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कमी देश के जवानों और कमांडरों में नहीं है, बल्कि देश के लीडरों में है-जंक्शन फोरम

सद्गुरुजी
सद्गुरुजी
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इस साल 14 फरवरी को जम्मू-कश्मीर के बांदीपुरा में आतंकियों के साथ मुठभेड़ में 9 गोली लगने के बाद घायल होने वाले और लगभग एक माह तक कोमा में रहने वाले सीआरपीएफ के अधिकारी चेतन कुमार चीता अब काफी हद तक स्वस्थ हो चुके हैं. बुधवार रात को उन्हें एक न्यूज चैनल पर बातचीत करते देखकर बहुत ख़ुशी हुई. बहुत ही नाजुक स्थिति में उन्हें अस्पताल में ऐडमिट किया गया था. उन्हें 9 गोलियां लगी थीं, जिसमे से एक गोली उनकी दाईं आंख से होती हुई और ब्रेन को डैमेज करती हुई सिर के बाहर निकल गई थी. एक गोली उनकी पीठ में लगी थी, जो उनके पेट से होते हुए और आंत को बुरी तरह से डैमेज कर बाहर निकली थी. एम्स ट्रॉमा सेंटर के आईसीयू में इलाज के दौरान स्टूल पास करने के लिए पैसेज बनाया गया था और ट्यूब से भोजन लिक्विड के रूप में दिया जा रहा था. अब वो थोड़ा सा भोजन मुंह से भी खा रहे हैं. 14 फरवरी को बांदीपुरा में आतंकियों के होने की खबर मिलने के बाद एक सर्च अभियान चलाया जा रहा था, चेतन कुमार चीता सेना के उसी अभियान का नेतृत्व कर रहे थे.

सेना के अभियान के बारे में आतंकियों को पहले से ही भनक लग चुकी थी, इसलिए वे बार-बार अपना ठिकाना बदल रहे थे और सेना से मुठभेड़ करने के लिए पूरी तरह से तैयार थे. चेतन कुमार चीता के नेतृत्व में जैसे ही सैनिक आतंकियों को ढूंढते हुए उनके एक ठिकाने पर पहुंचे, उन्होंने अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार आतंकियों ने चेतन कुमार चीता पर 30 राउंड फायर किए जिसमें से 9 गोलियां उन्हें लगीं. गोलियों से घायल होने के बावजूद भी जाबांज कमांडर चेतन कुमार चीता ने जोरदार जवाबी फायरिंग करते हुए लश्कर के आतंकी अबू हारिस को मौके पर ही ढेर कर दिया. इस मुठभेड़ में सीआरपीएफ के 3 जवान शहीद हो गए थे और 15 जवान घायल हुए थे, घायल चेतन चीता को पहले श्रीनगर के आर्मी अस्पताल में भर्ती किया गया, लेकिन जख्म की गंभीरता को देखते हुए उन्हें तुरंत एयर ऐंबुलेंस के जरिए दिल्ली लाकर एम्स में भर्ती कराया गया. घायल चेतन कुमार चीता को देखने आर्मी चीफ बिपिन रावत और केंद्रीय गृह राज्यमंत्री किरण रिजिजू वहां पर गए थे.

चेतन चीता ने न्यूज चैनल पर दिए इंटरव्यू में बताया क़ि होश में आने पर भी उनके दिमाग में यही था क़ि वो इस समय कहाँ हैं? शरीर में कई गहरे जानलेवा जख्म, फिर भी जेहन कर्तव्यपरायणता में रमा हुआ. मौत को मात देकर दोबारा जीवन पाने वाले चेतन कुमार चीता आज भी अस्पताल में भर्ती हैं, लेकिन शरीर से ज्यादा कश्मीर के हालात लेकर परेशान हैं. वे बार बार यही कहते हैं कि इस समय मुझे यहां अस्पताल में नहीं, बल्कि कश्मीर में होना चाहिए. वो यही चाहते हैं क़ि जल्द से जल्द फिट हो दुश्मनों पर घातक प्रहार करने में माहिर सीआरपीएफ की कोबरा टीम का हिस्सा बनें और देशसेवा में पुनः जुट जाएँ. उन्होंने इसीलिए सिविल सर्विस की जगह सुरक्षा बल की नौकरी चुनी थी. अब मैं नोएडा के सेक्टर-33 स्थित प्रकाश अस्पताल में भर्ती सीआरपीएफ के जवान जितेन्द्र कुमार की चर्चा करूंगा, जो लगभग तीन साल से कोमा में हैं. वो साल 2014 में छतीसगढ़ में हुए एक आतंकवादी हमले में घायल में बुरी तरह से घायल हुए थे. इस हमले में पांच जवान शहीद हो गए थे.

दो रोज पहले एक न्यूज चैनल पर एक मां को हाथ जोड़कर रोते और ये कहते हुए देखा-सूना कि क्या मेरा बेटा देश की रक्षा नहीं कर रहा था? अपने बेटे के इलाज के लिेए दर-दर भटक रही हूँ. मेरा बेटा ठीक हो जाए, वो फिर आतंकवादियों से लड़ने के लिए जहाँ भी भेजा जाएगा, वहां जाएगा. कुछ देर में पता चला कि अपने बेटे के इलाज के लिए हाथ जोड़कर रोती विलखती स्त्री रूपा देवी हैं, जिनका बेटा जितेन्द्र कुमार पिछले तीन साल से कोमा में है. यह सब देखसुनकर ह्रदय को इतनी पीड़ा पहुंची कि आँखे भर आईं. जितेन्द्र कुमार की माता रूपा देवी बस यही चाहती हैं कि उनके बेटे का इलाज एम्स में या फिर किसी अन्य अच्छे अस्पताल में हो. नक्सलियों, पत्थरबाजों,और आतंकियों से दिन-रात लोहा लेने वाले जितेन्द्र कुमार के जैसे वीर जवानों के लिए क्या हमारे देश की सरकार इतना भी नहीं कर सकती है? उनके लिए देश की जनता की सहानुभूति और संवेदनशीलता क्यों नहीं है? चेतन कुमार चीता अपने इंटरव्यू में बिलकुल सही कहते हैं कि कमी देश के जवानों और कमांडरों में नहीं, बल्कि देश के लीडरों में है.

चाहे कमांडर चेतन कुमार चीता हों या फिर सीआरपीएफ के जवान जितेन्द्र कुमार और उनकी माता रूपा देवी हों, देशभक्ति के ऐसे जीते-जागते जूनून को और अपराजेय योद्धाओं को हम सेल्यूट करते हैं. देश के लीडरों के मन में यदि पाकिस्तान से, आंतकियों से और नक्सलियों से लड़ने की हिम्मत शेष न बची हो तो इन अपराजेय योद्धाओं से सीखें कि देशप्रेम क्या होता है और घायल होने पर सरकार यदि उनके ईलाज का समुचित प्रबंध न भी कर पाए तो भी अपने मुल्क के लिए लहू बहाने और जान देने की उनकी दीवानगी जरा भी कम नहीं होती है. वो घायल होते हैं और मौत के मुंह से लौट के वापस आते हैं, फिर भी देश के लिए फिर से लड़ने या जान न्यौछावर करने में वो ज़रा भी हिचकिचाते या डरते नहीं हैं. हिन्दुस्तान का वजूद सत्ता लोभी, डरपोक, दोमुंहे और बेशर्म लीडरों के बल पर नहीं, बल्कि हमारे देश के वीर जवानों के बल पर हमेशा कायम और बुलंद रहेगा, क्योंकि जवान सिर्फ इतना जानता है कि “चमन के वास्ते चमन के बाग़बां शहीद हों.. खिलेंगे फूल उस जगह कि तू जहाँ शहीद हो,.” जयहिंद.

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आलेख और प्रस्तुति= सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी, प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम, ग्राम- घमहापुर, पोस्ट- कन्द्वा, जिला- वाराणसी. पिन- 221106.
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