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फिर नक्सली हमला: सरकार को इस समस्या का कोई स्थायी समाधान ढूंढना चाहिए

सद्गुरुजी
सद्गुरुजी
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छत्तीसगढ़ राज्य के बस्तर संभाग में आने वाले सुकमा जिले के एक जंगली इलाके में सोमवार को दोपहर के समय सड़क के किनारे भोजन कर रहे सीआरपीएफ के जवानों पर लगभग 300 नक्सलियों ने आधुनिक हथियारों से अंधाधुंध फायरिंग करते हुए हमला कर दिया. अचानक हुए इस हमले में सीआरपीएफ के 25 जवान शहीद, 6 घायल और 8 लापता हो गए. सुकमा जिले के जिस इलाके में ये हमला हुआ, उस इलाके में इन दिनों सड़क निर्माण का कार्य चल रहा है और सीआरपीएफ के जवान सड़क निर्माण के कार्य में लगे कर्मचारियों और मजदूरों को सुरक्षा प्रदान कर रहे हैं. सुकमा जिला नक्सलियों का गढ़ है. यहाँ पर कई सालों से सीआरपीएफ के जवानों पर नक्सली हमले हो रहे हैं. अभी पिछले महीने ही नक्सलियों ने सीआरपीएफ के जवानों पर हमला कर 12 जवानों को मार दिया था. साल 2010 में इसी इलाके (तबके दंतेवाडा जिला) में हुए एक नक्सली हमले में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के 76 जवान शहीद हो गए थे. नक्सलवाद की समस्या देश में इतनी अधिक बढ़ चुकी है कि अब तो बहुत से लोग नक्सली क्षेत्रों को सेना के हवाले करने की सलाह दे रहे हैं, जो नक्सलियों की क्रूरता को देखते हुए उचित जान पड़ता है.

छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित जिलों में सुरक्षा गश्त पर निकले राज्य पुलिस और केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के जवानों पर आये दिन घात लगाकर छोटे बड़े नक्सली हमले होते रहते हैं. इन हमलों में ज्यादातर तो सीआरपीएफ के ही जवान शहीद हो रहे हैं, क्योंकि नक्सलियों से मोर्चा लेने में केंद्रीय बल के जवान ही अक्सर आगे रहते हैं और हैं और राज्य की पुलिस प्रत्यक्ष कम अप्रत्यक्ष रूप से ही ज्यादा उनकी सहायता करती है. दरअसल उनमे आपसी समन्वय की भी काफी कमी है. पुलिस बहुत सक्रिय नहीं रहती है. यदि दोनों एक साथ मिलकर नक्सलियों का मुकाबला करें तो ज्यादा सफलता मिल सकती है. नक्सली गतिविधियों की ख़ुफ़िया जानकारी राज्य पुलिस थानों को ही सबसे पहले मिलती है, जिसे समय रहते सीआरपीएफ तक पहुंचाना उनका काम है, लेकिन बार बार हो रहे घातक नक्सली हमलों से तो यही लग रहा है कि ख़ुफ़िया जानकारी यानि इंटेलिजेंस सूचनाएं सीआरपीएफ के जवानों को नहीं मिल पा रही है, इसलिए वो बड़ी संख्या में नक्सली हमलों में शहीद हो रहे हैं.

सोमवार को हुए बेहद घातक नक्सली हमले में सीआरपीएफ के 25 जवानों की शहादत पर राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और गृहमंत्री सहित सत्तापक्ष और विपक्ष के बहुत से नेताओं ने अपनी शोक संवेदनाएं व्यक्त की हैं. ये सब महज एक ओपचारिकता भर है, जो हर बड़े नक्सली हमले के बाद हम निभाते हैं. सवाल यह है कि इससे नक्सली गतिविधियां क्या रुक जाएंगी या फिर शहीद जवानों के परिवारों को कोई शांति मिलेगी, जो इस खूनी हमले का सरकार से जोरदार बदले के रूप में एक व्यावहारिक जबाब चाहते हैं. यह तबतक संभव नहीं है, जबतक कि एक विशेष पुलिस बल का गठन नक्सलियों से निपटने के लिए नहीं किया जाएगा. आंध्रप्रदेश सरकार ने नक्सलियों से निपटने के लिए ग्रेहाउंड फ़ोर्स का गठन किया और उसे भारी सफलता मिली. गौर करने वाली बात यह है कि गुरिल्ला टाइप की जंगली लड़ाई में माहिर नक्सलियों से पुलिस और सीआरपीएफ के हमारे बहादुर जवान ठीक से नहीं लड़ पा रहे हैं, बल्कि इनकी जगह सीआरपीएफ की कोबरा फ़ोर्स उनसे लड़ने में बहुत हद तक कामयाब है.

कहा जा रहा है कि सोमवार को सीआरपीएफ के जवानों पर हुआ भीषण नक्सली हमला सुकमा में हो रहे सड़क निर्माण के कारण है, जिसे नक्सली पसंद नहीं करते हैं, क्योंकि उन्हें यह भय सता रहा है कि सड़क, स्कूल, हॉस्पिटल सहित अन्य कई तरह के विकास जो सरकार कर रही है, उससे क्षेत्र में उनका प्रभाव समाप्त हो जाएगा. सरकार को नक्सलियों से और उनके स्थानीय समर्थकों से इस मुद्दे पर संवाद कायम करना चाहिए, क्योंकि उनकी लड़ाई मुख्य रूप से तो क्षेत्र का विकास नहीं होने को लेकर ही है. नक्सलियों की राजनेताओं, भ्रष्ट अधिकारियों और बहुत से अमीरों से जो मिलीभगत है, उसकी भी जांच होनी चाहिए. इसकी भी जांच होनी चाहिए कि आखिर उनके पास आधुनिक और ऑटोमैटिक हथियार आ कहाँ से रहे हैं? माओवाद के रूप में वामपंथ का ही एक अभिन्न और उग्र स्वरुप कई राज्यों में नक्सलवाद के सबसे घातक संगठन के रूप में काम कर रहा है. सरकार को इस ओर भी ध्यान देते हुए पूरे मसले की तह तक जाना चाहिए और कोई स्थायी समाधान ढूंढना चाहिए. जयहिंद.

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आलेख और प्रस्तुति= सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी, प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम, ग्राम- घमहापुर, पोस्ट- कन्द्वा, जिला- वाराणसी. पिन- 221106.
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