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बीएचयू में बवाल की वजह: संवेदनहीनता, लापरवाही और राजनीति

सद्गुरुजी
सद्गुरुजी
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काशी ही नहीं बल्कि पूरे देश की जनता को शान्ति देने वाली और तनावमुक्त करने करने वाली अच्छी खबर यह है कि छावनी में तब्दील हो चुके बीएचयू कैंपस की स्थिति अब पूरी तरह से नियंत्रण में है. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार छात्र-छात्राओं से हॉस्टल खाली करा लिए गए हैं. सीओ भेलूपुर और लंका एसओ हटा दिए गए हैं. बीएचयू परिसर और लंका में तोड़-फोड़, आगजनी, पथराव, बम फेंकने और माहौल बिगाड़ने के आरोप में 1000 से भी अधिक अज्ञात छात्र-छात्राओं पर मुक़दमा दर्ज किया गया है.


BHU


इसी सिलसिले में 17 छात्रों को हिरासत में लिया गया था, लेकिन बड़ी संख्या में छात्रों द्वारा लंका थाने का घेराव करने के बाद उन्हें रिहा कर दिया गया. सोशल मीडिया में भड़काऊ वीडियो व तस्वीरें शेयर करने के आरोप में भी कई लोगों के ख़िलाफ़ आईटी एक्ट के तहत लंका थाने में मुक़दमा दर्ज किया गया है.


बीएचयू में शनिवार को आधी रात के समय छात्र-छात्राओं पर लाठीचार्ज होने के बाद परिसर में भयानक हिंसा का दौर शुरू हो गया था, जिसकी गूंज स्थानीय लोगों से लेकर मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री तक देर-सबेर सबको सुनाई दी. काशी प्रधानमंत्री मोदीजी का संसदीय क्षेत्र है, अतः उन्होंने मुख्यमंत्रीजी से इस संदर्भ में जरूर बात की होगी.


छात्रों द्वारा पथराव, तोड़फोड़, आगजनी करने और पेट्रोल बम फेंकने की घटनाओं को अंजाम देने के बाद पुलिस को बिगड़े हालात को काबू में करने के लिए हवाई फायरिंग करनी पड़ी और आंसू गैस के गोले भी छोड़ने पड़े, तब जाकर स्थिति भोर में लगभग तीन बजे के करीब नियंत्रण में आई. इस घटना के बाद विश्वविद्यालय को 2 अक्टूबर तक के लिए बंद कर दिया गया और परिसर में धारा 144 लागू कर दी गई.


ज़िला प्रशासन ने सावधानी के तौर पर बनारस के सभी उच्च शिक्षण संस्थानों को 2 अक्टूबर तक के लिए बंद करा दिया है, जबकि बीएचयू सहित सभी उच्च शिक्षण संस्थानों में 28 सितंबर से दशहरा की छुट्टियां शुरू होने वाली थीं. बीएचयू में हुए बवाल की मूल वजह जानने के लिए विभिन्न मीडिया रिपोर्ट्स का गहरा अध्ययन करना जरूरी था, इसलिए दो रोज मैंने बहुत से समाचारों को पढ़ा. आज इस विषय पर निष्पक्ष रूप से कुछ लिखने की स्थिति में खुद को महसूस किया तो ब्लॉग लिखने बैठ गया. सारे घटनाक्रम का अध्ययन करने के बाद मेरी समझ में यही आया है कि संवेदनहीनता, लापरवाही और राजनीति बीएचयू में हुए बवाल की मूल वजह है. पूरे घटनाक्रम पर यदि बारीकी से नजर डालें, तो यह बात पूरी तरह से स्पष्ट हो जाती है.


अखबार में छपी खबर के अनुसार 21 सितंबर को अपने विभाग से हॉस्टल जा रही दृश्य कला संकाय की एक छात्रा के साथ भारत कला भवन के पास कुछ युवकों ने न सिर्फ छेड़खानी कि थी, बल्कि उसके कपड़े खींचने तक की बेहद दुस्साहसिक हरकत भी की. हॉस्टल पहुंचने के बाद पीड़ित लड़की ने जब यह बात अन्य लड़कियों को बताई तो त्रिवेणी हॉस्टल की छात्राएं इस घटना के विरोध में रात में ही सड़क पर उतर आईं, लेकिन बीएचयू प्रशासन ने उन्हें समझा बुझाकर हॉस्टल में वापस भेज दिया.


अगले दिन शुक्रवार 22 सिंतबर को इस घटना के विरोध में सुबह छह बजे से छात्राओं ने सिंहद्वार पर धरना देना शुरू कर दिया. उनकी मांग थी कि कुलपति आकर उनकी बात सुन लें तो वे धरना ख़त्म कर देंगी, जबकि कुलपति अपने कार्यालय में छात्राओं के प्रतिनिधिमंडल से बात करना चाहते थे. पुलिस अधिकारियों ने कुलपति महोदय को समझाने की कोशिश की कि इस प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय के छात्र-छात्राओं के आप अभिभावक हैं, अतः धरना देने वाली छात्राओं से चलकर बात कर लें. कुलपति ने उनकी बात नहीं मानी.


मामला तब आगे बढ़ना और बिगड़ना शुरू हो गया, जब धरना देने वाली छात्राओं के समर्थन में बीएचयू के छात्र भी एकजुट हो गए. छात्राओं की छेड़खानी के खिलाफ विरोध, धरना-प्रदर्शन और नारेबाजी का यह पूरा मामला तब हिंसात्मक रूप ले लिया, जब शनिवार की रात को कुलपति आवास और महिला महाविद्यालय के सामने प्रॉक्टोरियल बोर्ड के सुरक्षाकर्मियों और पुलिस ने छात्रों पर लाठीचार्ज किया.


बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के कुलपति प्रोफ़ेसर गिरीश चंद्र त्रिपाठी कह रहे हैं कि दिल्ली और इलाहाबाद के कुछ अराजक तत्व आकर बीएचयू का माहौल ख्रराब किये. वे पूछते भी हैं कि आखिर असलहे और पेट्रोल बम बीएचयू में कैसे आये? धरना देने वाली छात्राओं का भी यही कहना है कि बाहरी छात्रों ने आकर माहौल ख़राब किया.


इस बात में सच्चाई नजर आती है. जेएनयू छात्रसंघ चुनाव में चारों सीट पर लेफ्ट के छात्र संगठन और दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ चुनाव में कांग्रेस के छात्र संगठन एनएसयूआई के अध्यक्ष व उपाध्यक्ष पद पर कब्जा जमाने के बाद देशभर के विश्वविद्यालयों में लेफ्ट और कांग्रेस ने छात्रों के जरिये अपनी धूमिल पड़ती राजनीति को फिर से चमकाने की कोशिश शुरू कर दी है. कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष राजबब्बर का अचानक वाराणसी आकर हिंसाग्रस्त माहौल में बीएचयू जाने की कोशिश करना यही दर्शाता है. सपा भी अंत में इसमें कूद पड़ी.


पूरे प्रकरण पर गौर करें तो बीएचयू के कुलपति प्रोफ़ेसर गिरीश चंद्र त्रिपाठी सबसे ज्यादा दोषी नजर आते हैं. उनकी संवेदनहीनता और लापरवाही से बीएचयू का माहौल ख़राब हुआ. बीएचयू में छेड़खानी होती है, यह एक कड़वी सच्चाई है. छेड़खानी के खिलाफ धरना देने वाली छात्राएं कुलपति से आग्रह करना चाहती थीं कि बीएचयू कैंपस में लड़कियों की सुरक्षा का वो पुख्ता इंतजाम करें. कैंपस में सभी जगहों पर सीसीटीवी कैमरे लगाएं जाएं और रात्रि के समय जहाँ पर अन्धेरा रहता है, वहां पर लाइट की व्यवस्था की जाए. बीएचयू परिसर में आने-जाने वाले सभी लोंगो का पूरा रिकार्ड रखा जाए. किसी भी समय लड़कियों को कोई दिक्कत हो तो बीएचयू प्रशासन उनकी बात सुने और उन्हें तत्काल सुरक्षा मुहैया कराए, जो कि उसका कर्तव्य है.


छात्राओं की ये मांगें सही थीं. कुलपति और बीएचयू प्रशासन की यह ड्यूटी बनती है कि वो परिसर में रहने वाली छात्राओं को चौबीस घंटे वाली एक पुख्ता सुरक्षा व्यवस्था उपलब्ध कराएं. पूरे मामले में दोषी होने पर भी अपनी ऊँची राजनीतिक पहुँच के चलते कुलपति शायद ही दण्डित हों. दण्डित तो हमेशा बेचारे पुलिस वाले ही होते हैं, जो खराब माहौल को ठीक करने के लिए बुलाए जाते हैं और माहौल ठीक होने के बाद बलि का बकरा बनाकर पूरे घटनाक्रम के लिए दोषी भी घोषित कर दिए जाते हैं.

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