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यूपी विधानसभा चुनाव 2017: कारवां गुज़र गया, गुबार देखते रहे…! जंक्शन फोरम

सद्गुरुजी
सद्गुरुजी
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यूपी की समझदार जनता ने जाति-धर्म के जंजाल से ऊपर उठकर 37 साल बाद भाजपा को 300 से ऊपर सीट देकर इतिहास रच दिया है. एक ऐसा अमिट इतिहास जिस पर न तो बसपा विश्वास कर पा रही है और न ही सपा. 403 में से मात्र 19 सीट पाने वाली बसपा की स्थिति सबसे ज्यादा खराब है. अप्रत्याशित और अबतक की सबसे बुरी हार बसपा सुप्रीमों मायावती के गले नहीं उतर रही है. उन्होंने हार का ठीकरा ईवीएम मशीनों पर फोड़ते हुए चुनाव में गड़बड़ी की न सिर्फ आशंका जाहिर की, बल्कि चुनाव आयोग से ईवीएम मशीनों की जांच कराने की मांग भी की है. मायावती के आरोप हास्यास्पद हैं. चुनाव के समय यूपी में एक तो सपा का शासन था और दूसरी बात ये कि वोटिंग से पहले चुनाव अधिकारी बकायदे ईवीएम मशीन की जांच करते हैं और सभी दलों के पोलिंग एजेंट वहां पर उपस्थित रहते हैं. अपनी करारी शिकस्त को न पचा पा ईवीएम मशीनों और निष्पक्ष व स्वतन्त्र चुनाव आयोग पर सवाल खड़े करना भारतीय लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं है. बसपा की करारी हार का मुख्य कारण पिछले एक वर्ष के दौरान स्वामी प्रसाद मौर्य, आरके चौधरी, बृजेश पाठक और राजेश त्रिपाठी जैसे बसपा के बड़े जनाधार वाले नेताओं का पार्टी छोड़ना है.

स्वप्न झरे फूल से,
मीत चुभे शूल से,
लुट गये सिंगार सभी बाग़ के बबूल से,
और हम खड़े-खड़े बहार देखते रहे
कारवां गुज़र गया, गुबार देखते रहे!
कवि गोपालदास ‘नीरज’ के शब्दों में कहूँ तो भाजपा की प्रचण्ड जीत के बाद यूपी में आज सभी भाजपा विरोधी दलों की यही स्थिति है, लेकिन कवि ‘नीरज’ की उपयुक्त पंक्तियाँ बसपा और मायावती पर ज्यादा फिट बैठती हैं. बसपा के संस्थापक स्वर्गीय कांशीराम के साथी राजबहादुर, जंग बहादुर, डा. मसूद, सोनेलाल पटेल, ओम प्रकाश राजभर, आरके चौधरी, बाबू सिंह कुशवाहा और दद्दू प्रसाद आदि जैसे नेता बसपा को बुलन्दी पर ले जाने वाले और पिछड़ी जातियों के जनाधार वाले नेता थे. इसमें से कुछ बसपा से निकाले गए और कुछ पार्टी छोड़कर चले गए. कांशीराम के खून-पसीने से सींचि बगिया समय के साथ साथ उजड़ती चली गई और मायावती तमाशा भर देखती रह गईं. इस बार मायावती ने 100 मुस्लिम प्रत्‍याशियों को टिकट दिया था लेकिन सोशल इंजीनियरिंग का उनका यह नया फॉर्मूला भी मोदी लहर के आगे बुरी तरह से फेल हो गया.

मुस्लिमों को ‘वोट बैंक’ और अपनी पार्टी का गुलाम समझने वाले नेताओं को इस बार जनता ने ऐसा सबक सिखाया है कि वो जल्दी भूल नहीं सकेंगे. चुनाव से कुछ रोज पहले एक मुस्लिम इलाके से गुजर रहा था. वहां पर एक दूकान पर कुछ सामान लेना था. मुस्लिम टोपी लगाए दुकानदार से सामान खरीदते हुए मैंने यूँ ही पूछ लिया, ‘इस बार किसे वोट दे रहे हैं.’ हँसते हुए उन्होंने कहा, ‘इस बार भाजपा को वोट देंगे.’ हालाँकि उस समय मुझे यह तंज या मजाक ही लगा, लेकिन कल जब भाजपा और उसके सहयोगियों को 325 सीट का पहाड़ सा विशाल और अविश्वनीय बहुमत मिला तो मुझे लगा कि निसन्देह इस बार के चुनाव में मुस्लिम भाई और बहनें भी भाजपा को वोट दी हैं. देश के अधिकतर दल अल्पसंख्यकों को अपने चुनावी फायदे के लिए महज ‘वोट बैंक’ समझकर यूज करते रहे हैं और बीजेपी से डराते हुए उन्हें अपना गुलाम मानते थे. ऐसे ही राजनीतिक दलों से जुड़े मुल्ला और मौलवी न्यूज चैनलों पर आकर खुलेआम देश के पीएम के खिलाफ अपशब्द बोलते हैं. वो मुस्लिम समुदाय को भड़काने और उनके दिलों में नफरत के बीज बोने का काम भर करते हैं. अल्पसंख्यकों के एक वर्ग ने भाजपा का साथ देकर ऐसे मुल्ला मौलवियों को करारा तमांचा मारा है.

2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को विरोधी नेताओं द्वारा जितनी ज्यादा गालियां दी गईं, जनता उतनी ही ज्यादा मोदी के करीब होती चली गईं. जनता ने पीएम का अपमान बर्दास्त नहीं किया और बड़बोले नेताओं को चुनाव में बहुत अच्छा सबक सिखाया. प्रधानमंत्री को गाली देने के लिए बिहार से लालू प्रसाद यादव जैसे भ्रष्ट नेता को बुलाया गया, जो जमानत पर रिहा चल रहे हैं. एक नेता ने न्यूज चैनल पर मोदी को काशी में तीन दिन रूककर प्रचार करने पर खूब लताड़ा और कालभैरव का दर्शन करने पर कहा कि कालभैरव विनाश के देवता हैं, मोदी और भाजपा का विनाश करेंगे. चुनाव परिणाम आने के बाद हुआ इसका ठीक उल्टा. बसपा को अपना समर्थन देने वाले एक मौलाना अंसार रजा ने तो न्यूज चैनलों पर पीएम के खिलाफ ऐसी ख़राब बातें कहीं कि उनके खिलाफ तो कानूनी कार्यवाही होनी चाहिए. अखिलेश यादव भी गरिमा के साथ अपनी हार स्वीकार नहीं कर पाए, उन्होंने हार के कारणों पर तंज कसते हुए कहा कि उन्होंने तो अपनी तरफ से अच्छा काम किया, लेकिन जनता को संभवतः इससे भी अच्छा काम चाहिए. अब भाजपा करके दिखाए. राहुल गांधी अभी कोई बयान नहीं दिए हैं. उन पर ट्विट्टर पर किया गया अजय जांगिड़ का ये ट्वीट बेहद चर्चित रहा- “राहुल बाबा की, एक बात तो मानना पड़ेगी कि “बंदे ने, इतनी जगह बीजेपी की सरकार बनवा दी, लेकिन कभी घमंड नहीं किया..!!”

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आलेख और प्रस्तुति= सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी, प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम, ग्राम- घमहापुर, पोस्ट- कन्द्वा, जिला- वाराणसी. पिन- 221106
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