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बेहद चिंताजनक मुद्दा: हमारे लोकतंत्र पर अब भीड़तंत्र हावी होती जा रही है-जंक्शन फोरम

सद्गुरुजी
सद्गुरुजी
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सोमवार 3 जुलाई की रात को एक न्यूज चैनल पर सोशल मीडिया में वायरल हो रहा एक वीडियो दिखाया जा रहा था, जिसमे नजर आ रहा था कि रहा था झारखंड प्रान्त के दुमका में 8 साल की एक बच्ची से दुष्कर्म करने के बाद उसकी ह्त्या करने के आरोपी एक 30 वर्षीय युवक को आदिवासी महिलाअों ने लाठी डंडों से पीट-पीट कर कैसे बेहद क्रूर और दर्दनाक ढंग से मार डाला. मीडिया में छपी एक खबर के अनुसार दुमका जिले के रामगढ़ थाना क्षेत्र के एक गांव में आठ साल की एक बच्ची अपने मामा के घर शादी समारोह में आयी थी. मंगलवार 27 जून को देर रात शादी समारोह से बच्ची गायब हो गयी थी. शादी समारोह में मौजूद कुछ बच्चों ने बच्ची को एक अज्ञात युवक द्वारा उठाकर ले जाते हुए देखा था. जब बच्ची काफी ढूंढने पर भी नहीं मिली तो ग्रामीणों ने बुधवार को रात 9 बजे सामूहिक बैठक बुलायी, जिसमे आरोपी शामिल नहीं हुआ था. इसी बात को लेकर गांववालों को आरोपी युवक पर शक हुआ. ये शक और पुख्ता हो गया जब आरोपी की पत्नी ने ग्रामीणों को बताया कि जब मंगलवार को बच्ची गायब हुई थी, उस रात उसका पति यानि आरोपी युवक घर पर नहीं था.

जब ग्रामीणों ने उसे पेड़ में बांधकर पीटते हुए सख्ती से पूछताछ की तो उसने बच्ची के साथ दुष्कर्म कर उसकी ह्त्या करने की बात कुबूली और बताया कि बच्ची का शव नदी किनारे पड़ा है. जब उसकी घिनौनी और बेहद क्रूर करतूत के बारे में गाँव की महिलाओं को मालूम हुआ तो गुस्से से आग-बबूला होकर आदिवासी महिलाअों ने लाठी-डंडों से पीट-पीट कर उसकी हत्या कर दी. वीडियो देखने में बहुत खराब लग रहा था. रस्सी से बंधा एक युवक जमीन पर गिरा पड़ा था. एक महिला रस्सी को पकड़ के खिंच रही थी और अन्य कई महिलाएं युवक को लाठी-डंडों से लगातार पीटे जा रही थीं. मेरे एक रिश्तेदार भी मेरे साथ बैठकर टीवी देख रहे थे. वो कहने लगे, ‘ये महिलाएं बिल्कुल ठीक काम कर रही हैं. बलात्कारियों को ऐसी ही सजा देनी चाहिए.’ मैंने उनकी बात का कोई जबाब नहीं देते हुए टीवी बंद कर दिया. रात को देर तक मैं सोचता रहा कि लोग अब क्यों कानून हाथ में लेकर खुद ही आरोपियों को सजा देने लगे हैं? क्या लोगों का विश्वास अब सरकारी न्याय पर से उठ गया है? क्या हमारा लोकतंत्र इतना खोखला और कमजोर हो चुका है कि उसपर अब भीड़तंत्र हावी होती जा रही है? यह बेहद गंभीर और चिंताजनक मुद्दा है कि हमारे लोकतंत्र पर अब भीड़तंत्र हावी होती जा रही है.

ये स्थिति किसी एक राज्य में ही नहीं, बल्कि पूरे देशभर में है. बिहार, झारखंड, राजस्थान और नागालैंड में पिछले एक दशक में भीड़ ने अनेक आरोपियों को सरेआम नृशंस तरीके से पीट-पीटकर मौत के घाट उतार दिया. कई बार तो पुलिस मौके पर होते हुए भी मूकदर्शक बनकर देखती रही. भीड़ को कानून हाथ में लेने से रोकने की उसकी हिम्मत तक नहीं हुई. पिछले कुछ सालों में गोमांस खाने के आरोप पर भीड़ द्वारा और गोवध हेतु गाय ले जाने के आरोप पर गोरक्षकों के द्वारा सरेआम कई आरोपियों की हत्याएं हुई हैं. भीड़तंत्र द्वारा आरोपियों को सजा देना न केवल निंदनीय है, बल्कि हमारे लोकतंत्र और शासन व्यवस्था के लिए भी बहुत घातक है. सबसे बड़ी चिंता मुझे इस बात की है कि आरोपियों को लोग न सिर्फ तालिबानी और नक्सली ढंग से अपने मनमुताबिक दर्दनाक सजा दे रहे हैं, बल्कि उसका वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर भी अपलोड कर रहे हैं. इस तरह के वीडियो बहुत जल्दी वायरल हो रहे हैं और बड़ी तादात में लोंगो द्वारा देंखे जा रहे हैं. उन्हें काफी हद तक जनसमर्थन भी मिल रहा है. सोशल मीडिया पर वायरल होने के कुछ रोज बाद न्यूज चैनलों पर भी ऐसे वीडियो बार-बार दिखाए जा रहे हैं.

इस तरह के वीडियो न सिर्फ हमारे लोकतंत्र, बल्कि कानून व्यवस्था को भी खुली चुनौती दे रहे हैं. राज्य सरकारों को अब जागना चाहिए और भीड़तंत्र द्वारा आरोपियों को सजा देने की दिनोदिन बढ़ती तालिबानी और नक्सली प्रवृत्ति पर रोक लगानी चाहिए. भीड़तंत्र द्वारा आरोपियों को दी जा रही सजा का वीडियो बनाकर और उसे सोशल मीडिया पर अपलोड करने पर भी पूर्णतः रोक लगनी चाहिए. हमारे लोकतंत्र के लिए यह बहुत चिंता की बात है कि आम जनता का आक्रोश अब हमारे सिस्टम यानि शासन व्यवस्था के प्रति दिनोदिन बढ़ता ही जा रहा है. जो आरोपी बाहुबली हैं, जनता उनका तो कुछ बिगाड़ नहीं पाती हैं, किन्तु अपने बीच रहने वाले गरीब आरोपियों को मनमानी सजाएं दे रही है. उसका कानून व्यवस्था पर से विश्वास दिनोंदिन कम हो रहा है. वो सोचती है कि पता नहीं आरोपी को कब सजा मिलेगी. सजा मिलेगी या नही मिलेगी, यह भी कुछ पता नहीं. आरोपी कहीं पैसा देकर न छूट जाए. दरअसल यही सब हमारे सिस्टम की खामियां हैं, जिन्हे दूर करने की जरुरत है. पीड़ित को जल्दी और संतोषजनक न्याय मिलना चाहिए और अपराधियों को देश के कानून के अनुसार शीघ्र से शीघ्र और सख्त से सख्त सजा मिलनी चाहिए.

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