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स्तरहीन राजनीति: गड़बड़ी EVM मशीन में नहीं, बल्कि नेताओं के मन के भीतर है!

सद्गुरुजी
सद्गुरुजी
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ईवीएम मशीन को लेकर कई राजनीतिक दलों द्वारा उठाये जा रहे सवालों पर विराम लगाते हुए चुनाव आयोग ने स्पष्ट कर दिया है कि ईवीएम मशीन से किसी प्रकार की कोई छेड़छाड़ नहीं की जा सकती है. आयोग ने यहाँ तक कहा है कि यदि किसी राजनीतिक दल या व्यक्ति के पास ऐसा कोई सबूत हैं, जिससे साबित होता हो कि ईवीएम में छेड़छाड़ हो सकती है, तो वो इनको लेकर उनके पास आये. आयोग उन सबूतों को गंभीरतापूर्वक देखने के बाद ही किसी तरह का कोई निर्णय लेगा. देश के निष्पक्ष और स्वतन्त्र चुनाव आयोग का यह स्पष्टीकरण बहुत महत्वपूर्ण है कि हाल ही में पांच राज्यों में हुए चूनाव में ईवीएम मशीनों से छेड़छाड़ की कोई घटना नहीं हुई है. केन्दीय मंत्री वैंकया नायडू तो यहाँ तक रहे हैं कि गड़बड़ी EVM मशीन में नहीं, बल्कि केजरीवाल और मायावती के मन के भीतर है, जो हारने पर EVM मशीन को दोष देते हैं. यूपी विधानसभा चुनाव के नतीजे अपने खिलाफ आने के बाद बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने ईवीएम मशीन पर सवालिया निशान उठाए थे वहीं दूसरी तरफ दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी पंजाब के चुनाव में करारी शिकस्त मिलने के बाद EVM मशीन में गड़बड़ी किये जाने का आरोप लगाते हुए दिल्ली नगर निगम का चुनाव बैलेट पेपर से कराने की मांग की थी.

उनकी इस मांग को खारिज करते हुए चुनाव आयोग ने कहा कि दिल्ली नगर निगम के चुनाव में ईवीएम मशीन के द्वारा ही वोट डाले जाएंगे. पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (EVM) को लेकर 4 राजनीतिक दलों की ओर से गड़बड़ी का जो शक जाहिर किया गया है. वो सही नहीं प्रतीत होता है, क्योंकि पाँचों राज्यों में किसी एक दल को बहुमत नहीं मिला है. दो राज्यों में बीजेपी और तीन राज्यों में कांग्रेस सबसे आगे रही है. जहाँ तक चुनाव नतीजों को प्रभावित करने के लिए EVM मशीनों में हेरफेर करने की बात है तो वो संभव नहीं लगती है. तकनीकी विशेषज्ञों की मानें तो EVM मशीन में ब्लूटूथ कनेक्शन वाली छोटी सी चिप को लगाकर मोबाइल के जरिए EVM मशीन को हैक कर वोटों में हेरफेर किया जा सकता है, लेकिन यह असम्भव है, क्योंकि कोई भी व्यक्ति या राजनितिक दल लाखों वोटिंग मशीनों में यह चिप कैसे लगा सकता है? सबसे बड़ी बात यह है कि वोटिंग शुरू होने से पहले हर EVM मशीन की अच्छी तरह से जांच की जाती है और यह जांच विभिन्न दलों के पोलिंग एजेंटों की मौजूदगी में होती है.

इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (EVM) की विश्वसनीयता पर कभी भाजपा ने भी सवाल उठाये थे, किन्तु फिलहाल अभी दो राज्यों में मिली प्रचण्ड जीत के कारण चुप है. EVM की सुरक्षा पर भाजपा भी 2009 में संदेह जाहिर कर चुकी है. समय-समय पर EVM की सुरक्षा पर सवाल उठने और EVM की गड़बड़ी के कई मुकदमे सुप्रीम कोर्ट में चलने के कारण ही सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में चुनाव आयोग को चरणबद्ध तरीके से EVM में पेपर ट्रायल वीवीपीएटी (VVPAT) मशीन के जरिये लागू करने का आदेश दिया था. इस मशीन से निकलने वाली प्रिटेंड पर्ची वोटर को देकर उसे यह जानकारी दी जाती है कि उसने जिस उम्मीदवार को वोट दिया है, वह उसे ही मिला है. VVPAT मशीनों का इस्तेमाल अभी शुरूआती दौर में है. गौर करने वाली बात यह है कि यूपी के विधानसभा चुनाव में जिन 30 सीटो पर इन मशीनों का इस्तेमाल किया गया. उनमें भी 25 सीटों पर बीजेपी को ही जीत मिली है. इसलिए EVM में गड़बड़ी की आशंका जाहिर करना कुतर्क और बेमानी बात है. सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को आदेश दिया है कि 2019 के लोक सभा चुनाव में मतदाता सत्यापित पेपर ऑडिट ट्रोल मशीन यानी (वीवीपीएटी) से कराए जाएं.

चुनाव आयोग उसी दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहा है. इसके लिए दो मिलियन वीवीपीएटी मशीनों की जरूरत पड़ेगी, जिनमें से एक मिलियन वीवीपीएटी मशीनें तैयार कर ली गई हैं और शेष मशीनों की व्यवस्था करने में आयोग पूरी तरह से जुटा हुआ है. ये तय है कि 2019 में लड़ा जाने वाला आगामी लोकसभा चुनाव वीवीपीएटी मशीनों के जरिये से ही कराए जाएंगे. इसका अर्थ यह हुआ कि EVM मशीन हटाने की बजाय उसकी सुरक्षा में और सुधार करने का ही प्रयास किया जा रहा है. विचार करने वाली महत्वपूपूर्ण बात यह है कि जो दल इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों का विरोध कर रहे हैं और उसकी विश्वसनीयता पर सवाल खड़े कर रहे हैं, क्या उन्हें नहीं मालुम है कि वर्षों पहले बैलेट पेपर से चुनाव कराने पर बूथ कैप्चरिंग, फर्जी मतदान और हिंसक वारदातें कितने बड़े पैमाने पर होती थीं. अब ये सब न सिर्फ बंद है, बल्कि चुनावों के दौरान शान्ति और सद्भाव का माहौल भी कायम रहने लगा है. अतः EVM में गड़बड़ी और बैलेट पेपर से चुनाव कराने का प्रलाप तर्कसंगत नहीं है. अरविन्द केजरीवाल के गुरु और मशहूर समाजसेवी अन्ना हजारे ने बिलकुल सही कहा है कि, ‘दुनिया तेजी से तरक्की कर रही है और यहां हमलोग बैलट पेपर के जमाने में जाने की चर्चा कर रहे हैं. बीते दौर में कोई लौटता है क्या?’

हास्यास्पद बात यह है कि सभी दलों को वैर केवल बीजेपी से है, वो जहाँ भी भारी बहुमत से जीतती है, वहीँ पर सब के सब भाजपा विरोधी दल एक सुर में EVM के खिलाफ बोलते हैं. दिल्ली में जब आप जबर्दस्त बहुमत के साथ जीती और बिहार में जब लालू-नितीश गठबंधन को भारी बहुमत मिला तब मायावती, अखिलेश, केजरीवाल और कांग्रेस के नेताओं ने EVM के खिलाफ क्यों नहीं कुछ बोला? जाहिर सी बात है कि भाजपा के हाथों हारने पर सभी भाजपा विरोधी दलों की हालत ‘खिसियानी बिल्ली खम्भा नोचे’ वाली हो जाती है. दरअसल अपनी बनी बनाई राजनीतिक जमीन खिसकते देख सभी दल भाजपा और खासकर उसके महानायक मोदी से भयभीत रहने लगे हैं. उनकी राजनीतिक जमीन क्यों खिसक रही है, इस पर वो गौर करने को तैयार नहीं हैं, जैसे कांग्रेस में इस समय कुशल नेतृत्व क्षमता का अभाव है. राहुल गांधी के नेतृत्व क्षमता की हार लगातार जारी है. आप पार्टी की बात करें तो केजरीवाल काम की बजाय अब सोशल मीडिया और अफवाह फैलाने पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं. पंजाब और गोवा में उन्होंने यही किया और हारे. सपा की बात करें तो अखिलेश यादव अपने पिता मुलायम सिंह से राष्ट्रीय अध्यक्ष की कुर्सी जिस अपमानजनक तरीके से जबरन छीने और सत्ता लोभवश अपने चाचा से पंगा लिए, वो उनकी हार की एक बड़ी वजह बनी.

यूपी विधानसभा के चुनाव में सबसे बुरी हार मायावती को देखनी पड़ी. उनकी पार्टी का संगठनात्मक ढांचा ही ढह गया प्रतीत हुआ. बसपा का वोट बढ़ने की बजाय उल्टे घटा है. हर विधानसभा क्षेत्र में उसका जो आधारभूत दलित वोट बैंक था, उसमे भी पीएम मोदी ने भारी सेंधमारी की है. दरअसल गलती बसपा के बड़े नेताओं की है, जो जमीनी धरातल पर अपने वोटरों को संजोके नहीं रख पा रहे हैं और जो इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के इस युग में भी कांसीराम जी के युग में जी रहे हैं. कांसीराम जी के युग में मीडिया वोटरों पर हावी नहीं थी, जो वो कहते थे, दलित वोटर मान लेते थे, किन्तु अब मीडिया पर खुली बहस होती है, जिसे दलित भी अपने घरों में टीवी व रेडियो पर देखते-सुनते हैं और उस पर चर्चा व चिंतन भी करते है. पीएम मोदी की विकास योजनाएं जब दलितों और अल्पसंख्यकों के द्वार पर बिना किसी भेदभाव के दस्तक देती हैं, तब उन्हें सोचने को मजबूर करती हैं कि बसपा ने उन्हें क्या दिया? वो साफ़ कहते भी हैं, ‘वो पार्क बनाईं, मूर्तियां बनाईं, हमारे बलबूते ही रूपये कमाईं, पर हमें क्या मिला? मोदी कुछ तो दे रहे हैं.’ इसमें कोई संदेह नहीं कि मोदी ने विकास को गति दे देश के एक बहुत बड़े गरीब तबके की सोच बदल दी है. उन्होंने अपने लिए उनके निराश-हताश दिलों में आशा और विश्वास की किरण तो पैदा कर ही ली है. अब देखना है कि 2019 में यह जनमत उनके कितना काम आता है.

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आलेख और प्रस्तुति= सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी, प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम, ग्राम- घमहापुर, पोस्ट- कन्द्वा, जिला- वाराणसी. पिन- 221106
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