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ईवीएम हैकिंग चैलेंज: झूठ और फरेब की राजनीति का अंत हुआ- जागरण जंक्शन फोरम

सद्गुरुजी
सद्गुरुजी
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भारतीच चुनाव आयोग ने 3 जून को सुबह 10 बजे से 2 बजे के बीच राष्ट्रीय और प्रदेश स्तर की 56 राजनीतिक पार्टियों को ईवीएम हैकिंग का चैलेंज दिया था, लेकिन केवल दो पार्टियां, एनसीपी और सीपीआई (एम) इस चैलेंज को स्वीकार कीं. मजेदार बात यह रही कि शनिवार को दिल्ली स्थित चुनाव आयोग के दफ्तर में ये दोनों पार्टियां पहुंचीं जरूर, मगर इन दोनों पार्टियों ने वहाँ पहुंचकर चैलेंज में हिस्सा नहीं लिया. वो केवल यही जानना चाहती थीं कि ईवीएम मशीन कैसे काम करती है. चुनाव आयोग का कहना है कि हैकिंग चैलेंज में शामिल होने वाली दोनों पार्टियां सिर्फ ईवीएम के तकनीकी पहलुओं को समझना चाहती थीं, जिसकी जानकारी उन्हें दी गई. इन दोनों राजनीतिक पार्टियों के प्रतिनिधियों ने ईवीएम की सुरक्षा सील देखी. ईवीएम में वीवीपेट से जुड़ी प्रक्रिया के बारे में भी उन्हें जानकारी दी गई. इन राजनीतिक पार्टियों को पंजाब, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में प्रयोग की गई 4 वोटिंग मशीनें देखने के लिए दी गईं. इस चैलेंज में मशीन का कोई भी बटन दबाने और मशीन को खोले बिना बाहर से देखने व चेक करने की पूरी इजाजत थी.

दोनों राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि मीडिया के सामने बीते चुनावों में प्रयोग की गई इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों के बटन दबाकर चेक किये, जो बिलकुल ठीक काम कर रही थीं. चुनाव आयोग ने दावा किया है कि ईवीएम में हैकिंग का दावा पूरी तरह से झूठा है और यह कदापि संभव नहीं है. एक फर्जी मशीन के जरिये दिल्ली की सदन में ईवीएम हैकिंग का ड्रामा करने वाली और उसे बाएं हाथ का खेल बताने वाली आम आदमी पार्टी और यूपी में भाजपा की भारी जीत से बौखलाई बसपा चुनाव आयोग के इस चैलेंज में शामिल नहीं हुईं, जबकि इन दोनों ने ही बीते विधानसभा चुनावों में ईवीएम के प्रयोग और छेड़छाड़ पर सबसे ज्यादा होहल्ला मचाया था. चुनाव आयोग की निष्पक्षता और ईवीएम पर सवाल उठने के बाद आयोग ने राजनैतिक दलों को अपनी इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों से छेड़छाड़ साबित करने के लिए 3 जून को खुली चुनौती दी थी. आम आदमी पार्टी चुनाव आयोग के हैकिंग चैलेंज को एक ‘ढकोसला’ करार देते हुए एक समानांतर हैकिंग चैलेंज आयोजित करने की घोषणा की है, जिसमे सभी पार्टियों, विशेषज्ञों और अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों को हिस्सा लेने का मौका देगी. यह आयोजन भी एक ड्रामा भर ही है.

चुनाव आयोग के ईवीएम हैकिंग का चैलेंज आयोजित होने के बाद अब केजरीवाल के समानांतर हैकिंग चैलेंज के ड्रामे पर पाबंदी लगनी चाहिए और यदि वो पाबंदी लागंने के बावजूद भी चुनाव आयोग की स्वतंत्रता, निष्पक्षता और सम्मान को ठेस पहुंचाते हुए जबरदस्ती ऐसा कोई आयोजन करते हैं तो उनपर न सिर्फ देशद्रोह का मुकदमा चलना चाहिए, बल्कि उनकी पार्टी की मान्यता भी रद्द देनी चाहिए. केजरीवाल की राजनीतिक प्राण रक्षा अब ईवीएम नहीं कर पाएगी. उनकी झूठ फरेब की राजनीति अब ईवीएम और चुनाव आयोग को कोसने के बल पर नहीं चलेगी, क्योंकि शुक्रवार को उत्तराखंड हाई कोर्ट ने इस बारे में एक बहुत महत्वपूर्ण और सराहनीय निर्णय लिया है. हाई कोर्ट के जस्टिस शरद कुमार शर्मा और राजीव शर्मा की बेंच ने स्पष्ट रूप से कहा है, “सभी बड़ी और क्षेत्रीय पार्टियां, एनजीओ, व्यक्ति हाल ही में हुए चुनावों के संदर्भ में ईवीएम के बारे आलोचना नहीं कर सकते हैं. चुनाव आयोग ने सफलतापूर्वक स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों का आयोजन कराया है. हम राजनीतिक पार्टियों को एक संवैधानिक संस्था की छवि बिगाड़ने की इजाजत नहीं दे सकते हैं.” चुनाव आयोग के सम्मान की रक्षा करना कोर्ट का कर्तव्य है. ईवीएम के इस्तेमाल की आलोचना करने पर भी रोक लगनी जरुरी थी. जयहिंद.

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