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किसान आंदोलन: कर्जमाफी की बजाय सरकार किसानों की आर्थिक स्थिति मजबूत करे

देश के कई राज्यों में जारी किसान आंदोलन महाराष्ट्र में कर्ज माफी और दूध के दाम बढ़ाने जैसे मुद्दों को लेकर 1 जून को शुरू हुआ था. किसान आंदोलन के दौरान वहां अब तक 7 लोगों की मौत हो चुकी है. धीरे धीरे यह आंदोलन कुछ और राज्यों में शुरू हो गया. मध्य प्रदेश के किसानों ने भी दूध खरीदी के दाम बढ़ाने, फसल पर आए खर्च का डेढ़ गुना दाम देने, कर्ज माफ करने, किसानों पर दर्ज मुकदमे वापस लेने और जमीन के बदले मुआवजा लेने के लिए कोर्ट जाने का अधिकार देने जैसी मांगों को लेकर अपना आंदोलन शुरू किया. सरकार किसानों के आंदोलन ओर मांगों की ओर शुरू में जब कोई ध्यान नहीं दी तो यह आंदोलन बीते शनिवार को इंदौर में हिंसक रूप धारण कर लिया. बढ़ती हुई हिंसा तब और भयावह रूप ले ली, जब मंगलवार को मंदसौर और पिपलियामंडी के बीच बही पार्श्वनाथ फोरलेन पर एक हजार से ज्यादा किसान सड़क पर उतर आये. उन्होंने चक्का जाम करने की कोशिश की, पुलिस ने जब इसका विरोध किया तो वे लोग पथराव करना शुरू कर दिए. पत्थरबाजों के बीच घिर जाने पर सीआरपीएफ और पुलिस ने फायरिंग शुरू कर दी, जिसमे पांच किसान और एक छात्र सहित कुल 6 लोगों की मौत हो गई. इस घटना के बाद मध्य प्रदेश में जारी किसान आंदोलन और भी ज्यादा हिंसक हो गया. आंदोलनकारियों ने 13 बसों समेत 150 गाड़ियों में आग लगा दी ओर एक थाना भी फूंक दिया. भोपाल से इंदाैर जा रही एक चार्टर्ड बस को उपद्रवियों ने सोनकच्छ में रोक दिया.

सबसे पहले बस पर पत्थरबाजी कर उसके शीशे तोड़ दिए ओर फिर उसमे उसमें आग लगा दी. सबसे दुखद बात यह है कि जब बस में तोड़फोड़ की जा रही थी, तब बस के अंदर बैठे पुरुष, महिलाएं और बच्चे सहायता के लिए तथा अपनी जान बचाने के लिए चिखचिल्ला रहे थे, लेकिन उपद्रवी उनकी चीख पुकार को अनसुना कर बस में तोड़फोड़ करते रहे. पत्थरबाजी के बीच किसी तरह से यात्रियों ने बस से उतरकर आसपास के खेतों व मंदिरों में छिपकर अपनी जान बचाई. मंदसौर जिले के बरखेड़ा पंत में फायरिंग में मारे गए छात्र अभिषेक का शव रोड पर रखकर चक्का जाम कर रहे किसानों को समझाने के लिए जब कलेक्टर स्वतंत्र कुमार सिंह वहां पहुंचे तो कुछ लोगों ने उनसे बदतमीजी करते हुए उनके कपड़े फाड़ दिए. यही नहीं, बल्कि एक व्यक्ति ने कलेक्टर को पीछे से सिर पर कई बार चांटा भी मारा. ये सब देखकर बहुत दुःख हुआ. कानून तोड़ने वाले सभी अराजक तत्वों के खिलाफ कठोर कार्यवाही होनी चाहिए. आंदोलनकारियों में बहुत से मुंह ढके नकाबपोश भी दिखे. ये लोग कौन थे, इसकी जांच होनी चाहिए. किसानों के हिंसक आंदोलन को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से कांग्रेस कैसे भड़का रही थी. इस बात की भी जांच होनी चाहिए. राहुल गांधी हिंसक किसान आंदोलन की आड़ में अपनी राजनीतिक रोटी सेंकने के लिए बुधवार को मंदसौर जाने वाले थे, लेकिन नहीं गए. भाजपा और शिवराज सिंह चौहान की सरकार को घेरने की कोशिश में लगा विपक्ष अब एक साथ मंदसौर जाने की योजना बना रहा है.

मध्य प्रदेश की सरकार किसानों के लिए कुछ नहीं कर रही है, ऐसा भी नहीं है. केंद्र सरकार की सारी योजनाएं वो अपने यहाँ चला रही है, जैसे- फसल बीमा योजना, स्वेल कार्ड योजना और नीम कोटेड यूरिया का बिना किसी दिक्कत के वितरण आदि. मध्य प्रदेश की सरकार किसानों के हित के लिए घाटा सहकर भी अब किसानों से आठ रुपए प्रति किलो प्याज खरीद कर उसे खुले बाजार में दो रुपए प्रति किलो बेचने जा रही है. आन्दोलन करने वाले किसानों से वो वार्ता करने को भी तैयार है. जेडीयू नेता शरद यादव कह रहे हैं कि हमने इस तरह का आंदोलन पहले कभी नहीं देखा. मध्य प्रदेश सरकार 6 मौतों का आंकड़ा दे रही है, लेकिन हमें लगता है कि मौतें ज्यादा हुई हैं. हिंसक आंदोलन में घी डालने की कोशिश करने वाले, शिवराज सिंह चौहान का इस्तीफा मांगने वाले और लाशों पर राजनीति करने वाले भ्रष्ट नेता ये भूल रहे हैं कि 1998 में जब मध्य प्रदेश के बैतूल जिले के मुलताई में किसानों ने हिंसक आंदोलन किया था, तब 12 जनवरी 1998 को किसानों के हिंसक प्रदर्शन के दौरान 18 लोगों की मौत हुई थी. उस समय राज्य में कांग्रेस की सरकार थी. कांग्रेस को यह भी नहीं भूलना चाहिए कि उसके शासनकाल में देशभर में लाखों किसान आत्महत्या किये. उसने किसानों के लिए क्या किया. कुछ किया होता तो आज ये स्थिति नहीं होती. किसान क्या चाहते हैं, आइये इस पर ज़रा गौर करें. सबसे पहले तो किसान यह चाहते हैं कि स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू किया जाए.

साल 2007 में ‘एम एस स्वामीनाथन किसान आयोग’ ने सिफारिश की थी कि ‘फ़सल उत्पादन मूल्य से पचास प्रतिशत ज़्यादा दाम किसानों को मिले.’ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस अहम सिफ़ारिश को लागू करने का वादा किया था. उन्हें अपने वादे के मुताबिक इसे अब लागू करना चाहिए. केंद्र की सत्ता संभाले मोदी को तीन साल हो गए हैं. इस मामले में वो क्यों देर कर रहे हैं, यह बात किसान तो अब उनसे पूछेंगे ही. किसानों की अन्य प्रमुख मांगों में पूर्ण कर्ज माफ़ी, फसलों का उचित समर्थन मूल्य, मंडी का रेट निर्धारण और किसानों को पेंशन देने की मांग मुख्य रूप से शामिल है. उत्तर प्रदेश में सरकार बनते ही जब योगी आदित्यनाथ ने किसानों का ऋण माफ़ करने की घोषणा की थी, तभी यह तय हो गया था इसका असर अन्य राज्यों पर भी जरूर पडेगा. इसमें सारा दोष नेताओं का है जो चुनाव के समय वोट बटोरने के लिए बिना सोचे समझे यह घोषणा करते हैं वो सत्ता में आते ही किसानों के सारे कर्जे माफ़ कर देंगे. वो ये भी सोचने की जरूरत नहीं समझते हैं कि किसानों का कर्ज माफ़ करने के लिए पैसा आएगा कहाँ से और एक बार कर्ज माफ़ी दे भी दी तो कुछ समय बाद पुन: किसान कर्जमाफी की मांग नहीं करेंगे, इसकी क्या गारंटी है? कर्जमाफी की बजाय ज्यादा अच्छा तो ये है कि सरकार किसानों की आर्थिक स्थिति मजबूत करे. उनकी फसल उचित मूल्य पर ख़रीदे और उसे उन राज्यों में ले जाकर बेंचे, जहाँ पर उसकी बहुत ज्यादा मांग है. इससे देशभर के लोंगो को उचित मूल्य पर सही सामान मिलेगा और मंहगाई भी नियंत्रित होगी.