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मणिशंकर अय्यर: पाकिस्तान से लेकर कश्मीर तक की यात्रा आखिर किसके लिए हुई?

सद्गुरुजी
सद्गुरुजी
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कुछ रोज पहले कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री मणिशंकर अय्यर एक प्रतिनिधिमंडल को साथ लेकर कश्मीर गए थे, जहाँ पर वो कई अलगाववादी नेताओं के साथ साथ राज्यपाल एनएन वोहरा और मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती से भी मिले. ऐसे में जबकि केंद्र सरकार ने साफ़ कह दिया है कि कश्मीर में हिंसा करने वालों और अलगाववादियों के साथ कोई बातचीत नहीं होगी, तब मणिशंकर अय्यर की कश्मीर यात्रा पर सवाल तो उठने स्वाभाविक ही थे और मीडिया से लेकर सोशल मीडिया तक पर सवाल उठ भी रहे हैं कि वो कश्मीर यात्रा पर किसके लिए गए थे, देश के लिए, अलगाववादियों के लिए या फिर कांग्रेस को मजबूत करने के लिए? कश्मीर यात्रा के दौरान जब पत्रकारों ने उनसे पूछा कि वो किस हैसियत से सबसे मिलजुल रहे हैं, सबसे बातचीत करने के लिए क्या आपको केंद्र सरकार का समर्थन प्राप्त है? मणिशंकर अय्यर ने कहा कि भारत का नागरिक होने के नाते मैं कश्मीरियों से मिलजुल रहा हूँ. उन्हें मैं अपना भाई-बहन समझता हूँ. उनके जबाब से जाहिर है कि वो अपनी मर्जी से कश्मीर यात्रा पर गए थे. जब उनसे पूछा गया कि कश्मीर घाटी में शांति कैसे आएगी? इसके जबाब में उन्होंने कहा कि बातचीत के ज़रिए ही यह मामला हल होगा. दिल्ली-इस्लामाबाद और दिल्ली-श्रीनगर में बात हो. एक अलगाववादी के सुझाव के अनुसार श्रीनगर-मुज़्ज़फ़राबाद के बीच भी बातचीत होनी चाहिए. उनका कहना था कि केंद्र सरकार उनका सुझाव नहीं मानेगी, क्योंकि वो लोग अपना हिन्दू राष्ट्र बनाने में लगे हुए हैं.

बीबीसी संवाददाता से बातचीत में मणिशंकर अय्यर ने पूछा कि आप मुझे ये बताएं कि गिलानी से बात नहीं करेंगे तो क्या ज़ाकिर मूसा के साथ बात होगी? ज़ाकिर मूसा ने तो कहा है कि ये सियासी नहीं इस्लामी और ग़ैर इस्लामी का मसला है. अगर आज ठोस क़दम नहीं उठाए गए तो क्या पता कुछ ही महीनों के अंदर हालत इस तरह बिगड़ेंगे कि और कोई रास्ता नहीं बचेगा, सिवाय कश्मीरियों पर जंग छेड़ने के. उन्होंने कहा कि मैं चाहता हूँ कि पत्थर फेंकने वालों को बंदूक़ से जवाब नहीं दिया जाना चाहिए. कल हो सकता है कि वो पत्थर छोड़ कर हाथों में बंदूक़ उठाने लगें. तो ये है साहब, मणिशंकर अय्यर की कश्मीर यात्रा का मकसद और कश्मीर के तमाम अलगाववादी फ़िरकों से हुई उनकी बातचीत सार. बकौल उनके कश्मीर में सभी फ़िरकों ने उनका इस्तक़बाल यानी पूरी गर्मजोशी से स्वागत किया. मणिशंकर अय्यर जानते थे कि केंद्र कि मौजूदा राष्ट्रवादी भाजपा सरकार उनकी कोई बात नहीं सुनेगी, तो फिर सवाल यह पैदा होता है कि वो कश्मीर गए क्यों और गए भी तो घूमफिर के चले आते, अलगाववादी देशद्रोही नेताओं से मिलने की जरुरत क्या थी? इससे तो यही शक पैदा होता है कि वो तमाम अलगाववादियों को यही समझाने गए थे कि भाजपा सरकार आपसे कोई बातचीत नहीं करेगी, इसे पहले हटाने में मदद कीजिये, फिर हम 2019 में सत्ता में आएंगे तो आप लोंगो से बातचीत होगी. ये शक इसलिए भी पैदा होता है, क्योंकि साल 2015 में उन्होंने पाकिस्तानी लोंगो से मोदी को हटाने की अपील की थी.

कश्मीरी अलगाववादियों से गले मिलने को बेचैन लोंगो की उनसे क्या बातचीत हुई, उसके जो वीडियो इंटरनेट पर उपलब्ध हैं, उसका हूबहू नॉट किया हुआ यह संवाद पढ़िए. अलगाववादियों के साथ ‘चाय पर चर्चा’ करने के लिए जब मणिशंकर अय्यर अपने साथियों के साथ पहुँचते हैं तो बंद कमरे में सय्यद अली शाह गिलानी से ये बातचीत होती है.
गिलानी से सवाल: आपके पास तो बहुत फौज है ना?
सय्यद अली शाह गिलानी: हाँ, काफी फौज है. वैसे फौज के सहारे ही आपका कब्जा है.
गिलानी ने हिन्दुस्तान और उसकी सेना का मजाक उड़ाया और मणिशंकर अय्यर ठहाके मारकर हंसने लगे. उनके सब साथी भी हंसने लगते हैं. कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता के सामने देशद्रोह की बात होती है और गिलानी को फटकार लगाने बजाय वो और उनके साथी बेशर्मी से हँसते हैं. सोचिये कितने शर्म की बात है. ऐसे बुद्धिजीवियों और सेक्युलर नेताओं से देश को भगवान् बचाएं. आगे की बातचीत पढ़िए-
गिलानी से सवाल: कैसी तबियत है आपकी?
सय्यद अली शाह गिलानी: हाँ, ठीक है.

गिलानी से सवाल: आपसे बहुत दिनों के बाद मुलाक़ात हुई है, करीब साल भर हो गया. आज बहुत दिनों के बाद सुनने का मौका मिलेगा.
सय्यद अली शाह गिलानी: फरमाइए क्या पैगाम लेकर आए हैं?
मणिशंकर अय्यर: हम आपके पैगाम सुनने के लिए आए हैं. ताकि उस पैगाम को जहाँ तक पहुंचा सकें, पहुंचाएं और फिर बीच में आपको बताएंगे.
सय्यद अली शाह गिलानी: नहीं, नहीं, पहले आप ही बात करिए.
आगे क्या बातचीत हुई, इसका कोई वीडियो उपलब्ध नहीं है, लेकिन संवादाताओं से बातचीत में मणिशंकर अय्यर ने बताया कि सैयद अली शाह गिलानी ने आज हमसे कहा कि पहले आप आज़ादी की बात मानिए, तब हम आप से बात करेंगे. मणिशंकर अय्यर का मानना है कि उनकी ऐसी शर्त है, फिर भी उनसे बातचीत होनी चाहिए. वो हुर्रियत कान्फ्रेंस के अन्य अलगाववादी नेताओं मीरवाइज उमर फारूक और शब्बीर शाह से भी मिले, लेकिन उनसे हुई बातचीत का कोई व्यौरा उपलब्ध नहीं है. कहने को तो वो ‘सेंटर फोर पीस एंड प्रोग्रेस’ नाम के एक एनजीओ द्वारा आयोजित एक संगोष्ठी में ‘जे एंड के – द रोड अहेड’ विषय पर चर्चा के लिए वहां गए हुए थे, लेकिन कांग्रेस इस यात्रा से और अपने नेता मणिशंकर अय्यर के विचारों से यह कहकर अपना पल्ला झाड़ चुकी है कि ये उनकी निजी यात्रा और निजी राय है, कांग्रेस इससे इत्तेफाक नहीं रखती है.

मणिशंकर अय्यर की अलगाववादियों से भेंट कांग्रेस का असली चाल और चरित्र देशवासियों के सामने उजागर कर देती है. कांग्रेस जनता को मुर्ख न समझे कि वो कुछ भी चालबाजी करेंगे और जनता को पता नहीं चलेगा. जनता अब बहुत जागरूक हो गई है. वो तमाम तरह के मीडिया और सोशल मीडिया के जरिये हर चीज पर निगाह रखती है. ऐसे में उस पर जनता को शक तो होगा ही कि कांग्रेस का हाथ इस समय किसके साथ है? आपको जानकारी दे दूँ कि ये मणिशंकर अय्यर कांग्रेस के वही वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री हैं, जो साल 2015 में जब पाकिस्तान गए थे तो वहां के लोंगो से, मीडिया से और सरकार से मदद मांगे थे कि मोदी को हटाने के लिए हमारी मदद करें. पाकिस्तान के एक न्यूज चैनल ‘दुनिया न्यूज’ को दिए गए इंटरव्यू में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मणिशंकर अय्यर ने कहा था कि अगर पाकिस्तान को भारत से बाइलेट्रल टॉक (आपसी हितों से जुडी बातचीत) करनी है तो पहले उसे नरेंद्र मोदी सरकार को हटाना होगा और हमें यानि कांग्रेस को सत्ता में लाना होगा. पढ़िए उस विवादित इंटरव्यू के अंश-
पत्रकार: किसी ने ये सवाल उठाया है कि मोदी साहब जिस लाइन को लेकर चल रहे हैं. वो पॉलिटिक्स में बिकती है. मोदी साहब कोई कमजोर नहीं हो रहे हैं. बल्कि वो स्ट्रॉग हो रहे हैं. अपने बेस को मजबूत कर रहे हैं.
मणिशंकर: 8 तारीख को बिहार के नतीजे आने वाले हैं और आपको दुबारा अपना सवाल करना पडेगा.
पत्रकार: अच्छा जी…

मणिशंकर: स्ट्रांग नहीं होते जा रहे हैं.
मणिशंकर: इसको बंद करना है तो इसका एक ही तरिका है कि भारत और पाकिस्तान के रिश्ते बेहतर हों. और बेहतर करने के लिए हमारे यहाँ ऐसे वजीर-ए-आजम की जरुरत है, जो फिजूल की शर्ते न रखे. और आपसे बातचीत करें, जैसा कि डॉक्टर मनमोहन सिंह ने किया. आपके यहाँ यही चीज हो, जब बातचीत होनी चाहिए. तो आप आगे बढिये, बातचीत करवाइए. जैसा कि परवेज मुसर्रफ साहब कर रहे थे. हमारे सामने एक मिसाल है. मुसर्रफ जो कि फौज के आदमी थे और हमारे डॉक्टर मनमोहन सिंह थे, तब 3 साल बातचीत जारी रही.
पत्रकार: मणिशंकर साहब, अब आप जिस जगह पर आकर खड़े हो गए हैं, इससे निकलने का क्या तरिका होगा?
मणिशंकर: हमें ले आइये, इनको हटाइये. और कोई तरिका नहीं है.
पत्रकार: अच्छा…? इनको तो आप ही हटा सकते हैं…
मणिशंकर: हाँ हम हटाएंगे, लेकिन तब तक आपको इन्तजार करना होगा.

बातचीत का ये वीडियो वायरल होने के बाद बहुत बवाल मचा था. कांग्रेस ने तब भी बड़ी चालाकी से मणिशंकर अय्यर के देशद्रोही बयान से खुद को अलग कर लिया था. उनकी पाकिस्तान यात्रा को निजी यात्रा और वहां पर व्यक्त किये गए उनके देश और लोकतंत्र विरोधी विचारों को उनका निजी विचार बताया था. मणिशंकर अय्यर खुद को लेखक, बुद्धिजीवी और सेक्युलर नेता मानते हैं, लेकिन जनता के भारी बहुमत से चुनी हुई सरकार को और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को नहीं मानते हैं. वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कितनी इज्जत देते हैं, ज़रा उनके पिछले कुछ सालों में दिए गए विवादित बयानों पर गौर कीजिये. उन्होंने एक कार्यक्रम में महिला कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा था कि अगर आपलोग साथ दें तो मोदी को समुद्र तक पहुंचा दिया जाएगा. मणिशंकर अय्यर ने 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले भी नरेंद्र मोदी पर विवादित बयान दिया था कि नरेन्द्र मोदी 21 वीं सदी में कभी भी देश के प्रधानमंत्री नहीं बन सकते हैं, लेकिन अगर वो चाय बेचना चाहते है तो हम इसका इंतजाम करवा सकते है. महान और चतुर राजनीतिज्ञ मोदी ने उनके इसी चाय वाले बयान को अपना चुनावी हथियार बनाया, जिसका परिणाम यह हुआ कि मोदी को समुद्र में फेंकने की बात करने वाली कांग्रेस पार्टी खुद ही हार के समुद्र में डूब गयी और नरेंद्र मोदी एक महान देश के बेहद लोकप्रिय प्रधानमंत्री बन गए. अंत में फिर वही प्रश्न उठता है कि मणिशंकर अय्यर की पाकिस्तान से लेकर कश्मीर तक की यात्रा आखिर किसके लिए हुई? जयहिंद.

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