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26 जुलाई को नीतीश कुमार ने बिहार में आरजेडी-जेडीयू-कांग्रेस की महागठबंधन सरकार के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़ा दिया. उसके अगले दिन 27 जुलाई को बीजेपी (NDA) की मदद से छठी बार फिर से राज्य के मुख्यमंत्री बन गए. नीतीश कुमार का कहना है कि उन्होंने अपनी अंतरात्मा की आवाज़ पर महागठबंधन का साथ छोड़ा है. भ्रष्टाचार और परिवारवाद के आरोपों से घिरे लालू परिवार की ओर इशारा करते हुए उन्होंने कहा कि साम्प्रदायिकता से भी ज्यादा बड़ा और गंभीर मुद्दा भ्रष्टाचार का है. उन्होंने लालू परिवार द्वारा अधिक से अधिक सम्पत्ति बटोरने के लालच पर व्यंग्य कसते हुए कहा कि कफ़न में कोई जेब नहीं होती.
नीतीश कुमार की यू-टर्न वाली राजनीति से तिलमिलाए लालू यादव ने उन पर वार करते हुए कहा कि नीतीश ने हमें धोखा दिया है. लालू ने नीतीश कुमार को पलटूराम और सत्ता का लालची तक कह दिया. नीतीश और लालू परिवार के बीच 26 जुलाई से जारी आरोप-प्रत्यारोप का दौर अभी तक थमने का नाम ही नहीं ले रहा है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अंतरात्मा की आवाज़ को लालू और तेजस्वी न सिर्फ लगातार ललकार रहे हैं, बल्कि चार साल बाद फिर से उनके NDA में जाने पर कई तरह के सवाल भी खड़े कर रहे हैं.
तेजस्वी यादव, नीतीश कुमार को याद दिला रहे हैं कि प्रधानमंत्रीनरेंद्र मोदी जी ने बिहार में चुनाव के समय कहा था कि नीतीश कुमार जी का DNA ही ख़राब है. इस विषय पर अब मोदी जी की राय कैसे बदल गई? तेजस्वी यादवइतने भोले क्यों बन रहे हैं? अपने-अपने फायदे-नुकसान वाली राजनीतिक दृष्टिसे विचारें, तो बड़ी सीधी सी बात है कि नीतीश कुमार ने जब NDA का साथ छोड़ा, तो लालू परिवार व कांग्रेस की राजनीतिक संगति में आकर उनका DNA खराब हो गया. अब चार साल बाद जब NDA में वापस आ गए, तो उनका DNA सही हो गया.
कई राजनीतिक दल और नेता आज के राजनीतिक दौर में NDA की तरफ भाग रहे हैं. मानो उसकी संगति राजनीतिक सफलता पाने की एक गारंटी बन चुकी हो. आम जनता केदिलों पर मोदी की जादूगरी और तमाम विपक्षी दलों पर अमित शाह की अदभुत कूटनीतिक विजय यात्रा जारी है. नीतीश पर प्रतिदिन जारी लालू और उनके बेटेका प्रहार उनकी गहरी हताशा औरनिराशा को जगजाहिर करता है. 2019 के आमचुनावों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ विपक्षी एकजुटता की जोलालटेन लालू यादव जलाने में जुटे हुए थे, उसको जलने से पहले ही नीतीशकुमार ने बुझा दिया है.
लालू यादव ने स्पष्ट रूप से इस बात को कह ही दिया कि नीतीश ने महागठबंधन की भ्रूण हत्या की है. उस भ्रूण की ह्त्या, जिससे लालू यादव और कांग्रेस केंद्र की सत्ता हथियाने का ख्वाब देख रहे थे. एक तरफ जहाँ नीतीश कुमार ने नैतिकता की दृष्टि से NDA में वापस आने के अपने कदम को सही माना है, तो वहीं दूसरी तरफ तेजस्वी यादव ने उनकी नैतिकता और अंतरात्मा की आवाज़ पर तीख़ा वार करते हुए कहा है कि नीतीश कुमार किस नैतिकता की बात करते हैं? बिहार की जनता यह जानना चाहती है कि किस नैतिकता के आधार पर पूर्व सरकार को गिराया गया? तेजस्वी यादव यहाँ तक कह गए कि नीतीश कुमार अपनी सहूलियत के मुताबिक अपनी अंतरात्मा को जगाते हैं.
यहाँ पर सवाल यह उठता है कि उन्हें भी मौका मिला था, वे अपनी अंतरात्मा को क्यों नहीं जगा पाए? बिहार की सत्ता और उपमुख्यमंत्री की कुर्सी हाथ से जाने के बाद तेजस्वी यादव की छटपटाहट आम जनता की समझ में आ रही है. गुस्से में वे नीतीश कुमार पर अंतरात्मा की आवाज ठीक से नहीं सुनने का आरोप लगा रहे हैं, जबकि यदि वे अपनी अंतरात्मा की आवाज सुन उपमुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिए होते, तो शायद नीतीश कुमार को महागठबंधन छोड़ने की जरूरत ही नहीं पड़ती.
रही बात नीतीश कुमार की, तो उन्होंने अपनी अंतरात्मा की आवाज पर ही 1999 में रेल मंत्री के पद से इस्तीफा दिया था, जब एक ट्रेन हादसा हुआ था.लोकसभा चुनाव में जेडीयू की जब करारी हार हुई थी, तब भी उसकी नैतिकजिम्मेदारी लेते हुए नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था.नरेंद्र मोदी के एनडीए के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में चुनेजाने के बाद नीतीश कुमार ने NDA का साथ छोड़ दिया था, लेकिन उनकीप्रधानमंत्री मोदी से मुलाक़ात होती रही. पिछले तीन साल में उन्होंनेनरेंद्र मोदी की काबिलियत को बेहतर ढंग से समझा. यही वजह है कि उन्होंनेफिर से NDA में जाने का फैसला किया.
नीतीश कुमार एक अनुभवी राजनीतिज्ञ हैं.उन्हें भलीभांति यह समझ में आ गया कि 2019 में पीएम पद की रेस वो कमजोरविपक्षी दलों के सहारे नहीं जीत पाएंगे और चारा व लारा घोटाले में घिरेलालू परिवार की संगति उनकी साफ-सुथरी इमेज को भी खराब करेगी. तेजस्वी यादवने नीतीश को अपना अभिभावक, बॉस और दोस्त माना, लेकिन उनसे कुर्सी काबलिदान करना नहीं सीखा, जो कुछ समय बाद सत्ता पर फिर से भारी बहुमत सेकाबिज करा देती है. इस मामले में तेजस्वी यादव बहुत अनाड़ी साबित हुए.
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