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योगी आदित्यनाथ: अब देखना है कि ‘रामराज्य’ लाने में कितना सफल हो पाते हैं?

सद्गुरुजी
सद्गुरुजी
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दैहिक दैविक भौतिक तापा।
राम राज नहिं काहुहि ब्यापा॥
सब नर करहिं परस्पर प्रीती।
चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीती॥

श्री रामचरितमानस की ये चौपाई ‘रामराज्य’ की उस धार्मिक अवधारणा पर प्रकाश डालती है, जो देश की आमजनता के ह्रदय में सदियों से एक ‘सुखद कल्पना’ और ‘राजा राम के अनदेखे सुशासन की कथा’ के रूप में बसी हुई है. हिंदी साहित्य के महान कवि गोस्वामी तुलसीदास ने ‘रामराज्य’ के विषय में स्पष्ट रूप से कहा है कि रामराज्य’ में दैहिक, दैविक और भौतिक ताप किसी भी व्यक्ति को नहीं व्यापते हैं. दैहिक या शरीरिक दुःख मुख्यतः रोग व चोट आदि के कारण उत्पन्न होते हैं. दैविक दुःख देवी-देवताओं या कहिये प्रकृति प्रदत्त होते हैं, जैसे- सूखा, बाढ़, भूकम्प, रोग व संक्रमित महामारी आदि. गरीबी, भुखमरी, तन ढकने को वस्त्र और रहने को छत का न होना ये सब भौतिक ताप के अंतर्गत आता है. किसी भी अच्छे राजा के सुशासन में ये सब कष्ट जनता को नहीं झेलने पड़ते हैं. तुलसीदास जी आगे कहते हैं कि ‘रामराज्य’ में सब मनुष्य परस्पर प्रेम करते हैं. राज्य में कहीं भी दंगा-फसाद और धर्म-जाति के आधार पर भेदभाव नहीं होता है. जनता वेदों में बताई हुई नीति या वर्तमान समय के अनुसार कहिये तो संवैधानिक मर्यादा के दायरे में रहकर स्वधर्म यानी कि अपने-अपने धर्म का पालन करती है. ‘रामराज्य’ की परिकल्पना सोचने में बहुत लुभावनी लगती है, किन्तु वास्तविक धरातल पर इसे उतार पाना यदि असम्भव नहीं तो अत्यंत कठिन अवश्य है.

पिछले माह 3 फरवरी को छत्तीसगढ़ राज्य के रायपुर में आयोजित एक धार्मिक कार्यक्रम में बोलते हुए योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि ‘शासन की आदर्श पद्धति ही रामराज्य की परिकल्पना को साकार करने वाली है. इसी पद्धति को आगे बढ़ाने के लिए तथा देश के अंदर रामराज्य की परिकल्पना को साकार करने के लिए भारतीय जनता पार्टी की केंद्र में नरेंद्र मोदी जी की सरकार इस देश के गांव के लिए, गरीब के लिए, किसान के लिए नौजवान के लिए और इस देश की सुरक्षा के लिए अपने कार्यक्रमों के माध्यम से अभियान चला रही है.’ योगी आदित्यनाथ ने छत्तीसगढ़ राज्य की रमन सरकार की जमकर तारीफ करते हुए उस समय कहा था कि ‘एक लंबे समय तक भगवान राम ने धर्म की स्थापना के लिए और उस कालखंड में रावण के द्वारा स्थापित असुरों से लड़ते हुए हमारे जिस रामराज्य की कल्पना को 14 वर्षों के बाद अयोध्या में साकार किया था, वह सचमुच हम सबको आज इस छत्तीसगढ़ में एक योग्य मुख्यमंत्री रमन सिंह के नेतृत्व में दिखाई देता है.’ 14 वर्षों के बाद प्रचण्ड बहुमत के साथ भाजपा यूपी में सत्ता हासिल की है. उसे 403 में से 325 सीटें मिली हैं, जिसमे उसके सहयोगियों को मिली 13 सीटें भी शामिल हैं. उत्तर प्रदेश में इससे पहले साल 2003 में बीजेपी अपने कट्टर विरोधी दल बीएसपी के साथ मिली-जुली सरकार के रूप में सत्ता में थी.

यह संयोग की ही बात है कि भाजपा 14 वर्षों के बनवास के बाद न सिर्फ यूपी की सत्ता में शानदार वापसी की है, बल्कि सदैव और सर्वत्र ‘रामराज्य’ का गुणगान गाने वाले योगी आदित्यनाथ को ही यूपी का राजपाट भी मिला है. हमेशा ‘रामराज्य’ की दुहाई देने वाले योगी आदित्यनाथ के सामने अब एक बहुत बड़ी चुनौंती यह है कि वो अपने शासनकाल में यूपी में ‘रामराज्य’ लाके दिखाएं. अब तक वो सिर्फ ‘रामराज्य’ लाने की दिशा में अग्रसर होने के लिए पीएम मोदी और भाजपा शासित प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों की तारीफ़ भर ही करते रहे हैं. उन्हें समझना होगा कि यूपी में ‘रामराज्य’ लाने का अर्थ लड़कियों और महिलाओं से छेड़खानी करने वाले मनचलों के दुस्साहस और उनके अड्डों को खत्म करने के लिए सार्वजनिक जगहों व स्कूल कॉलेजों के बाहर एंटी रोमियो दल की तैनाती करना, पीएम मोदी की देखादेखी सफाई अभियान चलाना तथा अयोध्या में राम मन्दिर बनाने का प्रयास करना भर ही नहीं है, बल्कि ‘रामराज्य’ का वास्तविक अर्थ, धर्म-जाति का भेदभाव किये बिना उत्तर प्रदेश की गरीब जनता को जीवन की मूलभूत जरूरतें ‘रोटी, कपडा और मकान’ मुहैया कराना है. बेरोजगारों को रोजगार के अधिक से अधिक अवसर प्रदान करना है. प्रदेश में कहीं भी दंगा-फसाद न हो, इसका विशेष ध्यान रखना है. प्रदेश की आम जनता को सुरक्षा, शिक्षा और बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं प्रदान करना है और प्रदेश के अन्नदाता किसानों को सूखा, अकाल, भुखमरी, बिमारी और कर्जों से निजात दिलाना है. मूलतः ‘रामराज्य’ की अवधारणा का यही सब आधारबिंदु है.

ये सब यदि नए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कर सके तो वो निसंदेह यूपी में ‘रामराज्य’ लाने में सफल होंगे. योगी आदित्यनाथ जी को एक ख़ास बात जो सदैव याद रखनी चाहिए, वो ये कि श्री रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास ने एक तरफ जहाँ ‘रामराज्य’ की चर्चा की है तो वहीँ दूसरी तरफ ये भी कहा है, “जासु राज प्रिय प्रजा दुखारी। सो नृप अवसि नरक अधिकारी॥” यदि किसी राजा के राज्य में प्रजा दुखी रहे, उस राजा को एक दिन नरक में जाना पड़ सकता है. एक बात और कहना चाहूंगा कि मानस के अनुसार ’’सुखी प्रजा जनु पाई सुराजु‘‘ अर्थात रामराज्य में सुराज्य यानी बोलने की आजादी पाकर प्रजा बेहद खुश थी. लोग निर्भीक होकर रानी कैकेयी के बुरे कार्यों की और राजा राम के व्यक्तिगत जीवन की भी आलोचना करते थे. राजा राम ने प्रजा की बातें सुनकर और एक गरीब धोबी की भावना का आदर करते हुए अपनी धर्मपत्नी सीता का परित्याग कर दिया था. प्रजा-तंत्रात्मक रामराज्य में व्यक्तिगत स्वातंत्र्य का इससे बढकर और क्या सबूत हो सकता है? अपनी आलोचना सहजता, सुधारात्मक दृष्टिकोण और विनम्रता के साथ सहन करने के लिए भी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को खुद को पूरी तरह से तैयार करना होगा. मेरे विचार से किसी राजा या कहिये मुख्यमंत्री की यही सबसे बड़ी प्रजा-प्रियता एवं महानता है. अब यही देखना है कि भविष्य में पूरे देशभर में ‘रामराज्य’ लाने के सबसे बड़े पैरोकार व हिंदुत्ववादी नेता योगी आदित्यनाथ अपने शासनकाल में उत्तर प्रदेश में कितना ‘रामराज्य’ लाने में सफल हो पाते हैं?

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आलेख और प्रस्तुति= सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी, प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम, ग्राम- घमहापुर, पोस्ट- कन्द्वा, जिला- वाराणसी. पिन- 221106
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