गांधी वाड्रा ने मोदी पर हमला करते हुए कहा कि यूपी को किसी बाहरी को गोद लेने की जरूरत नहीं है. राहुल जी के दिल में, उनकी जान में उत्तर प्रदेश है. मजेदार बात ये है कि राहुल और प्रिंयका के पूर्वज यानि नेहरू परिवार कश्मीर से आकर उत्तर प्रदेश में बसे थे. फिरोज गांधी गुजरात से यूपी में आये थे. सोनिया गांधी इटली से यूपी में आईं. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी विशुद्ध भारतीय होते हुए भी यूपी के लिए बाहरी कैसे हैं, यह न सिर्फ सोचने वाली बात है, बल्कि ‘उलटा चोर कोतवाल को डाँटे’ वाली बात है.
यूपी के जिन इलाकों में अब चुनाव होना है, वहां पर पोलराइजेशन यानि वोटों के ध्रुवीकरण का खेल कुछ ज्यादा ही खेला जाता है. यही वजह है कि पीएम मोदी अब विकास के साथ साथ वो सबकुछ भी कह रहे हैं जो पहले भाजपा के प्रदेश स्तर के नेता कहते थे. प्रधानमंत्री मोदी चुनाव प्रचार की एक नई लाइन जो तय कर रहे हैं, जाहिर सी बात है कि योगी आदित्यनाथ और संगीत सोम जैसे भाजपा के प्रदेश स्तर के बड़े नेता वोटों के ध्रुवीकरण के लिए बढ़चढ़कर बोलेंगे, जो भले ही उनकी पार्टी के हित में हो, किन्तु प्रदेश और देश के हित में कदापि नहीं होगा. हिंदू की बात होगी और मुसलमान की बात भी होगी. यूपी में कर्ज से दबे किसान और गरीबी सबसे बड़ा मुद्दा है. किसानों को कर्जमाफी चाहिए और गरीबों को सच्चे हमदर्द की जरुरत है. आत्महत्या करने वाले किसानों और गरीबी का दर्द कितना दुखद है, यह बताने की जरुरत नहीं. कुर्सी और सत्ता के लोभी नेता कभी इस दर्द को महसूस करेंगे, ऐसा लगता नहीं है. ये संवेदनहीन और लालची लोग जनता का दर्द भला क्या दूर करेंगे? ये सिर्फ अपनी तिजोरी भरेंगे, अपनी आने वाली कई पीढ़ियों के लिए राजसिंहासन हासिल करने का रास्ता बनाएंगे और चुनाव होने के बाद विरोधी दल के नेता के गले भी जा मिलेंगे.
क्या दर्द किसी का लेगा कोई
इतना तो किसी में दर्द नहीं
बहते हुए आँसू और बहें
अब ऐसी तसल्ली रहने दो
या दिल की सुनो…
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आलेख और प्रस्तुति= सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी, प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम, ग्राम- घमहापुर, पोस्ट- कन्द्वा, जिला- वाराणसी. पिन- 221106
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