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सोशल मीडिया: गाली-गलौज करने वालों पर हो कार्रवाई

सद्गुरुजी
सद्गुरुजी
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जायेंगे कहाँ, सूझता नहीं
चल पड़े मगर रास्ता नहीं
क्या तलाश है, कुछ पता नहीं
बुन रहे हैं दिल ख्वाब दम-ब-दम


सोशल मीडिया पर आज लिखने की इच्छा हुई तो कैफ़ी आज़मी साहब की फिल्म ‘कागज के फूल’ के लिए लिखे एक गीत की उपरोक्त पंक्तियाँ याद आ गईं. सोशल मीडिया की स्थिति इस गीत से बहुत कुछ मिलती जुलती है. लोग वहां जाकर टाइम पास कर रहे हैं या फिर कुछ तलाश रहे हैं, शायद ठीक से किसी को भी कुछ पता नहीं.


पूरी दुनिया भर के अनगिनत लोग सोशल मीडिया पर विभिन्न मुद्दों पर अपने विचार व्यक्त करते हैं, अपनी व्यक्तिगत, पारिवारिक व अन्य कई तरह की तस्वीरें, संदेश और वीडियो आदि शेयर करते हैं और अपने रिश्तेदारों व परिचितों के साथ-साथ नए लोंगो से भी एक मंच पर जान-पहचान या कहिये दोस्ती करते हैं, जो कि फायदेमंद होने के साथ ही नुकसानदेह भी है.


आज इसी मुद्दे पर चर्चा करना चाहूँगा. सोशल मीडिया आज हमारे लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का एक बहुत मजबूत आधार स्तम्भ बन गया है, इसलिए कोई नहीं चाहेगा कि ये बंद हो. मगर इसका उपयोग सभ्य भाषा में पूरे संयम और संतुलन के साथ हो, इसकी व्यवस्था भी जरूर होनी चाहिए.


हर सोशल मंच को अपने यहाँ पर शिष्टाचार, सद्भाव और अनुशासन कायम रखने के लिए स्वयं ही कुछ नियम बनाने चाहिए, जिसका पालन पूरी सख्ती के साथ होना चाहिए. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अर्थ गाली-गलौज और अफवाहें फैलाना नहीं होना चाहिए, जैसा कि सोशल मीडिया पर हो रहा है. सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक कमेंट करने के मामले में IT एक्ट की धारा 66 A लगाने का प्रावधान था.


मगर कई बुद्धिजीवियों, वकीलों और NGO ने इस एक्ट को गैरकानूनी बताते हुए सुप्रीम कोर्ट से इसे खत्म करने की मांग की थी. साल 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक कमेंट करने के मामले में लगाई जाने वाली IT एक्ट की धारा 66 A को रद्द कर दिया था और इसे संविधान के अनुच्छेद 19(1)ए के तहत प्राप्त अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन करार दिया था.


मगर इस वर्ष (2017) में 5 अक्टूबर को कोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि सोशल मीडिया पर गाली गलौज करने वालों पर कार्रवाई होनी चाहिए. यह अच्छी बात है कि सोशल मीडिया पर न्यायाधीशों और न्यायिक प्रक्रियाओं समेत सभी मुद्दों पर आक्रामक प्रतिक्रियाओं को लेकर सुप्रीम कोर्ट गंभीर है.


सुप्रीम कोर्ट ने इस पर चिंता जताते हुए कहा है कि इस पर नकेल कसने के लिए नियम बनाना जरूरी हो गया है. सुप्रीम कोर्ट की चिंता और गंभीरता से तो यही साबित होता है कि सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक कमेंट करने के मामले में IT एक्ट की धारा 66 A लगाने का प्रावधान सही था. अब इसे फिर से लागू किया जाना चाहिए.


अंत में सोशल मीडिया से जुड़ी एक बहुत बड़ी सच्चाई का जिक्र करना चाहूँगा कि बहुत से लोग अपने पारिवारिक प्रपंचों से तंग आकर किसी और की सहानुभूति पाने के लिए भावनात्मक रूप से बहुत ज्यादा सोशल मीडिया से जुड़ जाते हैं और प्यार की तलाश में बहुत से लोग धोखे या ठगी के शिकार हो जाते हैं. कैफी आज़मी ने फिल्म ‘अनुपमा’ के इस गीत में अच्छा सुझाव दिया है.


क्या दर्द किसी का लेगा कोई
इतना तो किसी में दर्द नहीं
बहते हुए आँसू और बहें
अब ऐसी तसल्ली रहने दो.

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