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अमर गीतकार हेमंत कुमार: आपको हमारी कसम लौट आइये

सद्गुरुजी
सद्गुरुजी
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बेक़रार करके हमें यूँ न जाइये
आपको हमारी कसम लौट आइये…
देखिये गुलाब की वो डालियाँ
बढ़के चूम ले न आप के क़दम
खोए-खोए भँवरे भी हैं बाग़ में
कोई आपको बना न ले सनम
बहकी बहकी नज़रों से खुद को बचाइये
आपको हमारी कसम लौट आइये
बेक़रार करके हमें यूँ न जाइये…


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नायक द्वारा नायिका को बेहद सलीके से और साहित्यिक ढंग से अपनी तरफ आकर्षित करने का यह बेहद सुन्दर और लोकप्रिय गीत है. फ़िल्म ‘बीस साल बाद’ का यह गीत आज सुबह के समय रेडियो पर सुनने को मिला तो सोचा क्यों न आज हेमंत कुमार पर कुछ लिखा जाए, जो हमें बेकरार करके 26 सितंबर 1989 को इस दुनिया से चले गए. कभी न भूलने वाली उनकी यादें और रेडियो पर अक्सर बजने वाले उनके गाए सदाबहार यादगार गीत हमेशा उनकी याद दिलाते रहेंगे. हेमंत कुमार को सदाबहार यादगार गीतों का शहंशाह कहा जाए तो कोई गलत बात नहीं होगी. जीवन में शान्ति और सुकून पाने के लिए करोड़ों लोग उनके गीत सुनते हैं.


जीवन में मनोरंजन की क्या अहमियत है, यह गीत-संगीत प्रेमी हिन्दुस्तानियों को समझाने की जरूरत नहीं है. मुझे याद है कि वर्ष 2016 में केंद्रीय सड़क परिवहन, राजमार्ग और जहाजरानी मंत्री नितिन गडकरी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिंता और तनाव कम करने के लिए संगीत (गीत-गजल आदि) सुनने की सलाह दी थी. मोदीजी की गंभीरता देश की समस्याओं और विकास को लेकर बहुत ज्यादा है और वो 24 घंटे में से लगभग बीस घंटे इसी चिंता और चिंतन में डूबे रहते हैं. प्रधानमंत्रीजी को हेमंत कुमार के गीत सुनने चाहिए. हेमंत कुमार का गाया हुआ फिल्म ‘अनारकली’ का यह गीत देश के शासकों को लाजबाब संदेश देता है-


ज़िंदगी प्यार की दो चार घड़ी होती है
चाहे थोड़ी भी हो ये उम्र बड़ी होती है
ज़िंदगी प्यार की दो चार घड़ी होती है…
ताज या तख्त या दौलत हो ज़माने भर की
कौन सी चीज़ मुहब्बत से बड़ी होती है
ज़िंदगी प्यार की दो चार घड़ी होती है
चाहे थोड़ी भी हो ये उम्र बड़ी होती है
ज़िंदगी प्यार की दो चार घड़ी होती है…



हेमंत कुमार का पूरा नाम हेमंत कुमार मुखोपाध्याय था. उनका जन्म 16 जून,1920 को वाराणसी में हुआ, लेकिन शिक्षा-दीक्षा कोलकाता में हुई. वो इंजीनियरिंग की पढ़ाई बीच में ही छोड़ साहित्य और संगीत के क्षेत्र में कॅरियर बनाने में जुट गए. किस्मत के निराले खेल देखिये कि जिसे बाद में ईश्वर की आवाज कहा गया, उस महान गायक को उसके जवानी के दिनों में तमाम रेकॉर्ड कम्पनियों द्वारा ऑडिशन टेस्ट में फेल कर दिया गया और उसकी आवाज को गायन के लिए उपयुक्त नहीं माना गया. हेमंत कुमार हिम्मत नहीं हारे, वो प्रयास करते रहे. अन्तोगत्वा कोलम्बिया म्यूजिक कम्पनी ने हेमन्त कुमार से रवीन्द्रनाथ टैगोर के लिखे गीत गवाए और उसे रिकॉर्ड करके बिक्री के लिए बाजार में उतारा.


हेमंत कुमार को इसमें सफलता मिली और वे संगीत की दुनिया में लोकप्रिय होते चले गए. उन्हें हिन्दी फ़िल्म ‘इरादा’ (1944) में पहली बार गाने का मौका मिला. संगीतकार के रूप में फ़िल्म ‘आनंदमठ’ (1952) से उन्हें पहचान और प्रसिद्धि मिली. हेमंत कुमार के गाये फिल्म ‘नागिन’, ‘दुर्गेशनन्दिनी’, ‘ताज’, ‘साहब बीबी और ग़ुलाम’, ‘बीस साल बाद’, ‘बिन बादल बरसात’, ‘कोहरा’, ‘मिस मेरी’, ‘अनुपमा’ और ‘ख़ामोशी’ के गीत हमेशा के लिए सदाबहार और यादगार गीत बन गए. अपने संगीत सफर की शुरुआत में हेमंत कुमार रवीन्द्र संगीत से बेहद प्रभावित रहे. आगे चलकर प्रयोगधर्मी संगीतकार हेमंत कुमार पंकज मलिक, सलिल चौधरी और वामपंथी विचारधारा से बहुत प्रभावित रहे. फिल्म “आब-ऐ-हयात” के इस गीत में वामपंथी विचारधारा की एक झलक देखिये-


मैं गरीबों का दिल हूँ, वतन की जबां
बेकसों के लिये, प्यार का आसमां
मैं गरीबों का दिल हूँ, वतन की जबां…
कारवाँ ज़िंदगानी का रुकता नहीं
बादशाहों के आगे मैं झुकता नहीं
मैं तो झुकता नहीं
चाँद तारों से आगे मेरा आशियाँ
मैं गरीबों का दिल हूँ, वतन की जबां
बेकसों के लिये, प्यार का आसमां
मैं गरीबों का दिल हूँ, वतन की जबां…



हेमंत कुमार ने यूँ तो बहुत से कलाकारों के लिए पार्श्वगायन किया, लेकिन अभिनेता प्रदीप कुमार और विश्वजीत पर हेमन्तदा की आवाज़ बहुत फिट बैठती थी. उनके लिए हेमंत कुमार ने एक से बढ़कर एक यादगार पार्श्वगायन किया. फिल्‍म ‘नागिन’ सन 1954 में आई थी, जिसकी नायिका वैजयंतीमाला और नायक प्रदीप कुमार थे. इस फिल्म में लता मंगेशकर और हेमंत कुमार की आवाज में गाया हुआ यह गीत आज भी पंतग उड़ाने के साथ-साथ रोमांस करने का अद्भुद एहसास दिलाता है- “अरि छोड़ दे सजनिया, छोड़ दे पतंग मेरी छोड़ दे, ऐसे छोड़ूँ न बलमवा, नैनवा के डोर पहले जोड़ दे”. गम्भीर और गमगीन गायकी के साथ-साथ हेमंत कुमार ने कुछ इस तरह के हल्के-फुल्के गीत भी अनोखे अंदाज में गाए हैं-


ज़रा नज़रों से कह दो जी निशाना चूक न जाए
मज़ा जब है तुम्हारी हर अदा क़ातिल ही कहलाए
ज़रा नज़रों से कह दो जी…
ये भोलापन तुम्हारा ये शरारत और ये शोखी
ज़रूरत क्या तुम्हें तलवार की तीरों की खंजर की
नज़र भर के जिसे तुम देख लो वो खुद ही मर जाए
ज़रा नज़रों से कह दो जी निशाना चूक न जाए
मज़ा जब है तुम्हारी हर अदा क़ातिल ही कहलाए
ज़रा नज़रों से कह दो जी…


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फिल्म ‘बीस साल बाद’ में ये गीत विश्वजीत और वहीदा रहमान पर फिल्माया गया था, जिसे लोग आज तक नहीं भूले हैं. हेमंत कुमार के कुछ और ऐसे सदाबहार गीत हैं, जो सुबह के समय सुन लीजिये तो आप शाम तक गुनगुनाते रहेंगे. उदाहरण के लिए इन गीतों पर गौर कीजिये- ‘एक बार ज़रा फिर कह दो मुझे शर्मा के तुम दीवाना, ऐसी मीठी-मीठी बातें करके कहाँ सीखा है दिल का लुभाना’, ‘जब जाग उठे अरमान तो कैसे नींद आये, हो घर में हसीं मेहमां तो कैसे नींद आए’, ‘ज़िन्दगी कितनी ख़ूबसूरत है आइए आप की ज़रूरत है’ ये तीनों गीत फिल्म बिन बादल बरसात (1963) के हैं. फिल्म ‘मजबूर’ (1964) का ये गीत बहुत मशहूर हुआ था, जिसे हेमंत कुमार ने अपनी सुरीली आवाज दी है-


तुम्हें जो भी देख लेगा, किसी का ना हो सकेगा
परी हो बला हो क्या हो तुम
तुम्हें जो भी देख लेगा…
कहाँ ये दमकता मुखड़ा, कहाँ ऐसा नूर होगा
जिसने बनाया तुमको, उसे भी गुरूर होगा
खुदा की अदा हो क्या हो तुम
तुम्हें जो भी देख लेगा, किसी का ना हो सकेगा
परी हो बला हो क्या हो तुम
तुम्हें जो भी देख लेगा…


हेमंत कुमार दर्दभरी गायकी के लिए ज्यादा प्रसिद्द हुए. फिल्म ‘प्यासा’ का गीत ‘जाने वो कैसे लोग थे जिनके प्यार को प्यार मिला, हमने तो जब कलियाँ माँगी काँटों का हार मिला’, फिल्म ‘अनुपमा’ का गीत ‘या दिल की सुनो दुनियावालों या मुझको अभी चुप रहने दो, मैं ग़म को खुशी कैसे कह दूँ जो कहते हैं उनको कहने दो.’ फिल्म ‘खामोशी’ का गीत ‘तुम पुकार लो, तुम्हारा इन्तज़ार है, तुम पुकार लो, ख़्वाब चुन रही है रात, बेक़रार है’ और फिल्म ‘नागिन’ का गीत ‘ओ, ज़िंदगी के देने वाले, ज़िंदगी के लेने वाले, प्रीत मेरी छीन के बता तुझे क्या मिला.’ फिल्म ‘सोलवाँ साल’ के इस गाने में ख़ुशी और गम का अदभुद मिश्रण है-


है अपना दिल तो आवारा, न जाने किस पे आयेगा
है अपना दिल तो आवारा…
अजब है दीवाना, न घर ना ठिकाना
ज़मीं से बेगाना, फलक से जुदा
ये एक टूटा हुआ तारा, न जाने किस पे आयेगा
है अपना दिल तो आवारा, न जाने किस पे आयेगा…


हेमंत कुमार की जितनी भी चर्चा की जाए, वो कम है. उनके गाए गैर-फ़िल्मी गीत भी काफी मशहूर हुए हैं. मेरे विचार से तो शोरगुल वाले वर्तमान समय में हेमंत कुमार के गीत सुनने वाले के मन में बहुत शान्ति और सात्विक लहार पैदा करते हैं. लता मंगेशकर ने हेमंत कुमार के बारे में क्या खूब कहा है कि ‘उनको सुनते हुए हमेशा ही यह लगता है कि जैसे कोई साधु मंदिर में बैठकर गीत गा रहा हो.’ उनके लिए संगीतकार सलिल चौधरी ने कहा था कि ‘ईश्वर यदि गाता होता तो उसकी आवाज़ हेमन्त कुमार की तरह ही होती.’ किसी भी गायक के लिए इससे बढ़कर आदर या प्रशंसा के बोल नहीं हो सकते हैं. अंत में बस यही कहूंगा कि ये ब्लॉग महान गीतकार और संगीतकार हेमंत कुमार को सादर समर्पित है. हम सबको अपने सुरीले गीतों से बेकरार करके इस दुनिया से चले गए अमर गीतकार हेमंत कुमार के लिए उनके प्रशंसक हमेशा यही कहते रहेंगे कि ‘आपको हमारी कसम लौट आइये.’
लेख, गीत-संकलन और प्रस्तुति- राजेंद्र ऋषि.

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