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देशद्रोहियों के खिलाफ कार्यवाही: मोदी सरकार अब तक इसमें असफल ही साबित हुई

सद्गुरुजी
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दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के पुत्र और वरिष्ठ कांग्रेसी नेता संदीप दीक्षित ने 11 जून को भारत के आर्मी प्रमुख जनरल बिपिन रावत पर बेहद आपत्तिजनक और देशद्रोहपूर्ण बयानबाजी करते हुए भारत की प्रमुख न्यूज विडियो एजेंसी एएनआई यानी एशियन न्यूज इंटरनेशनल से कहा था, ”पाकिस्तान उलजुलूल हरकतें और बयानबाजी करता है. ख़राब तब लगता है कि जब हमारे थल सेनाध्यक्ष सड़क के गुंडे की तरह बयान देते हैं. पाकिस्तान ऐसा करता है तो इसमें कोई हैरान करने वाली बात नहीं है.” संदीप दीक्षित के इस विवादित बयान की जब भाजपा नेताओं ने कड़ी निंदा करनी शुरू कर दी और केंद्रीय गृह राज्य मंत्री किेरेण रिजिजू ने उस पर कड़ा ऐतराज जताते हुए ट्वीट कर कहा, ”कांग्रेस पार्टी के साथ समस्या क्या है? उसने भारतीय आर्मी चीफ़ को सड़क का गुंडा कहने की हिम्मत कैसे की?” विवाद बढ़ता देख 12 जून को संदीप दीक्षित ने सेना प्रमुख खिलाफ दिए गए अपने विवादित और देशद्रोहपूर्ण बयान के लिए माफ़ी मांगी. इस गंभीर मामले पर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी चुप रहीं. संदीप दीक्षित के बयान की जब चौतरफा निंदा होने लगी तब चौबीस घंटे बाद कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की नींद टूटी. कांग्रेसी नेताओं के ऐसे बयान पार्टी को और गहरे रसातल में पहुंचा देंगे, इसका अहसास होते ही उन्होंने संदीप दीक्षित के बयान की निंदा करते हुए उसे गलत बताया.

हालांकि ये वही राहुल गांधी हैं, जिन्होंने पिछले साल पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में सेना के सफल सर्जिकल स्ट्राइक के बाद कहा था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जवानों के खून के पीछे छिप रहे हैं और उनके खून की दलाली कर रहे हैं. देश के चुने हुए प्रधानमंत्री और भारतीय सेना का राहुल गांधी ने जिस तरह से घोर अपमान किया था, उसकी चहुतरफा कड़ी निंदा हुई थी. आम आदमी पार्टी के नेता और कवि कुमार विश्वास ने तो इस बयान को लेकर राहुल गांधी की खिंचाई करते हुए ट्विटर पर यहाँ तक लिख दिया था कि, ‘मैंने 4 साल पहले जो नाम पप्पू दिया था, वो सही साबित हो रहा है.’ भाजपा ने राहुल गांधी के इस देशद्रोही बयान का खूब राजनीतिक फायदा उठाया, लेकिन उनके खिलाफ कोई कानूनी कार्यवाही नहीं की. पिछले कुछ दिनों में सेना प्रमुख के खिलाफ बयान देने वाले कुछ और लोग भी हैं. जनरल रावत ने 28 मई को एक साक्षात्कार में कहा था कि जम्मू कश्मीर में जो ‘घृणित’ युद्ध चल रहा है उसके लिए सेना को नए तरीके इस्तेमाल करने होंगे. वह सैनिकों को पत्थरबाजों के हाथों मरने के लिए नहीं छोड़ सकते. पत्थरबाज यदि गोलियां चलाते तो उनका जवाब उसी तरीके से दिया जा सकता था.’ जनरल रावत के इस बयान का जब सेक्युलर नेता विरोध करने लगे तब केंद्र सरकार ने जनरल रावत के इस बयान का पुरजोर समर्थन करते हुए विरोधियों से पूछा कि अगर कोई सैनिकों पर पत्थर मारे तो क्या उन्हें चुपचाप खड़ा रहना चाहिए?

माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ‘माकपा’ के नेता मोहम्मद सलीम ने जनरल रावत के इस बयान की निंदा करते हुए एक टीवी चैनल पर कहा था, ‘मैं उनसे यह कहना चाहूंगा कि भारतीय सेना में प्रतिभा और क्षमता की कोई कमी नहीं है, फिर ये नए तरीके इजाद करने का क्या मसला है? मुझे जनरल रावत की इस बात से भारतीय समाज की क्षमता को समझने की उनकी सोच पर संदेह होता है.’ इसका अर्थ सरल भाषा में यही है कि जनरल रावत कश्मीरी समाज को ठीक से समझ नहीं पा रहे हैं और जो कुछ भी कर रहे हैं, वो नैतिक दृष्टि से एकदम गलत है. माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ‘माकपा’ के नेता मोहम्मद सलीम ने जनरल रावत के बयान को सेना में नैतिक मूल्यों का क्षरण माना था. आर्मी चीफ जनरल बिपिन रावत ने कश्मीर में कई लोंगो की जान बचाने के लिए एक व्यक्ति को मानव ढाल के तौर पर इस्तेमाल करने वाले मेजर नितिन गोगोई को सम्मानित किया, तब अपने को सेक्युलर बताने वाले कई दलों के नेताओं ने उनकी उनकी कड़ी निंदा की थी. आश्चर्य की बात है क़ि पत्थरबाज सैनिकों को पत्थर मारें तो वो नैतिक है और सेना पत्थरबाजों को सबक सिखाये तो वो अनैतिक है? हमारे देश के कुछ नेताओं की इसी देशद्रोही सोच का कश्मीर में फलफूल रहे आतंकवादी और इस विषबेल को खादपानी देकर भरपूर समर्थन देने वाला पाकिस्तान, दोनों खूब फायदा उठा रहे हैं.

कुछ रोज पहले सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत ने कहा था कि भारत आजकल ढाई मोर्चे पर युद्ध लड़ रहा है. इसका अर्थ यह है कि भारतीय सेना चीन और पाकिस्तान जैसे बाहरी खतरों के साथ आंतरिक खतरों से भी युद्ध लड़ रही है. आंतरिक खतरा केवल आतंकवादियों या नक्सलियों से ही नहीं है, बल्कि देशद्रोही बयान देने वाले नेताओं और बुद्धिजीवियों से भी है. इतिहासकार पार्था चटर्जी ने न्यूज पोर्टल ‘द् वायर’ के लिए 2 जून को लिखे गए अपने एक लेख में कश्मीर में मानव ढाल वाली घटना के संदर्भ में जनरल रावत की तुलना डायर से की थी. उन्होंने लिखा है कि कश्मीर ‘जनरल डायर मोमेंट’ से गुजर रहा है. वर्ष 1919 में जलियांवाला बाग हत्याकांड के पीछे ब्रिटिश सेना द्वारा दिए गए तर्क और कश्मीर में मानव ढाल वाली भारतीय सेना की कार्रवाई के बचाव में दिए गए तर्क में समानताएं हैं. मोदी सरकार के मंत्री पार्था चटर्जी की केवल निंदा भर किये, लेकिन उनके खिलाफ कोई कानूनी कार्यवाही नहीं किये. राष्ट्रवादी मोदी सरकार विकास के मुद्दे पर भले ही सफल हो, लेकिन आंतरिक सुरक्षा के मामले में, खासकर देश के भीतर विद्यमान देशद्रोहियों से निपटने में पूरी तरह से नाकाम रही है. भारतीय सेना और सेना प्रमुख का अपमान करने वालों को क़ानूनी कटघरे में खड़ा करने की बजाय वो केवल अपने राजनितिक फायदे के लिए उनकी मुंहजबानी निंदा भर करती रही है. इससे राष्ट्रवादी पार्टी बीजेपी की राष्ट्रीय सुरक्षा से जुडी नीतियों पर संदेह उत्पन्न होता है.

दुश्मन मुल्क पाकिस्तान से जुडी उसकी विदेश नीति भी अजीबोगरीब और हास्यास्पद है. पाकिस्तान कश्मीर में आये दिन आतंकी भेज रहा है, सीमा पर रोज हमारे सैनिकों पर हमले कर रहा है और भारत सरकार उसकी दानवता का परिचय मानवता से दे रही है. भारतीय जेलों में बंद 11 पाकिस्तानी कैदियों को भारत सरकार ने रिहा कर दिया है, जबकि पाकिस्तानी जेलों में बंद 132 भारतीयों को पाकिस्तान सरकार रिहा करने को तैयार नहीं है. यही नहीं बल्कि वो तो भारतीय नौसेना के पूर्व अधिकारी कुलभूषण जाधव को फर्जी तरीके से जासूस साबित कर फांसी की सजा देने पर तुली हुई है. बीजेपी ने राष्ट्रवाद के मुद्दे पर मुंहजबानी खूब ढोल पिटे हैं, लेकिन वास्तविक धरातल पर देशद्रोहियों के खिलाफ कार्यवाही के मामले में मोदी सरकार अपने तीन साल के कार्यकाल में अब तक तो जीरो ही साबित हुई है. उसने देशद्रोहपूर्ण बयान देने वाले नेताओं के खिलाफ कोई नानूनी कार्यवाही न कर यही साबित किया है कि ‘चोर-चोर मौसेरे भाई’ अर्थात सब नेता आपस में मिले हुए हैं. एक दूसरे को वो न सिर्फ कानूनी शिकंजे से बचाते हैं, बल्कि सत्ता किसी भी दल की हो, सब मौज करते हैं. केवल दिखावटी रूप से अपने राजनीतिक फायदे के लिए एक दूसरे की निंदा करते हैं. भारतीय लोकतंत्र की और यहाँ के राजनीतिक दलों की यही सबसे बड़ी कड़वी सच्चाई है.

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