Menu
blogid : 15204 postid : 1321668

भेदभाव: महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार आने वाले समय में और मिलेंगे

सद्गुरुजी
सद्गुरुजी
  • 534 Posts
  • 5673 Comments

समाज के एक बड़े धार्मिक वर्ग द्वारा आज भी स्त्री को अपवित्र, तिरष्कृत और दोयम दर्जे की समझा जाता है। भारत में ऐसी कई जगहे हैं, जहाँ पर ये मान्यता है कि महिलाओं के आने से यह स्थान अपवित्र हो जाएगा। राजस्थान के पुष्कर शहर में स्थित ब्रह्मचारी कार्तिकेय के मंदिर में महिलाऐं नहीं जा सकती हैं। वहां के पुजारियों का कहना है कि यदि महिलाएं मंदिर में जाएँगी तो कार्तिकेय भगवान नाराज हो जायेंगे। केरल के तिरुअनंतपुरम में स्थित पद्मनाभस्वामी मंदिर में भी महिलाओं के प्रवेश पर रोक है। यहाँ के पुजारियों का तर्क तो बेहद हास्यास्पद है। वे मानते हैं कि इस मंदिर के तहखाने में यदि महिलाएं जाएँगी तो खजाने को बुरी नज़र लग जाएगी, क्योंकि गहनों के प्रति उनकी आसक्ति होती है। दक्षिणी दिल्ली में स्थित हजरत निज़ामुद्दीन औलिया के दरगाह में भी औरतों का प्रवेश निषेध है।

सबसे ज्यादा शर्मिंदगी आपको ये जानकर होगी कि केरल के सबसे प्राचीन और भव्य मंदिरों में शामिल सबरीमाला श्री अयप्पा मन्दिर में 10 से लेकर 50 साल तक की महिलाएं प्रवेश नहीं कर सकतीं हैं, क्योंकि इस मंदिर की मान्यता के अनुसार महिलाऐं तबतक शुद्ध नहीं मानी जाएँगी, जबतक उन्हें मासिक धर्म होगा। महिलाओं को जिन मंदिरों, मस्जिदों या दरगाहों में प्रवेश की अनुमति नहीं है, यदि आप उसके मूल कारण पर विचार करें तो यही पाएंगे कि उनके विचार से महिलाओं को मासिक धर्म होता है, वो बच्चे पैदा करती हैं, इसलिए पवित्र नहीं हैं। उन्हें भय है कि उनके प्रवेश करने से पवित्र स्थान अपवित्र हो जाएगा। जबकि आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के अनुसार मासिक धर्म, शरीर के गर्भावस्था के लिए तैयार होने की प्रक्रिया का एक हिस्सा है, इसलिए गंदा या अपवित्र रक्त निकलने की बात सत्य नहीं है।

बहुत से पुरुषों की स्त्रियों के बारे में बस यही रूढ़िवादी सोच है कि महिलाएं कभी पुरुषों के बराबर नहीं हो सकतीं, क्योंकि वे केवल बच्चे पैदा करने के लिए ही होती हैं। लेकिन महिलाएं इस सोच को झुठलाते हुए हर क्षेत्र में आगे बढ़ते हुए न सिर्फ पुरुषों को कठिन चुनौती दे रही हैं, बल्कि लैंगिक भेदभाव के खिलाफ कडा संघर्ष कर रही हैं। पिछले कुछ सालों में कई धार्मिक स्थलों पर महिलाओं ने लैंगिक भेदभाव को ख़त्म करने में ऐतिहासिक और उल्लेखनीय सफलता पाई है। साल 2015 में महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के शिंगणापुर गांव स्थित प्रसिद्ध शनि मंदिर में एक महिला श्रद्धालु द्वारा शनि महाराज को तेल चढाने से बवाल मच गया था। कोर्ट के ह्तक्षेप और आदेश के बाद महिलाओं को शनि प्रतिमा की पूजा करने से रोकने वाली 400 साल पुरानी प्रथा अंतत टूट गई।

इसी तरह से साल 2016 में लंबी कानूनी लड़ाई और विरोध प्रदर्शनों के बाद मुंबई की हाजी अली दरगाह में महिलाओं को पवित्र गर्भगृह में प्रवेश का पुरुषों के समान अधिकार मिला। इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने महिलाओं और पुरुषों को समान अधिकार के आधार पर महिलाओं को दरगाह में प्रवेश करने की अनुमति दी थी। समानता, लैंगिक भेदभाव खत्म करने और संवैधानिक अधिकारों को पाने के लिए महिलाएं आज भी कठिन संघर्ष कर रही हैं। इसी राह पर चलते हुए इन दिनों तीन तलाक का विरोध करने के लिए बड़ी संख्या में मुस्लिम महिलाओं ने सड़क से लेकर कोर्ट तक का रुख अख्तियार कर लिया है। जाहिर सी बात है कि महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार आने वाले वक्त में और मिलेंगे और उनके प्रति होने वाले सारे लैंगिक भेदभाव ख़त्म होंगे। (575 शब्द)

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
आलेख और प्रस्तुति= सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी, प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम, ग्राम- घमहापुर, पोस्ट- कन्द्वा, जिला- वाराणसी. पिन- 221106.
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh